जैन इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ! जैन ही तोड़ रहे 450 वर्ष प्राचीन जैन मंदिर ॰ लालबाई, फूलबाई हिंदू मंदिर नहीं टूटेंगे

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॰ पारसप्रभु के 2800वें निर्वाण वर्ष में उनके 450 वर्ष प्राचीन मंदिर पर चल रहा बुलडोजर
॰ नाली और सड़क चौड़ी करने के लिये प्राचीन धार्मिक स्थलों को मिटाना कितना सही?
॰ जिन मंत्री ने कहा कि कोई मंदिर नहीं टूटेगा, उन्हीं के मुख्यमंत्री बनते ही तोड़े गये मंदिर
॰ अगर क्षेत्रपाल या दीवार प्रशासन ने तोड़ने की कोशिश की, तब करेंगे आंदोलन
07 जून 2024// जयेष्ठ शुक्ल एकम//चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
कहने के तो हम अपने को दो से तीन करोड़ से कम नहीं मानते, वहीं सरकारी 2011 आंकड़े ने जैनों को 44,51,753 पर समेटा और अभी हाल में पीएम इकोनामिक सर्वे ने 65 साल का आंकड़ा देते हुए बताया कि जैन समाज में1950 से 2015 के 65 सालों में 20 फीसदी कटौती हुई है। यह गिनती कम, चाहे जीडीपी में सहयोग बढ़ा हो, शिक्षित में कोई आसपास ना हो, कल्याण-दान में बहुत आगे हो, सबसे ज्यादा रोजगार दे रहा हो, पर बिना खोपड़ियों के कोई नहीं पूछता और आज तो उसके लिये अपने चल-अचल तीथों की सुरक्षा खतरे की घंटी – काले घने साये में है। यह स्पष्ट है कि सत्ता में बैठे नेता भी जैनों से किये वायदों से मुकुर रहे हैं।

चाहे वो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने गिरनार के लिये कहा हो या फिर मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने नयापुरा उज्जैन के लिये किये हों। कुर्सी ऊंची उठते ही जैनों से आंखें फेर ली गई।

अफसोस यह ही नहीं है, बल्कि यह भी है कि आज अपने को करोड़ों में बताने वाला जैन समाज महावीर स्वामी का 2550वां निर्वाण महोत्सव वर्ष जोर-शोर से मनाता है, पर सबसे अधिक… लोकप्रिय और जिन्होंने उपसर्गों की नींव पर उत्तम क्षमा का क्षितिज खड़ा किया, ऐसे 23वें तीर्थंकर श्री पारसनाथ के 2800वें निर्वाण कल्याणक वर्ष और 2900 जन्म कल्याणक वर्ष को पूरी तरह भूल गया। इससे ज्यादा शर्मसार नहीं हो सकता जब जैन समाज, कमेटी, अपने ही हाथों से उन्हीं उपसर्ग विजेता पारसप्रभु के 458 वर्ष प्राचीन मंदिर के शिखर, मेहराव, आदि को ध्वस्त करने के लिये स्वयं बुलडोजर चलाये, और कहे कि समाज के हित, तीर्थ के हित में, सड़क को चौड़ी करने, नाली बनाने के लिये किया जा रहा है। यह कहते-कहते क्यों आवाज बंद नहीं हुई, यह चिंता की बात है।

जी हां, वही उज्जैन, जो धर्म नगरी है हिंदू परम्परा से, जैन परम्परा से भी और उसमें नयापुरा, जहां मंदिर-मस्जिद सबकुछ है। जहां प्रशासन 2017 में पत्र जारी करता है पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर कि सड़क चौड़ी करनी है तो कृपया अपने मंदिर का 15-16 फीट की गहराई में 80-85 फुट चौड़ा हिस्सा उन्हें दे दिया जाये, उसका मुआवजा देंगे। जैन समाज ने अति प्राचीन तीर्थ का 1200 फुट हिस्सा देने से इंकार किया, क्षेत्रपाल बाबा व दीवार ही नहीं, पूरे मंदिर को हानि पहुंच सकती है, गिर सकता है। फिर जून 2023 में तो प्रशासन ने कमाल कर दिया, और अब नोटिस जारी किया कि अपना अवैध निर्माण हटाओ, नहीं तो प्रशान गिरा देगा और तब के तत्कालीन शिक्षा मंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव जी, जिनका परिवार इसी मंदिर के आसपास रहता है, उन्होंने कहा कि किसी भी मंदिर-मजिस्द को नहीं गिराया जाएगा। जैन संतों ने खूब आशीर्वाद दिया और समाज ने भी पूरा समर्थन, बन गये मुख्यमंत्री, जिस पद की उन्होंने क्या, किसी ने कल्पना नहीं की थी। जश्न हुआ, घर-घर मिटाईयां बंटी, उनके घर पर बधाईयों का ना थमने वाला तांता लगा। हां, उससे पहले उन्होंने अपना वायदा रखते हुये, जो सड़क का आधा हिस्सा चौड़ा हुआ, उसमें मंदिर, मस्जिद को नहीं छेड़ा, जबकि दोनों सड़क पर 15 फुट और 12 फुट आ रहे थे।

पर अब 27 मई 2024 को प्रशासन बुलडोजर लेकर खड़ा हो गया मंदिर के सामने, गिराना है। आनन-फानन, समाज जुटा, नहीं चलेगा बुलडोजर, नहीं गिरेगी कोई ईट, फिर सब पहुंचे तपोभूमि में आचार्य श्री प्रज्ञा सागरजी के पास, उन्होंने भी अपना उद्बोधन दिया, बताया कि मंदिर की प्राचीनता व इसके निर्माण पर, कि इसको पीछे करना संभव नहीं, सामने मकानों को पीछे कर, यहां चौड़ा कर लिया जाये। प्रेस में छपा जैन समाज नहीं चलने देगा बुलडोजर।

पर फिर ऐसा क्या दबाव आया कि 24 घंटे में बुलडोजर चलना शुरू हो गया। चैनल महालक्ष्मी को पता चला कि एक बयान जारी किया गया है कि उज्जैन शहर के केडी मार्ग चौड़ीकरण के लिए आपसी सामंजस्य एवं समन्वयता से, शांतिपूर्वक धार्मिक स्थलों को लोगों द्वारा स्वेच्छा से हटाना, विकास की दिशा में साम्प्रदायिक सौहार्द का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कमेटी ने अपने आप ही मंदिर को गिराना शुरू कर दिया है।

इधर अल्पसंख्यक आयोग जो उस पर कार्यवाही हो, इसकी शुरूआत करे, उससे पहले ही जैन समाज ने कुल्हाड़ी अपने पैरों पर मारनी शुरू कर दी। यहां तक कि कहा गया कि सोशल मीडिया पर चैनल महालक्ष्मी भ्रामक प्रचार कर रहा है, उस पर ध्यान ना देवें। कहा गया कि सभी 18 धार्मिक स्थलों की जिसमें 15 मंदिर, 2 मस्जिद, एक मजार है, जिन्हें पीछे करने और अन्यत्र स्थापित करने की कार्यवाही की है। पर असली बात छिपा ली, चैनल महालक्ष्मी आज फिर सार्वजनिक रूप में सवाल करता है कि कहा गया कि सभी मंदिर तोड़ दिये गये। क्या लालबाई फूलबाई के मंदिर तोड़े गये? वे दोनों इतने प्राचीन नहीं है, उन दोनों को बचाने के लिये उनके पीछे के मकानों को तोड़कर उन्हें भीतर लेकर चौराहा का रूप दे वहां गेट लगायेंगे, उसके सौंदर्यीकरण के लिये सरकारी फंड दिया जाएगा और गजब, उस ट्रैफिक के चौराहे में लोग मंदिर में प्रवेश करेंगे, तब अवरोध पैदा भी होगा, कोई दुर्घटना भी हो सकती है?

हनुमान मंदिर तोड़ते हुए बजरंग दल के विरोध के चलते रोक दिया गया कि पहले जैन मंदिर तोड़ो, फिर इसे तोड़ना। क्या गजब? क्या प्रशासन? आज सान्ध्य महालक्ष्मी स्पष्ट करता है कि किसी भी धार्मिक स्थल को नहीं तोड़ा जाना चाहिए। धर्मनगरी की पहचान उनके प्राचीन धर्मस्थलों से होती है। हां, विकास होना चाहिये पर प्राचीन संस्कृति को मिटा कर नहीं। अगर धर्मायतन तोड़े गये, वो अवैध थे, तो बनने क्यों दिया? जब आस्था और भगवान स्थापित हो जायें, तो उन्हें तोड़ना बिल्कुल गलत है। 10×10 के दो मंदिर सुरक्षित और 458 वर्ष प्राचीन मंदिर पर किस तरह बुलडोजर चल रहा, वह प्राचीन जैन संस्कृति को मिटाने का एक शर्मसार कदम है।

वहां की कमेटी में से एक ने सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि हमें प्रशासन ने विश्वास दिलाया है कि दीवार या क्षेत्रपाल को कुछ नहीं करेंगे। आगे की सुंदर रेलिंग तोड़ दी, मंदिर के बाहर का बरामदा तोड़ दिया। सीढ़ियां सड़क पर आ गई, यानि कल कहा जाएगा, सीढ़ियां सड़क पर बना ली, हटाओ इन्हें, रास्ता रोक रही हैं, फिर मंदिर के अंदर सीढ़ी करोगे और मंदिर को तोड़ोगे।
इस मंदिर की दीवार चार फुट चौड़ी है, जिस पर मंदिर टिका है। उसी के साथ नगर रक्षक क्षेत्रपाल हैं। नयापुरा समाज का दावा है कि प्रशासन ने इन पर हाथ लगाया तो आंदोलन करेंगे, देशव्यापी रूप में होगा। पर उन पर विश्वास कौन करे। जो अपने जिनालयों को तोड़ने के लिये स्वयं बुलडोजर चलाता है, वो कब पलट जाये, कोई भरोसा नहीं कर सकता।

सान्ध्य महालक्ष्मी टिप्पणी
निश्चित ही यह कदम जैन इतिहास में तीसरा बड़ा कलंकित अध्याय शुरूआत का प्रथम पृष्ठ है, जो परम्परा बन जाएगा प्राचीन जैन तीर्थों को, किसी न किसी बहाने तोड़ने का। पहले 8वीं-9वीं सदी में हजारों जैन संतों, लाखों श्रावकों का बलिदान, फिर 12 से 14वीं सदी तक आक्रमणकारियों का तीर्थों-प्रतिमाओं का नष्ट करना और आज आजाद भारत के 77वें वर्ष में जैनों द्वारा स्वयं 450 वर्ष प्राचीन तीर्थ पर बुलडोजर चलाया….।

(इस पर पूरी जानकारी यूट्यूब/चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2637, 2639, 2641 व 2647 में देख सकते हैं)