माउंट कैलाश : ऋषभदेव की निर्वाण भूमि अष्टापद तीर्थ का प्राचीन जैन ग्रंथों में कैलाश नाम से भी उल्लेख है। जैनाचार्य श्री जयंतविजयजी द्वारा रचित गुजराती ग्रंथ “पूर्व भारत नी जैनतीर्थ भूमियों” में भी कैलाश नाम से अष्टापद तीर्थ का वर्णन है।
शोधकर्ताओं के अनुसार शिव जिस कैलाश पर्वत पर तपस्या करते थे वहीं पर्वत ऋषभदेव की भी निर्वाण भूमि है।
तिब्बती लोग इसी पर्वत को प्रथम बुद्ध आदिबुद्धा की निर्वाण भूमि “केंग रिनपोचे” कहते हैं। शोधकर्ताओं अनुसार यह पर्वत कुदरती नहीं है इसे विशेष प्रकार से तराशकर बनाया गया है।
इस पर्वत के चारों दिशाओं में खाई है नीचे की तरफ चतुर्भुज और ऊपर की तरफ गोल है इस पर्वत पर पहुंचा नहीं जा सकता,मात्र 4 मील दूर से ही इस पर्वत के दर्शन होते हैं।
जैन शास्त्रों अनुसार ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने यहां 24 तीर्थंकरों का एक विशेष प्रकार का चार मुख वाला सिंहनिषधा नामक मंदिर बनवाया था। जो पुरा बर्फ से ढक चुका है या लुप्त हो चुका है।