(1) स्तम्भण मंत्र
(2) मोहन मंत्र
(3) उच्चाटन मंत्र
(4) वश्याकर्षण मंत्र
(5) जृम्भण मंत्र
(6) विद्वेषण मंत्र
(7) मारण मंत्र
(8) शांति मंत्र
(9) पौष्टिक मंत्र
1 स्तम्भन – जिन मंत्र ध्वनियों के द्वारा सर्प , व्याघ्र, सिंह, आदि ,भूत, प्रेत , पिशाच, आदि दैविक बाधाओं को , शत्रु सेना के आक्रमण को जहां के तहां निष्क्रिय कर स्तम्भित (कील) देना मंत्र का फल है।
(2) मोहन – जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा किसी को भी मोहित कर दिया जाये वह मोहन मंत्र है।
(3) उच्चाटन – जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा किसी के मन को अस्थिर, उल्लास रहित एवं विक्षिप्त, निरुत्साहित, स्थानभ्रष्ट हो जाये वह उच्चाटन मंत्र है।
(4) वश्याकर्षण- जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा इच्छित वस्तु या व्यक्ति वश में हो जाये, किसी का विपरीत मन भी बदल जाये वह वश्याकर्षणमंत्र है।
(5) जृम्भण मंत्र – जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा शत्रु , भूत ,प्रेत, व्यंतर, भी भयभीत हो वह मंत्र जृम्भण मंत्र है।
(6) विद्वेषण मंत्र – जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा कुटुम्ब, जाति, देश, समाज, राष्ट्रादि में कलह वैमनस्य हो जाये वह विद्वेषण मंत्र है।
(7) मारण मंत्र – जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा शत्रु, प्रतिकूल व्यक्तियों के प्राणों का वियोग हो वह मारण मंत्र है।
(8) शांति मंत्र – जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा भंयकर व्याधि, व्यंतर, भूत-पिशाचों की पीडा, क्रूर ग्रह – जंगम स्थावर, विष बाधा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्षादि, ईतियों और चोर आदि का भय शांत हो वह शान्तिमंत्र है।
(9) पौष्टिक मंत्र- जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा सुख समाग्रियों की प्राप्ति, सन्तान आदि की प्राप्ति हो वह मंत्र पौष्टिक मंत्र है।
* *वश्य, आकर्षण , उच्चाटन मंत्र में हूं का प्रयोग किया जाता है।
* *स्तम्भण , विद्वेषण ,मोहन मंत्र में नम: का प्रयोग किया जाता है।
* *पौष्टिक मंत्र के लिए वषट् का प्रयोग किया जाता है।
* *मारण मंत्र में फट् का प्रयोग किया जाता है।
* *मंत्र के अन्त में स्वाहा शब्द पाप नाशक ,मंगलकारक, तथा आत्मा की आंतरिक शांति को उद्बुद्ध करने वाला बतलाया है।*
बाल ब्रम्हचारी राजेश “चैतन्य” अहमदाबाद