25 अगस्त 2022/ भाद्रपद कृष्ण त्रियोदिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
आजादी का अमृत महोत्सव मनाए हुए 10 दिन हो गए और क्या इस 75 वीं वर्षगांठ पर हमने उनको याद किया, जिन्होंने इस आजादी के साथ, बटवारा होने पर , सीमा के उधर से इधर आने के लिए, अपने जीवन को असमय छोड़ना पड़ा । भरी हुई ट्रेनें, बॉर्डर पार से भरकर चलती और जब बॉर्डर पार करके यहां रूकती तो उस में से केवल लाशों के ढेर निकलते ।
कई पेड़ पर लटके हुए थे ,कोई दीवारों पर आपको यह तक विश्वास नहीं होगा कि उस समय इधर बॉर्डर पार करने के लिए, महिलाएं जब चलती अपने साथ मिर्ची का पाउडर साथ में रखती। उन्हें जान के साथ इज्जत की भी चिंता थी और तब मुल्तान में जैन परिवार भी थे। ट्रेन से जाना जान पर खेलना होगा , इसलिए उन परिवारों ने दिल्ली संपर्क किया कि एक विमान की व्यवस्था कर दी जाए। पर वहां विमान नहीं मिला, तब जाकर मुंबई संपर्क किया।
वहां से एक विमान आया। तब इतने बड़े विमान नहीं होते थे , छोटे विमान थे। वह आया और मुल्तान एरोड्रम पर रुक गया । पायलट ने सामान देखा। कई लकड़ी की पेटीऔर कुछ लोग। उसने साफ कहा इन पेटियों को यही छोड़ना होगा, क्योंकि आप के साथ इन पेटियों के वजन से विमान की क्षमता से 3 गुना वजन हो रहा है , और यह लेकर विमान रनवे से उड़ नहीं पाएगा। क्या करें, जमीन छूट गई, मकान छूट गई, अब कपड़े , जरूरी सामान, क्या करें इसका और साथ में कुछ और पेटियां भी थी । क्या इनको छोड़ दे। तब उन्होंने हट की। पायलट परेशान था। उसने कहा मैं क्या करूं। अगर जाना चाहते हो तो, इनको छोड़ दो। जब काफी बात होती रही, तब उन जैन परिवारों ने उन सब पेटियों को वहीं छोड़ दिया, जिनमें उनके सामान ,आभूषण कपड़े थे और तब भी 10-15 पेटियां रह गई। उन्होंने कह दिया इनको तो साथ लेकर जाना होगा ।
पायलट ने साफ कह दिया मैं इनको नहीं ले जा पाऊंगा, रनवे से ऊपर विमान नहीं उड़ पाएगा। उनमें 5 साल के छोटे बच्चे भी थे और 60 साल 70 साल के वृद्ध भी। सब ने साफ कह दिया कि पेटियों को ले जाओ, चाहे हमें छोड़ जाओ। पायलट हैरान था , इन्हें पेटियों की चिंता है, पर अपनी जान की परवाह नहीं। उसने हर सवारी के लिए तब ₹400 लिए थे यानी आज की तारीख में जो कीमत चार लाख से ज्यादा होगी । एक प्रकार से लूटे गए थे जैन लोग । जब सब अड़े रहे कि केवल इन पेटियों को ले जाओ, हमें छोड़ जाओ। तब उसने कहा मैं एक बार प्रयास कर लूंगा , अगर विमान नहीं उठ पाया , तो जिम्मेदारी तुम्हारी होगी, फिर मैं खाली विमान लेकर वापस लौट जाऊंगा , सबने स्वीकार कर लिया और फिर पेटियों को रखा जहाज के अंदर और फिर लोग बैठे ।
पायलट ने पीछे देखा हैरान हो गया, हर कोई णमोकार मंत्र जप रहा है, कुछ और जाप ऐसे ऐसे, जिनको वह जानता नहीं था । अंग्रेजी पायलट परेशान था , क्या करूं, नहीं उड़ पाएगा। उसने रनवे पर स्टार्ट किया और दौड़ा दिया विमान को रनवे के ऊपर। जानते हैं आप जो अपनी क्षमता से 3 गुना सामान लेकर चल रहा था , वैसे उसने आकाश में उड़ना शुरू कर दिया। उसका निशान ऊपर की ओर था , पर जब ऊपर आकाश में विमान पहुंचा, अब वह सीधा उड़ रहा था और विमान के पायलट के चेहरे पर , अब उस ठंड में भी पसीने की बूंदे साफ झलक रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि विमान उड़ रहा है या नीचे जमीन पर रुका हुआ है । वह परेशान था ऐसा क्या जादू हो गया है। बढ़ते बढ़ते उसने सीमा पार की और पहुंच गया जोधपुर के हवाई अड्डे पर । उतारा उसने सबको, लोगों ने पायलट को धन्यवाद दिया।
वह भी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसने कहा मैंने आज तक जीवन में हजारों किलोमीटर , कई दशकों से, विमान उड़ा रहा हूं, पर मैंने आज तक नहीं उड़ाया जो फूल की तरह हल्का था, जबकि वजन 3 गुना था। आखिर जादू किया था आप लोगो ने, जो जाप कर रहे थे । सभी मुस्कुराए और एक स्वर में बोले , यह हमारे मंत्र जाप के साथ, इन पेटियों का भी चमत्कार था। हैरत के साथ, पायलट ने पूछा, क्या है इनमें । उन्होंने कहा इनमें हमारे भगवान हैं , जो हम मुल्तान से लेकर आए हैं । अपनी जान की परवाह नहीं , पर इनकी सुरक्षा हमें जरूरी है।
इसीलिए आपसे कहा था, हमें छोड़ दो, पर इन पेटियों को भारत पहुंचादो । पायलट ने तभी जूते उतारे और झुक कर सभी पेटियों को नमस्कार किया। इतना चमत्कार होता है जैन प्रतिमांओं से। आज उसने पहली बार अपनी आंखों से देखा था l इनमें श्रीजी की दर्जनों प्रतिमाएं जयपुर के आदर्श नगर स्थित श्री मुल्तान महावीर जैन मंदिर में विराजित हैं।
ऐसा खौफ कि हर दम हाथों में मिर्च पाउडर रखते : प्रकाश देवी
मैं उस वक्त 10 साल की थी, चौथी में पढ़ती थी। हमारा रेशम का कारोबार था। उस वक्त दंगाइयों का ऐसा डर था कि घर में हर समय हाथ में मिर्च पाउडर रखते थे।
मुझे आज भी याद है- मुल्तान का ऐरोड्रम हमारे घर से 6 या 7 किलोमीटर ही दूर था, लेकिन वो यात्रा ऐसे थी जहां हर तरफ जान का खतरा था।
प्लेन में कौन-कौन बैठेगा, इसके लिए रेडियो पर एक दिन पहले देर शाम 20-25 लोगों के नाम लिए जाते थे। हर घर में रेडियो तक नहीं होते थे, तब सभी उसके घर इकट्ठा होते थे, जिसके घर रेडियो होता था। रेडियो में हमने मेरे माता-पिता व मेरा नाम सुना।
पिता ने तांगे का इंतजाम किया और उसमें बैठ कर हम गलियों में से होते हुए एरोड्रम पहुंचे। मुख्य सड़क से जाना मौत को दावत देने जैसा था। सड़कें खून से लाल थीं।
किसी तरह हम एरोड्रम पहुंचे। जब श्रीजी की प्रतिमाओं से भरी पेटियां लोड हो गईं, तब सभी ने प्लेन में बैठना शूरू किया था। पायलट ने अधिक वजन की बात की, तो सभी प्लेन से उतरने को तैयार हो गए थे।