नर से नारायण, कंकर से शंकर, पाषाण से परमात्मा, तीतर से तीर्थंकर, की यात्रा की का नाम- #मेरी_भावना

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16 अगस्त 2022/ भाद्रपद कृष्ण पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जैन धर्म दर्शन के प्रख्यात विद्वान पंडित, लेखक, कवि स्वर्गीय जुगल किशोर जी मुख्तार “युगवीर” की कालजयी रचना ” मेरी भावना ” जीवन को जीवंत करने वाला जीवन शास्त्र है । इस अनमोल रचना में सभी धर्मों का समावेश है । विश्व बंधुत्व की भावना भाईचारे ओर सम्प्रदायिक सहिष्णुता को लिए हुवे है। मेरी भावना नर से नारायण कंकर से शंकर, पाषाण से परमात्मा, तीतर से तीर्थंकर, की यात्रा की का नाम है। यह सभी जाति धर्म देश समाज और भाषा की सीमा उन्मुक्त मानव से महामानव की यात्रा कराती है।

इस महान रचना के एक -एक शब्द में गागर में सागर भरा हुआ है। आज के वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में, विश्व का प्रत्येक प्राणी प्रतिदिन श्रद्धा, भक्ति, समपर्ण के साथ इस “मेरी भावना” को बोले तो उससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार प्रकृति में तो होगा ही साथ ही उसके जीवन पर भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा।जीवन जीवंत होने लगेगा। सभी नकारात्मक परिस्थितियॉ भी बदल जाएगी। इस “मेरी भावना” में प्राणी मात्र कल्याण के भावना निहित है । सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया की भावना निहित है। आज मेरी भावना को भारत ही नही, विश्व के समस्त विद्यालयो – महाविद्यालयो, शिक्षण संस्थाओ में प्रार्थना के रूप में बोला जाना चाहिए।

इसको पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। “मेरी भावना” का भाषा तात्विक विश्लेषण किया जाए, तो इसका एक एक शब्द बहुमूल्य है, विद्यार्थियों को इन शब्दों की व्याख्या का, इसके महत्व पर प्रकाश डाला जाए। इससे विद्यार्थी अपने जीवन के एक-एक क्षण का महत्व समझ सके। मेरी भावना कृति से जीव दया जीव रक्षा तथा सामाजिक बुराइयों से दूर रहने की प्रबल इच्छा शक्ति जागृत होगी।नैतिकता,सामाजिक परोपकार ,की भावना जागृत होगी। आज कल के बच्चों में सहनशीलता का अभाव देखा जाता है। सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से , खुद को बचाना बहुत बड़ी बात है। फ़ास्ट फूड की ओर बच्चे अग्रसर हो रहे है।

इस फ़ास्ट फूड के सेवन से , तरह तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे है। प्रकृति की हर विरासत चाहे नदी, वन, उपवन, पेड़, पौधे, पर्वत, सागर, नदिया ये सभी हमे देना सिखाती है। संसार प्रतिक्रिया मात्र है, जो दोगे वही मिलेगा । जैसी करनी वैसी भरनी वाला सिदान्त लागूँ है। मानव अपनी सोच हमेशा सकारात्मक रखे। “नजरें अपनी बदले नजारे बदल जायेगे, सबको अपना मानो सब आपके हो जायेगे।” अपनी सोच बदलने की परम आवश्यकता है । सबको बदलने की आवश्कता नही, खुद बदलो सृष्टि अपने आप बदल जाएगी। संसार को सुधारने का प्रयत्न नही करे। स्वयं सुधर जाए।यही भगवान महावीर स्वामी का दिव्य संदेश है। मेरे शब्द कोश में शब्द नही है। जिस दिन “मेरी भावना” हर व्यक्ति की मेरी भावना बन जाएगी, उस दिन यह धरती स्वर्ग से भी सुंदर हो जाएगी । यही भावना भाता हूं।

पारस जैन “पार्श्वमणि”पत्रकार कोटा (राज)*7877446646