ऐसा संयोग बैक टू बैक लगातार बिना ब्रेक पहली बार हुआ -तीन दिनों में 5 कल्याणक भी क्रम से, आज फाल्गुन कृष्ण द्वादशी 20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत नाथ जी का मोक्ष कल्याणक पर्व

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ऐसा संयोग बिना ब्रेक पहली बार हुआ -तीन दिनों में 5 कल्याणक भी क्रम से आये हैं, 25 को गर्भ कल्याणक , 26 को जनम, तप और ज्ञान कल्याणक तथा आज 27 को मोक्ष कल्याणक-

इस बार एकादशी का क्षय है, इसलिये लगातार तीन दिन 25, 26, 27 फरवरी, बैक टू बैक कल्याणक दिवस हैं। 25 को फाल्गुन कृष्ण नवमी के बाद 26 को दशमी, जिस दिन एकादशी को आते कल्याणकों को मनाते हैं इस दिन दो तीर्थंकरों के तीन कल्याणक मनाये और आज है –

27 फरवरी : फाल्गुन कृष्ण द्वादशी
20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत नाथ जी का मोक्ष कल्याणक पर्व

7499 वर्ष एक माह समोशरणों में अपनी दिव्य ध्वनि से लोक का कल्याण करते रहे तब आयु कर्म के क्षीण होने का समय जानकर 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत नाथ जी पहुंच गये सम्मेदशिखरजी पर पदमप्रभु भगवान की मोहन कूट से आगे निर्जर कूट पर। एक माह के भोग निवृति काल के बाद फाल्गुन कृष्ण द्वादशी (जो इस वर्ष रविवार 27 फरवरी को है)। एक हजार मुनियों के साथ श्रवण नक्षत्र में एक समय में सिद्धालय पहुंच गये। इस कूट से 99 कोड़ा कोड़ि 97 करोड़ 9 लाख 999 महामुनिराज मोक्ष गये हैं। आपके शासन काल में हुये बलदेव मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र और नारायण उनके भ्राता लक्ष्मण व प्रतिनारायण रावण को भी पूरा जगत जानता है।
बोलिये 20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत नाथ जी के मोक्षकल्याणक की जय-जय-जय।

प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी का ज्ञानकल्याणक
हुण्डावसर्पिणी काल के कारण, तीसरे काल में ही जन्म लेकर मोक्ष जाने वाले प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जी अप्सरा नीलांजना के नृत्य करते-करते आयु समाप्त होने पर वैराग्य हो गया था। आपने शेष 23 तीर्थंकरों के कुल तप वर्षों के योग से भी दोगुना से ज्यादा तप किया एक हजार वर्ष और पहली बार महामुनिराज के रूप में आहार भी एक वर्ष से ज्यादा समय के बाद लिया (399 दिनों बाद। एक हजार वर्ष के कठोर तप के बाद पुरिमतालपुर नगर के शकतस्य उद्यान के वट वृक्ष के नीचे पूर्वाह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। इस नगर के तब शासक उन्हीं के पुत्र और भरत चक्रवर्ती के छोटे भाई वृषभसेन थे, जो प्रथम तीर्थंकर के 84 गणधरों में प्रथम गणधर बने।
धर्ममय परिवार में ऐसा ही होता है। आपका सबसे विस्तृत 144 किमी विशाल समोशरण की अष्ट भूमियों की रचना की थी कुबेर ने। आपकी दोनों पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी भी आपकी प्रमुख आर्यिका बनीं।

एकादशी को ही 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी का जन्म-तप कल्याणक
इस वर्ष फाल्गुन कृष्ण एकादशी का क्षय है, इसलिये कल्याणक एक दिन पूर्व 26 फरवरी दशमी को ही मनाते हैं। सिंहपुर नगर के महारजा विष्णुराज की महारानी सुनंदा (वेणु देवी) के गर्भ से आपका जन्म होता है और इस दिन तक लगातार 15 माह कुबेर दिन के तीनों पहर रत्नों की बरसात करता रहता है। आपकी आयु 84 लाख वर्ष की थी। रंग तपे हुये सोने के समान और कद 480 फुट उतंग। शीतलनाथ भगवान जी के 101 सागर में 66 लाख 26 हजार वर्ष कम, वर्ष बीत जाने पर 21 लाख वर्ष कुमार काल के बाद 42 लाख वर्ष तक आपने राजपाट संभाला और फिर एक दिन बपसंत लक्ष्मी का तारा देखकर आपको वैराग्य की भावना बलवती हो जाती है और आप उसी फाल्गुन कृष्णा एकादशी को राजपाट पुत्र श्रेयस्कर को सौंप सिंहपुर नगर के मनोहर वन में विमल प्रभा पालकी से पहुंच जाते है। पंचमुष्टि केशलोंच कर तेदू वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग मुद्रा में तप करने लगते हैं, आपको ऐसा करते देख एक हजार और राजा दीक्षा ले लेते हैं।

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