॰ जो बुलडोजर मंदिर तोड़ने गया, वो ही झुककर सफाई करने लगा
॰ सत्ता व प्रशासन की पूरे देश में थू-थू, सत्ता की चुप्पी पर विपक्ष के तीखे हमले
॰ 2o हजार की शांत रैली में न कोई श्वेताम्बर था, न दिगम्बर, सिर्फ और सिर्फ केवल जैन थे
॰ जगह-जगह रैलियां, दोषी बीएमसी अधिकारी पर होगी FIR, होटल वाले के अवैध निर्माण पर भी होगी कार्यवाही
22 अप्रैल 2025 / बैसाख कृष्ण नवमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
बुधवार, 16 अप्रैल, घड़ी सुबह के 9 बजा रही थी, मुंबई में अभी हलचल शुरू होने का समय था, पर इस समय सुस्त रहने वाला बीएमसी, चुस्त दिख रहा था। के वार्ड में ढाई सौ पुलिसकर्मी जिसमें महिला सुरक्षाबल भी था और साथ ही बुलडोजर भी। हरकत के लिए तैयार। पिछली शाम को ही कार्य समय के बाद एक नोटिस दिया था 30 साल पुराने पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर को। कारण था 15 अप्रैल तक स्टे था और 5 दिन अदालत बंद, अब 16 को खुले, उससे पहले काम तमाम कर दिया जाये। मंदिर के प्रमुख ट्रस्टी अनिल शाह उनकी चालों को नहीं भांप पाये। फिर भी सामान्य रूप से उसी शाम ई-मेल भेज दिया कि 16 को अदालत खुलने के दो घंटे तक रुक जायें, पर वहां तो इरादे कुछ और थे।
बिल्डिंग सोसाइटी के सेक्रेटरी और सामने रामकृष्ण होटल को चलाने वाले बिल्डर्स के साथ कौन-सा गठबंधन उस अधिकारी का था, कि अदालत के दरवाजे खुलने से पहले इधर बुलडोजर चला दिया, 2200 वर्ग फीट के जिनालय को गिराने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
रौंदी गई आस्था, छला गया विश्वास,
अहिंसक नहीं, अब कायर हैं हम सब,
नित मिटाये जायेंगे, अब हमारे इतिहास
मुंबई हाइकोर्ट को पता चला कि उधर बुल्डोजर चल रहा है। क्या थी ऐसी जल्दी कि अदालत की भी नहीं सुनी गई? इस सवाल का जवाब, बीएमसी के पास नहीं था। फिर 10 मिनट बाद कार्यवाही रोक कर पता लगाया कि दो दीवार छोड़ कर सब गिरा दिया। आस्था, विश्वास, श्रद्धा का चीर हरण एक जिनालय को गिराकर बेरहमी से अपनी मूंछें मरोड़ कर पूरा किया बीएमसी ने।
बड़ा अजीब संयोग था, जिसने तुड़वाया उसी के बुजुर्ग पिताजी सुबैया शेट्टी अपनी बीएमडब्ल्यू में बैठकर जिनालय टूटता देख रहे थे। कर्मों ने नहीं छोड़ा, बुलडोजर चला और उन्हें हार्ट अटैक आ गया, नानावटी हास्पीटल ले गये, पर कर्मों का खेल कैसे चलता है, किसी को नहीं पता। विदाई हो गई, सारे होटल भी बंद हो गये।
उधर मुंबई हाइकोर्ट ने अगली सुनवाई 30 अप्रैल तक यथास्थिति बनाये रखने को कह दिया। फिर जैन समाज की एक मीटिंग 17 अप्रैल शाम को विले पार्ले मंदिर में हुई। सभी सम्प्रदाय ने एकता का परिचय देकर स्पष्ट कह दिया कि मुंबई में जैन समाज पर पंथवाद हावी नहीं है।
महाराष्ट्र के मंत्री मंगल प्रभात लोढा के साथ मंदिर के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया, साथ ही राम कृष्ण होटल का सामूहिक बहिष्कार किया जाएगा।
निर्णय हुआ कि 19 अप्रैल को सफेद डेÑस में कांवली वाडी से अहिंसक रैली के वार्ड, बीएमसी कार्यालय तक जाएगी। उधर एक दिन पहले आचार्य श्री सुनील सागरजी के निर्देश से उनके सुशिष्य मुनि श्री सुयत्न सागरजी उस रैली को सम्बोधन के लिए 50 किमी लम्बा विहार के लिये बढ़ गये। वहीं शाम में एक श्वेताम्बर साधु ने उस होटल में जाकर कुछ पोस्टर आदि फाड़ने पर दो टूक चेतावनी देकर स्पष्ट कर दिया कि जैन समाज नहीं रुकेगा।
शनिवार सुबह प्रशासन की तैयारी पूरी थी, बेरीकेड लगाकर रास्ता रोका गया। आवश्यक पुलिस वाले खड़े हो गये। जैसे बढ़ने नहीं देंगे। पर हजारों का जैन समूह उस बेरिकेडिंग पर हंगामा नहीं मचा रहा, तोड़ फोड़ नहीं, हिंसा नहीं, देश विरोधी नारे नहीं, पत्थरबाजी नहीं और 15-20 हजार के उस अहिंसक जनसमूह के आगे हथियारबंद पुलिस भी नतमस्तक हो गई। वह दृश्य अभूतपूर्व था। पुलिस ने रास्ता दिया, बेरिकेड हटते गये और हजारों ने मुम्बई की सड़कों को मानो सफेद चादर से लपेट दिया। पूरा मुंबई नहीं, पूरा देश, मीडिया, उन दृश्यों को देखकर यही कह रहा था जैनों के साथ बहुत अन्याय हो रहा है। कांग्रेस सांसद वर्षा एकनाथ गायकवाड़ भी शामिल हुए। इस रैली में लोगों को सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाकर इकट्ठा किया, पर औरों की तरह इसमें कोई हिंसा नहीं हुई, कोई तोड़फोड़ नहीं, गुस्से के बावजूद सरकारी मशीनरी, निजी सम्पत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया, इस हजारों की जैन रैली ने मानो सबका दिल जीत लिया।
रैली को संबोधित करते हुए मुनि श्री सुयत्न सागरजी ने स्पष्ट कहा कि बीएमसी और जैन समाज को आज शाम तक का वक्त देता हूं कि मंदिर निर्माण के लिए कोई उचित निर्णय कर ले, वर्ना शाम को ऐसी बड़ी घोषणा करूंगा जिस पर आप सभी को पछताना पड़ेगा।
इस रैली ने जैनों की एकता का शंखनाद कर दिया। अंदर अपनी-अपनी परम्परायें निभायें, पर जब बाहर से कोई हमले की कोशिश करे, तो एकजुट होकर आवाज उठायें। निश्चित ही ये संकेत हर तक जा रहे थे।
बीएमसी कार्यालय में बड़ी बैठक हुई, कई श्वेताम्बर साधु भी पहुंचे। जिस तरह की चर्चा हुई, उसमें बीएमसी की ओर से एक आवाज नहीं निकली। स्पष्ट लग रहा था कि किसी की शह पर, यह सब जल्दबाजी में जानबूझ कर किया गया। शांत जैन समाज का वहां गुस्सा स्पष्ट कर रहा था कि छेड़ेंगे, तो छोड़ेंगे नहीं।
जैन समाज की मांग थी, बीएमसी सार्वजनिक रूप से माफी मांगे, दोषी अधिकारी को निष्कासित करे और वहीं मंदिर का निर्माण करें। देश की बड़ी संस्थाओं, भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, महासभा, दक्षिण महासभा, ग्लोबल महासभा आदि के साथ अनेक मंदिरों की कमेटियों ने जगह-जगह ज्ञापन सौंपे। मीडिया ने भी इसको पूरी तरह उठाया। प्रशासन को शायद यह आशा नहीं थी। बीएमसी ने तत्काल वादा किया कि 48 घंटे में अस्थायी शेड तैयार करा देंगे, उसके लिये शाम को सफाई शुरू कर दी। कार्यवाही करने वाले सहायक नगर आयुक्त नवनाथ धाड़गे का तबादला कर दिया गया।
शनिवार को बीएमसी ने सफाई दी, रविवार को मुनि श्री सुयत्न सागरजी के सान्निध्य में अनेक लोगों ने वहां पूजा-अभिषेक किया। मंगलवार को मुंबई महाराष्ट्र अल्पसंख्य आयोग ने इस पर बड़ी मीटिंग की। उसमें दोषी कर्मचारियों पर एफआईआर के निर्देश डीसीपी को दिये, बीएमसी को कारण बताने को कहा कि धार्मिक स्थल क्यों तोड़ा गा। इसके बावजूद 8 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला, जिन्होंने पूरा आश्वासन दिया और उसी रात्रि आयोग ने घटनास्थल का दौरा किया व होटल का अतिक्रमण भी देखा, जिस पर अब कार्यवाही होगी।
जैन एकता की यह जीवंत मिसाल थी। मोदी जी ने नवकार दिवस पर संकेत दिया था कि अलग-अलग क्यों, एक रहो। और जैन समाज ने एक रहकर अपनी छिपी शक्ति से, अन्याय कर रहे प्रशासन को भी झुकने को मजबूर कर दिया।
चैनल महालक्ष्मी चिंतन: 24 घंटे में केवल व्हाट्स-अप मैसेजों से मुम्बई की सड़कों पर सफेद चादर के रूप में 25 हजार जुटे, वो संकेत था जैन एकता का, बिना भेदभाव का। पर बीएमसी का भ्रष्टाचारी सहायक आयुक्त को निष्कासित न करना, स्पष्ट करता है कि यह कोई एक नहीं, कई के हाथ हो सकते हैं। जिस तरह आनन-फानन तीव्रता और कठोरता से बुलडोजर चला, वह किसी गहरी साजिश, राजनीतिक खेल और भारी भ्रष्टाचार के संकेत करता है।
मुंबई को स्वर्ग बनाने की बजाए, नरक बनाने में बीएमसी कैसे त्वरित कार्यवाही करता है, उसको जीवंत देखा गया विले पार्ले में। न्यायिक प्रक्रिया की अवहेलना, इंतजार न करना, स्पष्ट करता है, आज न्यायालय रूपी मंदिर के महत्व को भी नहीं स्वीकार किया जाता।
बुलडोजर चलाने, जिनबिम्ब, शास्त्र तक ना हटाने का समय देना, जिनबिम्ब तोड़ना, असभ्यता और अधर्म का पूर्व नियोजित कुकर्म लगता है। निश्चित ही एकता और साहस ने प्रशासन को झुका दिया, पर सत्ता ने सही बोलने की बजाय आंख-कान बंद कर लिये, उसी के लिये, जो चुनाव में बटन उसी के लिये दबाता है। यह मंदिर ही नहीं तोड़ा, बल्कि धर्म की आस्था और संविधान के विश्वास पर, सामाजिक सौहार्द व धर्म निरपेक्ष ढांचे पर सीधा प्रहार था।