इतिहास दुर्गुणों से नहीं क्षमा से बनता है
आचार्य कहते हैं कि इतिहास कांच के टुकड़े से नहीं, उज्ज्वल हीरों से बनता है। जीवन संग्राम में भाग लेने वालों इतिहास दुर्गुणों से नहीं, क्षमा से बनता है। ये धर्म क्या है, यह वो है जो आपको जगा दे, आपको झकझोर दे। जब अब जगेंगे तो आपको सावधान कर दें कि सूरज कहां उग चुका है, क्या काम पर नहीं जाना है।
जब सावधान हो जाओगे, काम पर जाने को तैयार हो जाओगे। अभी तक हम अनादिकाल से सोये पड़े हैं, बेहोश हैं, मूर्छित हैं। मगर आज तक जागे नहीं। क्योंकि हमने पर्व को परम नहीं माना। आपने तो घर में प्रोग्राम को, ब्याह शादियों को, उत्सव को पर्व मान लिया है। मगर आत्मा के कल्याण को पर्व नहीं माना, जब इसे पर्व मानोगे तभी आत्म कल्याण होगा। आचार्य बताते हैं कि जीवन धरती की भांति, घर की भांति है। यही आत्मा का स्वभाव है।
जिस प्रकार धरती पर कितने हल चला लो, कितना खोद लो मगर धरती कुछ नहीं देंगे। जब एक दाना डालोगे तो हजार-हजार दाने दे देंगी। यदि जीवन धरती की भांति बन जाए, इतना सहनशील हो जाए तो जीवन में कुछ होगा। आपको यदि संसार से पार होना है, तो आपको क्षमा को जानना होगा। आज तक आपने क्षमा को नहीं जाना, क्रोध को जाना है। क्रोध और क्षमा तीन-तीन प्रकार का होता है। पहला क्रोध मजबूरी, दूसरा स्वार्थ और तीसरा निश्चल। प्रतिकूलता में क्रोध न करो।