सबसे रखो संबंध जल से चिपकाने के समान, लेकिन धर्म से रखो फेवीकोल जैसा जोड़, कोई छुड़ाये पर छूटे नहीं – मुनि विहर्ष सागर

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 30 जुलाई 2021
ग्वालियर। मुनि श्री विहर्ष सागरजी ने चम्पाबाग धर्मसभा में कहा कि सम्यकदर्शन से युक्त जो सम्यकज्ञान है। वीर शासन जयंती को मनाने का तरीका यह है कि जब हमें ज्ञान मिलें, उस ज्ञान से हम अपने जीवन में परिवर्तन कैसे करें। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हमारे प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।

जब भरत चक्रवर्ती अपने घर पर थे तो उन्हेें एकसाथ तीन सूचनाएं मिलीं- आपको सुंदर पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, दूसरी पिताजी प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को केवलज्ञान हो गया है, तीसरी सूचना मिली कि आपकी आयुध शाला में चक्र रत्न की प्राप्ति हुई है। तीन चीजें एकसमय पर मिली, लेकिन वे पिता के दर्शन के लिये गये जिन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह पुण्यशील, महापुरुष की पहचान है। हम लोग धर्म अनुकूलता का करते हैं। सुबह जरा सा प्रमाद आ जाए तो मंदिर का दर्शन ही छोड़ देते हैं। कोई काम हो तो सबसे पहले मंदिर छोड़ने को तैयार रहते हैं।

आचार्य श्री ने कहा है ज्ञान वही जिससे जीवन चेत जाए। वीर शासन जयंती यही संकेत देती है कि हमें समझदार बनना चाहिए, जो समझ जाता है उसका संसार अल्प बन जाता है। ज्ञान से अपने एक-एक कदम पर ध्यान दो कि मेरा क्या करना उचित होगा? धर्म को ऐसे अंगीकार करो, सबसे रखो संबंध जल से चिपकाने के समान, लेकिन धर्म से रखो फेवीकोल जैसा जोड़, कोई छुड़ाये पर छूटे नहीं।