15 मई 2024/ बैसाख शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
दिल्ली के भारत मण्डपम जैसे जितने भी जैन कार्यक्रम होते रहे हैं, उनमें कुछ बातें मानो शर्तानुसार ‘सेन्सर्ड’ प्रतिबन्धित रहती हैं, जैसे गिरनार मुद्दा, जैन तीर्थों के बदलाव। अब एक बार फिर आचार्य श्री विद्यासागरजी के गत वर्ष दर्शन करने वाले, उनकी समाधि पर भाजपा अधिवेशन में गुणगान करने के बावजूद, जैन समाज की दुखती रग पर रख ही दिया हाथ, गुजरात के सौराष्ट्र की चुनावी सभा में, कह सकते हैं कि 11 साल बाद फिर जैनों के जख्मों को हरा कर दिया। हरा तो तब भी हो गया था, जब रोपवे के उद्घाटन में जैनों को गिरनार की सभी टोकों से भुलाकर, दत्तात्रेय, गोरखनाथ, अधोड़ी बाबा, अम्बा देवी से अपना भाषण दिया था। पर इस बार तो गहरे घावों में मानो कुरेद कर उस पीड़ा से कराह उठा जैन समाज।
गिरनारी संतों से आशीर्वाद लेते हुए उन्होंने मुक्तानंद और महेश गिरि का ही नाम लिया आशीर्वाद के लिए। जैन समाज इन दोनों नामों को कैसे भूल सकता है। 2013 की पहली सुबह जब दुनिया नये वर्ष का हर तरफ जश्न मना रही थी, तब जैन मुनिराज दूसरे बड़े सिद्धक्षेत्र गिरनार की पांचवीं टोंक, 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी की मोक्षस्थली के दर्शन करने के बाद बढ़ रहे थे। इधर पटाखों के शोर से आसमान गुंजायमान था, वहीं तब एक चाकू निकाल और बढ़ते मुनिराज की छाती पर उतर गया। दिगंबर मुनिराज श्री प्रबल सागरजी की छाती से खून की धारें निकल पड़ी और गिर पड़े, वो तड़पे नहीं। एक बड़े उपसर्ग को समझकर सब सह लिया, पर खून बहता जा रहा था। आरोप लगा तब मट्ठाधीश मुक्तानंद पर। हां, जैन समाज में एक भूचाल -सा आ गया। 48 घंटे में दबाव के चलते गिरफ्तारी भी हुई। तब नरेन्द्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, 03 जनवरी को उनका यह संदेश था, जो सान्ध्य महालक्ष्मी में भी प्रकाशित हुआ।
‘श्री प्रबल सागरजी महाराज पर हुए हमले से आहत आपकी संवेदनाओं का ई-मेल प्राप्त हुआ। श्री प्रबल सागरजी महाराज पर हुआ हमला बड़ी चिंता का विषय है और गुजरात सरकार ने इस पर तुरंत कार्यवाही की है।
इस घटना के महत्व को जानते हुए, गुजरात सरकार ने दोषी की तुरंत 03 जनवरी 2013 को गिरफ्तार कर लिया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इसके साथ ही गिरनार पर एसआईपी कांस्ेटबलों को भेज दिया है और अम्बाजी से दत्तात्रेय के बीच सीसीटीवी कैमरों का इंतजाम किया जाएगा। गुजरात के पुलिस विभाग ने इस पर तुरंत कार्यवाही की है। गुजरात के प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा करना राज्य सरकार का मुख्य उद्देश्य है और अपने लोगों की सुरक्षा के लिये हर कदम उठाया जाएगा तथा कानून का उल्लंघन करने तथा शांति भंग करने वालों को सजा दी जाएगी।
बड़ा ही संतुलित संदेश जारी हुआ, पर 11 साल में ना ही सीसीटीवी कैमरे लगे, न कांस्टेबलों की नियुक्ति हुई, केवल एक पांचवीं टोंक पर वो भी जैनों के विरोध में अपनी सहभागिता ही निभाता है।
मुक्तानंद ने कई संतों से दुर्व्यवहार किया, आचार्य श्री सुनील सागरजी से भी अपशब्द कहे, पर करनी का फल तो मिलता ही है, कोरोना काल में वो चल बसा। उसके बाद पूर्वी दिल्ली से सांसद रहे महेश गिरि को उस पद पर बैठना, पर दुर्व्यवहार नहीं रुका। संतों – भक्तों को धमकाना, मारना-पीटना, गाली-गलौच, चिमटे और तलवार भी निकाली गई, लहराई गई।
प्रधानमंत्री महोदयजी, न आपके वायदा अनुसार सुरक्षा मिली, न कैमरे लगे, न कोई चैक पोस्ट-कांस्टेबलों की नियुक्ति हुई और मोदी जी, न ही गुजरात हाईकोर्ट के 17 फरवरी 2005 के आदेश को माना गया, स्पष्ट रूप से अवमानना हो रही है। और अब संतों के साथ उनका नाम लेकर आशीर्वाद लेना, जैन समाज को चिंतन करने को मजबूर करता है कि ‘वसुदेव कुटुम्बकम्’ की बात करने वाले, सब को सुरक्षा देने का वादा करने वाले हम सबके प्रधानमंत्री जैनों के तीर्थों के प्रति, सुरक्षा के प्रति क्यों मौन रहते हैं? क्या वोटों के लिये खोपड़ियों की गिनती में जैनों को न्याय नहीं मिलेगा? कुछ भी कहें, हमारे प्रधानमंत्री तो ऐसे नहीं हो सकते? न ही होना चाहिए।
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