योगेशचन्द की कोई पुस्तक कभी टोडरमल स्मारक में न पढाई गई है और न पढ़ाई जाएगी: डॉ. हुकुमचंद भारिल्ल

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देशभर में दिगम्बर जैन मुनियों की निंदा करने वालों के खिलाफ मुहिम चलाने वाले दिगम्बर जैन मुनिधर्म रक्षा समिति के संयोजक रवीन्द्र जैन पत्रकार ने 24 जनवरी रविवार को जयपुर में पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के महामंत्री, जानेमाने विद्वान डॉ. हुकुमचंद भारिल्ल जी से मुलाकात की और मुनिनिंदक योगेशचंद द्वारा पिछले दो साल से की जा रही मुनि निंदा के बारे में उन्हें विस्तार से जानकारी दी। डॉ. भारिल्ल ने स्पष्ट कहा कि हम योगेशचन्द जैसे लोगों की इस प्रकार की प्रवृत्ति को पसंद नहीं करते। उन्होंने कहा कि हमारे संस्थान से एक हजार छात्र निकले हैं, लेकिन उसको छोड़कर किसी अन्य ने ऐसा कार्य नहीं किया है, यदि हम ही उन्हें यह सब सिखाते तो क्या अन्य लोग भी ऐसा ही नहीं करते? उन्होंने कहा कि 3 जनवरी को भोपाल में मुनिभक्त सम्मेलन के बाद उन्होंने अपने सभी वर्तमान एवं पूर्व छात्रों, ट्रस्ट से जुड़े शास्त्रियों को पत्र भेजकर कहा है कि मुनि निंदा सहित सभी प्रकार के विवादों से बचें और सिर्फ धर्मध्यान व स्वाध्याय करें।

अपने निजी प्रवास पर जयपुर पहुंचे रवीन्द्र जैन पत्रकार ने वयोवृद्ध विद्वान डॉ. हुकुमचंद भारिल्ल से उनके निवास पर पहुंचकर उनकी कुशल क्षेम पूछी और इस बात के लिए साधुवाद दिया कि योगेशचंद प्रकरण में उन्होंने सबसे पहले पत्र जारी कर इस सन्दर्भ में योगेशचंद से अपनी असहमति व्यक्त कर दी थी। इसके अलावा डॉ. भारिल्ल ने अपने प्रवचन में योगेशचंद को उसके कृत्य के लिए क्षमा मांगकर इस प्रकरण को यहीं समाप्त करने का सुझाव भी दिया था। चर्चा में डॉ. भारिल्ल ने कहा कि योगेशचंद की पुस्तक जैन श्रमण स्वरूप और समीक्षा उन्होंने आज तक न तो देखी है और न ही पढ़ी है। उन्होंने कहा कि यह बात बिल्कुल गलत है कि टोडरमल स्मारक में उक्त पुस्तक पढ़ाई जाती है। डॉ. भारिल्ल ने कहा कि योगेशचंद की पुस्तक की एक भी प्रति हमारे यहाँ नहीं है। वर्तमान प्रकरण के बाद उन्होंने सख्त निर्देश दिए हैं कि योगेशचंद की पुस्तक स्मारक में पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगी। डॉ. भारिल्ल ने स्वीकार किया कि प्रवचन में उनके द्वारा की गई अपील के बाद योगेशचंद ने दूरभाष पर उनके संपर्क कर उन्हें आश्वस्त किया था कि यदि उसके सभी न्यायालयीन प्रकरण वापिस ले लिये जाए तो वह माफी मांगने को तैयार है। इसके लिए इस बात की पुख्ता व्यवस्था की जाए कि इस प्रकरण में उनके विरुद्ध लंबित सभी केस वापिस हो जायेंगे और भविष्य में उन्हें इस सम्बन्ध में परेशान नहीं किया जाएगा, तो यह कार्य संभव है

डॉ. भारिल्ल ने कहा कि वे चाहते हैं कि सामाजिक सौहार्द के लिए यह प्रकरण यहीं समाप्त हो और भविष्य में भी कोई भी व्यक्ति मुनिनिंदा न करे। डॉ. भारिल्ल ने चर्चा में कहा कि वे स्वयं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, आचार्यश्री विद्यानंदजी महाराज एवं अन्य अनेकों साधू-संतों के सतत संपर्क में रहे हैं और कभी उनके कारण विवाद की स्थिति नहीं रही। वे सदैव समन्वय से कार्य करते रहे हैं।

इस चर्चा में रवीन्द्र जैन पत्रकार ने डॉ. भारिल्ल को बताया कि योगेशचंद और उसके कुछ साथियों के कारण किस तरह देशभर में मुनिभक्तों में आक्रोश है। रवीन्द्र जैन ने कहा कि 43 साल पहले फलटण में सम्मेलन हुआ था जिसमें प्रस्ताव पारित हुए थे कि वर्तमान के मुनियों की निंदा करने वालों को दिगंबर जैन नहीं माना जाएगा। रवीन्द्र जैन ने कहा कि 43 साल बाद फिर से भोपाल में चार प्रस्ताव पारित हुए हैं। लेकिन इस बार की खास बात यह है कि मंच पर न तो साधु थे और न ही त्यागी व्रती। रवीन्द्र जैन ने कहा कि देशभर में मुनियों के प्रति श्रद्धा और सम्मान बढ़ा है। इस मुद्दे पर यदि जैन संत स्वयं मुखर हुए तो मुनिनिन्दा करने वालों की चूलें हिल जाएंगी। उन्होंने डॉ. भारिल्ल से आग्रह किया कि वे अपने प्रभाव का उपयोग अपने समर्थकों व विचारधारा के लोगों पर करें और समाज में ऐसा माहौल बनाएं कि भविष्य में कभी भी किसी भी रूप में मुनिनिंदा न हो।