13 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
11 माह हो गए थे, कठोर तप करते करते, तब वैशाख कृष्ण नवमी को, जो इस वर्ष शुक्रवार 14 अप्रैल को आ रही है। उसी दिन पूर्वान्ह काल में नील वन के,चंपक वृक्ष के नीचे, हमारे 20 वे तीर्थंकर श्री मुनीसुव्रत भगवान को, राजगृही नगर में ,केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई । सौधर्म इंद्र की आज्ञा से कुबेर ने तत्काल ढाई योजन विस्तार के समोशरण की रचना की यानी 30 किलोमीटर विस्तार का। आपका केवलीकाल 7499वर्ष और 1 महीने का था।
आपके 18 गणधरों में श्री मल्लीनाथ मुख्य गण धर थे और इसी के एक दिन बाद, यानी वैशाख कृष्ण दशमी का दिन आता है, जिस दिन आप का जन्म और तप कल्याणक भी है। यानी 1 तीर्थंकर 2 दिन और 3 कल्याणक, वैशाख कृष्ण दशमी को आपका, राजगृही नगर के महाराजा सुमित्र जी की महारानी पद्मावती जी के गर्भ से जन्म हुआ । आपकी आयु 30000 वर्ष थी और कद था 120फुट। आपने 15000 वर्ष तक राज किया और फिर वैशाख कृष्ण दशमी को ही प्रधान हाथी के जाति स्मरण को देखकर आपके अंदर वैराग्य की भावना बलवती हो गई। तथा 1000 राजाओं के साथ राजगृही नगर के, नील वन में, चंपक वृक्ष के नीचे कायोगत्सर्ग मुद्रा धारण कर तप में लीन हो गए ।
भगवान मुनिसुव्रतनाथ जी का जीवन परिचय
प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर है । मुनिसुव्रतनाथ जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को राजगृही में हुआ था । प्रभु के पिता का नाम सुमित्र तथा माता का नाम पद्मावती था । प्रभु के शरीर का वर्ण श्याम (काला) था तथा प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का प्रतीक चिह्न कछुआ था ।
प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का जन्म हरिवंश में हुआ था । प्रभु अरिष्टनेमी जी और प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का वर्णन हरिवंश पुराण में विस्तार के साथ हुआ है ।
प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी के समय रामायण की घटना घटित हुई थी , जैन मान्यतानुसार इनके शासन काल में आठवें बलदेव पद्म जी (राम जी) तथा आठवें वासुदेव लक्ष्मण जी हुये । तथा इनके शासन काल में प्रतिवासुदेव के रूप में रावण (दशानन) हुये थे ।
प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी की आयु 30,000 वर्ष थी तथा प्रभु के देह की ऊंचाई धनुष थी । इसके पश्चात प्रभु ने वैशाख कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की , दीक्षा के समय प्रभु को मनः पर्व ज्ञान की प्राप्ती हुई और प्रभु चार ज्ञान के धारक हो गये ।
प्रभु के साधनाकाल की अवधी 11 माह की थी । 11 माह के पश्चात वैशाख कृष्ण नवमी के दिन प्रभु को निर्मल कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई , प्रभु सर्वज्ञ , जिन , केवली , अरिहंत प्रभु हो गये । प्रभु ने चार घाती कर्मो का नाश कर परम दुर्लभ कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई थी ।
इसके पश्चात् प्रभु ने चार तीर्थो की साधु/ साध्वी व श्रावक/ श्राविका की स्थापना की और स्वयं तीर्थंकर कहलाये । प्रभु का संघ विस्तृत था , प्रभु मुनिसुव्रत के संघ में गणधरो की संख्या 18 थी । इसके पश्चात प्रभु ने सम्मेद शिखरजी में फाल्गुण कृष्ण द्वादशी के दिन निर्वाण प्राप्त किया । प्रभु के मोक्ष के साथ ही प्रभु ने अष्ट कर्मो का क्षय कर सिद्ध हो गये ।
प्रभु जन्म – मरण के भव बंधनो को काट कर हमेशा के लिए मुक्त हो गये ।
बोलिए 20 वे तीर्थंकर श्री मुनीसुव्रत नाथ भगवान जी के जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक की जय जय जय।