मालवा के इंदौर महानगर से 135 किमी दूर स्थित श्री सिद्धक्षेत्र आजकल अपनी पवित्रता पर सूर्य पर बैठें आसमान की तरह इतरा रहा है, आखिर क्यूं न भले वहां जो इस के युग के सर्वश्रेष्ठ आचार्य, तीर्थोउद्धारक, विश्व वंदनीय, संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी यतिराज संसघ (08) पिच्छि के समोशरण सहित विराजमान हैं…। जिनके पावन चरण की उपस्थिति को पाकर क्षेत्र के बगल नर्मदा भी ठंडी ठंडी पवनों को भी सुरीले मधुर गुंजायमान के साथ सागर में डुबकी लगाने आतुर दिखाई दे रही हैं..!!!
इस सिद्धभूमि पर आचार्य श्री जी संघ सहित 1995 में प्रथम बार आयें थे, तब यहाँ विरान जंगल ही दिखाई देता था, लेकिन गुरु जी जिस जगह चरण रख दें, वह माटी पावन तीर्थ बन जाती हैं, अभी वर्षायोग के बाद क्षेत्र में मंगल प्रवेश के तीसरे दिन ही गुरु जी ने क्षेत्र के कार्याध्यक्ष एंव तीर्थ निर्माण समिति के मुख्य संयोजक संजय मैक्स से क्षेत्र निर्माण एंव मंदिर नक्काशी, मजबूती, नक्शा, कार्य सम्बन्धी जानकारियों को बहुत ही बारीकी तरीके पूछा एवं संघ सहित पूरे क्षेत्र का स्वयँ अवलोकन भी किया।
अभी तक के इतिहास में नेमावर ऐसा तीर्थक्षेत्र है, जहां चातुर्मास सम्पन्न होने के बाद तीसरी बार (1999 में गोमटगिरी से, 2014 में विदिशा शीतलधाम से, 2020 में रेवती रेंज इंदौर से) सीधे गुरुचरण का सान्निध्य प्राप्त हुआ हो। अभी कल ही गुरु जी ने बोला है कि इस बार पुण्य अवसर विशेष मिलेगा, मतलब अब तो कयास भी यही लग रहें संघ छोटा है तो गुरुजी आगामी पंचकल्याणक में या उसके पहले भव्य चैतन्य जैनेश्वरी दीक्षायें देकर इस तीर्थ को यह सौभाग्य भी तीसरी बार प्रदान करेंगे। इसके पूर्व गुरु जी ने यहाँ 02 बार मुनिराज (10 दीक्षा शरद पूर्णिमा को 1997 में, 23 दीक्षाएं 1999 में, 02 बार आर्यिका (२9 दीक्षा 06 जून 1997 में एवं 14 दीक्षाएं 14 अगस्त 1997) एवं ऐलक, क्षुल्लक दीक्षायें प्रदान की हैं।
यहां तीर्थ पर आचार्य ज्ञानसागर व्रति आश्रम संचालित है, जिसमें पिछले वर्ष ही चातुर्मास के दौरान 20 समाधियां सानन्द सम्पन्न हुई, गुरुकृपा से 28 एकड़ की भूमि पर लाल पाषाण से निर्मित 135 फुट ऊँचाई का पँचबालयति जिनालय, 63-54 फिट ऊंचाई के त्रिकाल चौबीसी जिनालय (24 सभी में भूत,भविष्य, वर्तमान), के साथ 126 फीट ऊंचे सहस्त्रकूट जिनालय (सप्त धातु की प्रतिमाओं से युक्त), संत भवन, व्रति आश्रम, दयोदय गौशाला, यात्री निवास भवन स्थापित हो चुकें हैं। वर्तमान में निर्मित हुए जिनालयों में जैसलमेरी पीले स्टोन, पिंक स्टोन, वंशीपुर के रेड स्टोन के पाषाण का उपयोग हुआ है।
आपको जानकर हर्ष होगा कि इसी तीर्थ के रेवानदी (नर्मदा) तट से 03 चतुर्थ कालीन प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं, जिनकी प्रशस्ति न होना ही इनके प्राचीनतम होने को दशार्ता है और सभी तीन प्रतिमाएं 35 किमी के क्षेत्रफल (हरदा, खातेगांव, नेमावर जी) में ही विराजमान हैं, नेमावर गांव में एक प्राचीन आदिनाथ जिनालय है जिसमें मूलनायक आदिनाथ भगवान की लगभग 350 से अधिक प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं। इसी तीर्थ पर आचार्य श्रीजी ने प्रतिभास्थली के बहिनों के प्रतिभा मण्डल का निर्माण किया था।
संकलन-: अक्षय रसिया, मड़ावरा