दिगंबर मुनियों की निंदा करने वाले मिथ्या दृष्टिओं को दर्पण

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कुंद कुंद के नाम को लेकर खुद का बिगुल बजाते हो।
जिन शासन में मुनि नहीं है हमको यह बतलाते हो।
कहते है शिथलाचर ये फैला मुनि नहीं अब होते है।
खुद को बो भगवान बता कर निश्चय नय में जीते है।
मुनियों की निन्दा करके तुम अपना नाम कमाते हो।
उनके नाम की रोटी सेके, अपना पंथ चलाते हो।
कुंद कुंद के वंशज हम है मुनियों का ये मान रहेगा।
जब तक सूरज चांद रहेगा मुनियों का सम्मान रहेगा।
शायद तुमने शांति-वीर- शिवसागर को ना देखा है।
आदि सागर-महावीर-सन्मति से कुछ ना सीखा है।
अभी वक्त है जाकर विद्या और विशुद्ध सागर को देखो
उनकी चर्चा और चर्या से आज धर्म के मर्म को सीखो।
फिर भी मुनि मुद्रा भान ना हो तो भाई तुम एक काम करो।
अपने पर धिक्कार करो,चुल्लू पानी में डूब मरो।
रचनाकार – विकर्ष जैन “शास्त्री”