मनुष्य जीवन में सबसे महत्वपूर्ण शब्द है मां…। मां जीवन में दुख और सुख, दोनों समय साथ देती है। मां का हृदय वात्सल्य से परिपूर्ण होता है। अपनी सन्तान के लिए मां शक्ति नहीं होने पर भी परमात्मा से टकरा जाती है। पूरा जीवन संतान को समर्पित करने वाला इस संसार में एकमात्र मां ही है।
मां कभी बच्चों से अपेक्षा नहीं रखती। बच्चों के प्रति प्रेम से लेकर अन्य सांसरिक जुड़ाव, मां का हृदय निस्वार्थ होता है। संतान के पैदा होने से लेकर उसके जीवित रहने तक उसके विकास, उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर बढ़ते देखने का स्वप्न मात्र मां ही देखती है।
संतान का जीवन खुशियों और उल्लास से भरा रह्वहे। चेहरे पर मुस्कान बनी रहे, यही उसके जीवन का लक्ष्य होता है। संतान के पैदा होने पर सबसे अधिक खुशी परिवार के किसी सदस्य को नहीं, सिर्फ मां को सबसे अधिक होती है। संतान के बड़ा होने पर जीवन में निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए दूर जाने अथवा परिवार से विलग होने पर भी मां अपने दुख को अंदर ही समाहित कर प्रसन्नता व्यक्त करती है कि उसकी संतान की प्रसन्नता में ही वह प्रसन्न है। तात्पर्य यह है कि मां सुख और दुख दोनों का अनुभव एक साथ करती है।
मां का जितना वात्सल्य बच्चे के लिए होता है, उतना संसार में किसी के लिए नहीं होता। संतान मां को खुशी दें अथवा नहीं दें, लेकिन मां के मन से कभी बच्चों के लिए दुर्भावना नहीं निकलती, क्योंकि मां ने बच्चे को नौ माह तक कोख में रखकर उसके प्रति वात्सल्य का भाव बनाया।
यह भाव तब तक समाप्त नहीं हो सकता, जब तक मां शब्द है। सागर की गहराई को तो मापा जा सकता है, लेकिन मां के मन की गहराई को कभी मापा नहीं जा सकता। उसे सीमित शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
मां के मन को कभी दुखी नहीं करना चाहिए। मां के मन को दुख पहुंचाने वाला कभी किसी का विश्वास पात्र नहीं बन सकता। जीवन के किसी भी मोड़ पर मां का साथ छोडऩे वाला अपने लक्ष्य पर नहीं पहुंच सकता। मां के आशीर्वाद के बिना जीवन में सफलता की प्राप्ति नहीं हो सकती।
आज हम जीवन में जो सफलता प्राप्त कर रहे हैं, वह परोक्ष और अपरोक्ष रूप से मां के आशीर्वाद का ही परिणाम है। यदि जीवन में कभी बुरा समय आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि मां का आशीर्वाद अब उसके साथ नहीं है।
इन हालातों में मनुष्य को तत्काल मां की शरण में चले जाना चाहिए। मां की शरण में जाते ही सारे दुख, कष्ट, चिंता आदि का शमन आरंभ हो जाएगा।
कहा जाता है कि मां जीवन की पहली पाठशाला है। उसकी शिक्षा को ग्रहण करने वाला परमात्मा बन जाता है और मां की शिक्षा से वंचित मनुष्य के जीवन में भटकाव के अतिरिक्त कुछ नहीं है। हमें मां के मन की गहराई को मापने के लिए समर्पण शब्द को जीवन में उतरना होगा, तभी हम मां शब्द से सही अर्थों में परिचित हो सकेंगे।
मनुष्य जीवन में सभी प्रकार के ऋण से मुक्त हो सकता है, लेकिन मां के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते हैं। कई बार हम यह सोचते हैं कि मां ने मेरी कोई गलत ी माफ कर दी होगी, लेकिन उस समय मां के हृदय पर जो बीतती है, उसका अंदाजा हम नहीं लगा सकते हैं।
मनुष्य जीवन में मां का इतना महत्व होना चाहिए कि उसके आगे सब मिथ्या है। मां के श्रेष्ठ सहाकार, मित्र नहीं हो सकता। कोई भी कार्य करने से पूर्व मां का सहारा लेने से सफलता अवश्य कदम चूमती है।