ललितपुर। जनपद में सुप्रसिद्ध प्रागैतिहासिक दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़ विकासखंड महरौनी में स्थित है, प्रागैतिहासिक पुरा सम्पदा सम्पन्न श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़ (ललितपुर) आज प्राचीन संस्कृति एवं इतिहास के केंद्र के रूप में स्थापित हो रहा है। सुप्रसिद्ध नवागढ़ जैन तीर्थक्षेत्र क्षेत्र जहां प्राचीन पुरातात्विक संपदा, चंदेल कालीन बावड़ी एवं कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है वहीं हजारों वर्ष प्राचीन शैलचित्रों की संस्कृति एवं रॉक कट इमेज, चरण चिन्ह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनें हुए हैं। लगातार अन्वेषण से कई विशेष रहस्य निरंतर उदघाटित हो रहे हैं।
नवागढ़ के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण धरोहर भवन पुरालेख अनुभाग नई दिल्ली में सहायक अधीक्षण पुरालेखविद पद पर कार्यरत श्रीमती अर्पिता रंजन दिल्ली ने ‘नवागढ़ से प्राप्त संस्कृत अभिलेख एवं पुरातात्विक साक्ष्यों का समीक्षात्मक अध्ययन’ विषय पर अनुसंधान कार्य कर वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के मानविकी संकाय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने यह महत्वपूर्ण शोध प्रबंध डॉ. श्रीप्रकाश राय आचार्य एवं अध्यक्ष संस्कृत विभाग वीर कुंवर सिंह विश्विद्यालय आरा के निर्देशन में पूर्ण कर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। इस महत्वपूर्ण अनुसंधान पर कार्य करने के लिए शोधार्थी अर्पिता रंजन अनेकबार नवागढ़ पहुँची जहॉं क्षेत्र के निर्देशक ब्रह्मचारी जयकुमार जी निशांत भैया जी के मार्गदर्शन में साक्ष्य और तथ्य जुटाए।
विलक्षण है नवागढ़ : अर्पिता रंजन ने अपने शोध प्रबंध में कहा है कि देश में जैन धर्म के कई क्षेत्र हैं, परंतु नवागढ़ क्षेत्र प्रागैतिहासिक होने के साथ-साथ अन्य कई विशेषताओं वाला है जिसमें अतिशय क्षेत्र के साथ विशेष राजाओं के शीर्ष ,कप मार्क, शैल चित्र ,साधना शैलाश्रय, गुप्त कालीन उत्कीर्ण कायोत्सर्ग मुद्रा आदि अन्य क्षेत्रों पर दृष्टव्य नहीं होते हैं। इतिहास विधाओं के शोधकर्ताओं लिए पर्यटन , सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक धरोहर एवं बुंदेलखंड की सभ्यता के विकास में रुचि रखने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए नवागढ़ एक विलक्षण तीर्थ,कला तीर्थ, धर्म तीर्थ है जहां उनके अन्वेषण हेतु विशेष सामग्री उपलब्ध है।
प्रागैतिहासिक नवागढ़ अतिशय क्षेत्र जैन धर्म के 18वें तीर्थंकर भगवान अरनाथ स्वामी के अतिशय से संपन्न है। यह मूलनायक प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई थी। नवागढ़ में हजारों श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए, संयम साधना की वृद्धि करने के लिए एवं अपने जीवन को मंगलमय बनाने के लिए अरनाथ भगवान की अर्चना पूजा करने आते हैं।नवागढ़ क्षेत्र से 3 किलोमीटर पश्चिम में फाइटोन (फाइवस्टोन) पहाड़ी के निकट जैन पहाड़ी पर कच्छप शिला के आधार एवं छत में अंकित शैल चित्रों की श्रंखला जो चितेरों की चंगेर के नाम से प्रसिद्ध है । नवागढ़ को प्रकाश में लाने का कार्य प्रतिष्ठा पितामह श्रद्धेय गुलाब चंद जी पुष्प जी ने किया था।
प्राचीन धातु,काष्ठ उपकरण, मृदा शिल्प एवं अनेक कलात्मक सामग्री संग्रहालय में संरक्षित :
भगवान अरनाथ की 12वीं सदी की प्राचीन खड्गासन 4 फुट -9 इंच ऊंची अतिशयकारी मूर्ति विराजमान है। विशाल संग्रहालय में पुरातत्त्व विभाग में रजिस्टर्ड शताधिक प्राचीन पुरावशेष को सुरक्षित किया गया है, जिसमें संवत् 1203 के मानस्तम्भ एवं प्रतिहार कालीन मूर्ति शिल्प के साथ संवत1123,1188,1195,1490,
1548,1880 की मूर्तियां संग्रहालय मेें हैं। बहुत सी प्राचीन धातु,काष्ठ उपकरण, मृदा शिल्प एवं अनेक कलात्मक सामग्री उपलब्ध है। नवागढ़ में 1959 से अब तक 200 से अधिक प्रतिमाएं खुदाई में मिलीं हैं जिनमें 138 का पुरातत्व विभाग झांसी में भी रजिस्ट्रेशन हो चुका है ।
सात अध्यायों में विभाजित है अनुसंधान :
इस महत्वपूर्ण शोध प्रबंध को सात अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिसमें प्रथम अध्याय में भारत का ह्रदय बुंदेलखंड शीर्षक के साथ नवागढ़ के प्राचीनतम स्वरूप एवं ऐतिहासिक परिचय, नवागढ़ का अर्वाचीन स्वरूप, प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर नवागढ़ में गुरुकुल परंपरा, प्रतिमाओं का अध्ययन, बुंदेलखंड एवं नवागढ़ की ऐतिहासिकता आदि पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय में नवागढ़ से प्राप्त प्रतिमाओं के अभिलेखों का उद्भव, विकास एवं महत्व को रेखांकित किया है। तृतीय अध्याय में नवागढ़ से प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर सामाजिक एवं धार्मिक परिदृश्य का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में नवागढ़ में प्राप्त शैल एवं धातु जैन मूर्तियों का अनुशीलन किया गया है। पंचम अध्याय में प्राप्त शैलोत्कीर्ण चित्रकला का परिचय तथा षष्ठ अध्याय में नवागढ़ में प्राप्त प्राकृतिक शैल गुफाएं एवं पुरा पाषाण कालीन साक्ष्यों का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया है। अंतिम सप्तम अध्याय में उपसंहार, संदर्भ ग्रंथ, शोध ग्रंथ के चित्रों की सूची दी गयी है।
इस महत्वपूर्ण श्रमसाध्य अनुसंधान कार्य में शोधार्थी अर्पिता रंजन ने साक्ष्यों के आधार पर नवागढ़ के संबंध में अनेक तथ्यों को उदघाटित किया है।
इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने में क्षेत्र के निर्देशक ब्र. जय निशांत भैया जी नवागढ़ तीर्थक्षेत्र कमेटी के साथ निरंतर प्रयासरत हैं।
बेमिसाल विरासत की खान है नवागढ़ क्षेत्र :
डॉक्टर मारुति नंदन प्रसाद तिवारी सेवानिवृत्त प्रोफेसर काशी हिंदू विश्व विद्यालय वाराणसी, श्री डॉ गिरिराज कुमार सेक्रेटरी रॉक आर्ट सोसायटी आगरा, यशवंत मलैया कोलोराडो विश्वविद्यालय अमेरिका ने यहां की पुरातात्विक धरोहर को देखते हुए कहा, हमने कई क्षेत्रों पर अन्वेषण किए, जहां जैन मूर्तियां प्राप्त हुई, परंतु नवागढ़ ऐसा विलक्षण क्षेत्र है , जहां जैनमूर्तियां,कलाकृतियां,शैलाश्रय का विशाल भंडार तो है ही यहां की ऐतिहासिकता, पुरा पाषाण कालीन औजार , रॉक कट मार्क, रॉक कट इमेज, शैलचित्र यह बताते हैं कि नवागढ़ केवल धार्मिक क्षेत्र ही नहीं था यहां पुरापाषाण काल 500000 वर्ष पूर्व से संस्कृति के आयाम स्थापित किए गए हैं। इसके विस्तार ,सम्पन्नता, कला वीथिका , विद्या अध्ययन केंद्र गुरुकुल होने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। अन्य क्षेत्रों पर ऐसी पुरातात्विक धरोहर देखने को नहीं मिली।
इतिहासविद एवं पुरातत्वविद के अनुसार नवागढ़ विद्या अध्ययन ,व्यवसाय एवं राजनीतिक नगर था जहां प्राचीनतम संस्कृति का सद्भाव विशेषण प्राप्त हो रहा है।
बगाज टोरिया पर स्थित चट्टान पर उत्कीर्ण अभिलेख को देखकर कहा जा सकता है कि यहां कोई विशाल उपासना गृह होना चाहिए जो प्राकृतिक प्रकोप से नष्ट हो गया है। इसी टोरिया के पश्चिम में आचार्य शैलाश्रय को उद्घाटित करते हुए साबू पाहल का अभिलेख ,अंबिका एवं चमर धारणी मूर्ति के साथ और भी कलाकृतियां प्राप्त हुई थी, जिनका साक्षी संपूर्ण ग्राम है । यहां अत्यंत समृद्ध शाली चित्रांकन रहा होगा। जिसकी कला विशिष्ट रही होगी। वह धरोहर आज रखरखाव के अभाव में नष्ट हो गई है। यह बहुत गंभीरता से विचारणीय है ।
यहाँ खुदाई के दौरान अनेक पुरा महत्त्व के अति प्राचीन ऐतिहासिक तथ्य व साक्ष्य निरन्तर मिल रहे हैं जिन पर लगातार अन्वेषण जारी है।
क्षेत्र निर्देशक ब्रह्मचारी जय कुमार निशांत ने बताया कि नवागढ़ के अभिलेखों के माध्यम से श्रीमती अर्पिता रंजन जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग लाल किला दिल्ली में कार्यरत हैं, नवागढ़ पर शोध कार्य किया है। वह अनेकबार इस कार्य के लिए नवागढ़ आयीं ।आप यहां दर्शन हेतु आई थी आपने यहां की धरोहर देखकर इस पर शोध प्रबंध लिखने का संकल्प किया और इस कार्य में संलग्न रहकर अपने आपको धन्य किया। शोध प्रबंध हेतु डॉक्टर संजय मंजुल, लाल किला दिल्ली , निदेशक सर्वेक्षण विभाग का विशेष सहयोग रहा है , आपके माध्यम से ब्रह्मचारी निशांत जी ने अन्वेषण के कई आयाम स्थापित किए हैं, जिनके बारे में श्रीमती अर्पिता रंजन ने अपने शोध प्रबंध में उल्लेख किया है।
खुदाई में प्राप्त होते हैं पुरा अवशेष : संत भवन एवं अनुष्ठान मंडप के निर्माण हेतु किए गए खनन में प्राचीन मृदभांड प्राप्त हुए हैं। ग्रामीण जनों का कहना है इस प्रकार के पात्र हमने कभी नहीं देखे हैं, इस प्रकार की रचना प्राचीन काल में रही होगी,वर्तमान काल में ऐसा निर्माण नहीं हो रहा है ।नवागढ़ में होने वाले निर्माण कार्य में जो भी खनन हो रहा है उसमें पूर्णत सावधानी रखी जाती रही है , जिससे कोई विशेष कला कीर्ति क्षतिग्रस्त ना हो। डॉ एस के दुबे झांसी के निर्देशानुसार यहां पर जहां भी खनन कार्य होता है उसमें यह सावधानी रखी जाती है। विगत दिनों रूप सिंह गुर्जर के यहां खनन में पार्श्वनाथ भगवान की खंडित प्रतिमा प्राप्त हुई थी,जो अत्यंत मनोग एवं विलक्षण प्राचीन है।
नवागढ़ के प्रागैतिहासिक साक्ष्य :
डॉ गिरिराज कुमार जनरल सेकेटरी रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ इंडिया आगरा ने इस क्षेत्र के 10 किलोमीटर में स्थित विभिन्न पहाड़ियों का सतत अन्वेषण करते हुए 2 लाख से 5 लाख वर्ष प्राचीन प्री मिडिल एवं पोस्ट मेचुलियन काल के पाषाण के औजार खोज निकाले जो आज भी नवागढ़ के संग्रहालय में संग्रहित हैं।
लगातार अन्वेषण जारी सन 2017 से ब्रह्मचारी जयकुमार निशांत के निर्देशन में नवागढ़ क्षेत्र में लगातार अन्वेषण जारी है, जिसमें प्रोफेसर डॉ मारुति नंदन प्रसाद तिवारी काशी हिंदू विश्वविद्यालय बनारस,डॉ गिरिराज कुमार, राष्ट्रीय सचिव रॉक आर्ट सोसायटी दयालबाग इंस्टीट्यूट आगरा ,डॉ एस,के दुबे झांसी ,नरेश पाठक ग्वालियर, हरि विष्णु अवस्थी टीकमगढ़, डॉ के पी त्रिपाठी टीकमगढ़ के द्वारा विशेष अन्वेषण किया गया ।
भारतीय सांस्कृतिक पहचान संजोये है नवागढ़
अन्वेषक दलों के अनुसार नवागढ़ ऐसा क्षेत्र है जहां जैन मूर्तियों में उपलब्ध अभिलेख के माध्यम से प्राचीनता सिद्ध हो रही है, वही मूर्ति शिल्प के माध्यम से भी यहां के इतिहास के साक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं। फाइटोन पहाड़ी के निकट जैन पहाड़ी में स्थित संघ साधना स्थल, गुफाओं में उकेरी गई आकृति एवं चरण चिन्ह यहां की जैन विरासत का साक्षात्कार कराते हैं। रॉक पेंटिंग, कपमार्ग, हैंगिंग रॉक, बैलेंस रॉक, मैटेलिक साउंड रॉक इसके विशेष पर्यटन स्थल होने का साक्ष्य हैं। भारतीय सांस्कृतिक पहचान संजोये है नवागढ़। नवागढ़ में पिछले वर्ष से गुरुकुलम का भी संचालन एक नया आयाम स्थापित कर रहा है।
क्षेत्र के निर्देशक ब्र. जय निशांत भैया जी, अध्यक्ष सनत एडवोकेट, महामंत्री योगेन्द्र जैन बब्लू , नवागढ़ गुरुकुलम के महामंत्री प्रो. पी.के. जैन, प्रचारमंत्री डॉ. सुनील संचय , वीरचन्द्र नेकोरा,
कोषाध्यक्ष राजकुमार चूना, अशोक मैनवार, सुरेंद्र सोजना, इंजी. शिखरचंद जैन, चंद्रभान जैन, मनीष संजू आदि ने नवागढ़ पर पीएचडी उपाधि प्राप्त करने पर डॉ. अर्पिता रंजन को बधाई, शुभकामनाएं प्रेषित की हैं।