प्रथम तीर्थंकर सहित 5 तीर्थंकरों की जन्मस्थली, कर्मस्थली अयोध्या की पहचान श्रीराम जन्मभूमि से की जाने लगी है, हमारा प्राचीन इतिहास समेटा जा रहा है, छोटा किया जा रहा है। पर क्या आपको मालूम है कि अयोध्या में जब श्री राम लक्ष्मण आदि चारों भाई तब किसी तीर्थंकर का काल था? जी हां, वह समय 20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथ जी का काल था, जिनका जन्म राजगृही में हुआ और उनके चारों कल्याणक हुये। संकटमोचक कहा जाता है, वैसे सब तीर्थंकर गुणों में बराबर हैं, पर शनि के प्रकोप से बचाने व संकट हरने के लिये नीले रंग के मुनिसुव्रतनाथ जी का ही स्मरण किया जाता है।
आपकी आयु 30 हजार वर्ष थी, 7499 वर्ष एक माह यानि साढ़े सात हजार वर्ष से 11 माह कम। आप समोशरण के माध्यम से ज्ञान को प्राकशित करते रहे। और जब आयु मात्र एक माह रह गई तब आप इसी निर्जर कूट पर पहुंच गये। श्री सम्मेद शिखरजी में ऊंची पुष्पदंत की टोंक, फिर पदमप्रभु की टोंक से यहां पहुंचते हैं और यहां से फिर चंदाप्रभु की टोंक के लिये 1 किमी जाना पड़ता है।
हां, तो इसी निर्जर कूट पर मात्र एक समय में – सैकेंड का लाखवां हिस्सा, इतनी देर में करोड़ों किमी ऊपर सिद्धालय में जाकर परमानेंट विराजमान हो गये। जन्म-मरण 84 लाख योनियों के चक्कर से पूरी तरह फ्री अनंत चतुष्टय के धारी। आपके साथ हजार मनिराज भी मोक्ष गये हैं, इसी कूट से 99 कोड़ा कोड़ी 7 करोड़ 9 लाख, 9999 मुनराज सिद्ध हुये हैं। यहां की निर्मल भाव से वंदना करने से एक करोड़ प्रोषध उपवास के बाराबर फल लिता है।
फाल्गुन कृष्ण बारस शुभ तिथि को जैनधर्म के बीसवे (२० वे ) तीर्थंकर देवाधि देव १००८ श्री मुनिसुव्रत नाथ भगवान जी के मोक्ष कल्याणक