06 नवंबर 2024/ कार्तिक शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
नये वीर संवत 2548 को शुरू होने के छठे दिन आ जाता है उन तीर्थंकर का गर्भकल्याणक, जिनकी मोक्षस्थली के साथ 72 करोड़ 700 मुनिराजों के सिद्ध जाने वाले पावन तीर्थ को बचाने में आज जैन समाज जूझ रहा है। आज से 70 साल पहले वो गिरनार, जैन समाज के सिद्ध स्थली के नाम से जाना जाता है। पर आज हमारी तीर्थ संरक्षण – संवर्धन सहित अनेक कमेटियों व शीर्ष नेतृत्व में लापरवाही के चलते, धीरे-धीरे सबकी आंखों के सामने, उन्हीं की नाक के नीचे कैसे बदला गया, यह किसी से छिपा नहीं है। 70 साल पहले ही तो मोक्ष धरा का नाम बाकायदा दत्तात्रेय टोंक के नाम से सरकारी कागजों में दर्ज हो गया और हमारी बड़ी संस्थायें, श्रेष्ठी वर्ग उसका विरोध करने की बजाय, आंखे मूंदे बैठा रहा। इतनी बड़ी लापरवाही के बाद पिछले 18 सालों में उस टोंक के चरणों को, चट्टान पर उकेरी तीर्थंकर नेमिनाथ मूर्ति को भी सबके सामने बदला जाता रहा और जैन समाज की कमेटियां केवल अदालतों के चक्कर लगाकर इतिश्री करती रही।
72 करोड़ 700 महामुनिराजों की मोक्ष स्थली आज पुकार-पुकार कर मानो कह रही है कि तुम इस सिद्ध धरा को सुरक्षित करने में इतने नकारा-असक्षम हो, तो जैन धर्म के संवर्धन, संरक्षण, विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है।शंख चिह्न से जाने पहचाने हमारे 22वें तीर्थंकर का जीव 10 पर्याय पूर्व भील की पर्याय में था, वहां से श्री वृषभदत्त की पत्नी के हभ्यकेतु नामक पुत्र होकर धर्ममय जीवन से 8 भव पूर्व सौधर्म स्वर्ग में देव बना, जहां से पुष्करार्ध द्वीप में श्री सूरिप्रभ राजा के चिंतागति नामक पुत्र हुआ। धर्मपारायण होने से चौथे स्वर्ग में देव आयु के बाद पांच भव पूर्व सिंहपुर राजा के अपराजित नामक पुत्र हुआ और पिछले भवों की तरह एक भव मनुष्य, एक भव देव गति में चलते अच्युत स्वर्ग में इन्द्र बना, जहां आयु पूर्ण कर कुरुजांगल देश के राजा श्री चंद्र के सुप्रतिष्ठ नाम का पुत्र हुआ। धार्मिक भावनाओं से परिपूर्ण जीवन के चलते तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया, फिर अनुत्तर स्वर्ग में अहिमिन्द्र बना। और वहां आयु पूर्ण कर 21वें तीर्थंकर श्री नमिनाथ जी के मोक्ष जाने के एक हजार कम 5 लाख वर्ष बाद यादव वंश में शौरीपुर के महाराज समुद्रविजयजी की महारानी शिवादेवी जी के गर्भ से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को आये।
उनके गर्भ में आने से 6 माह पूर्व ही तीर्थंकर बालक के संकेत देते हुये राजमहल पर दिन के तीनों पहर, सौधर्म की आज्ञा से कुबेर ने हर पहर में साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा शुरू कर दी। जो श्रावण शुक्ल षष्ठी को उनके जन्म कल्याणक तक निर्बाध चलती रही। आपकी आयु एक हजार वर्ष थी और कद 60 फुट ऊंचा। आपके शरीर का रंग नीला था।
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