शीत ऋतु में किसी तीर्थंकर को मोक्ष इस युग में नहीं हुआ, जबकि शेष सभी ऋतुओं में हुआ बड़ी अजीव बात है यह।
तीर्थंकरों में सबसे कम समय यानि 6 दिन तप करके केवलज्ञान प्राप्त करने वाले तीर्थंकर है श्री मल्लिनाथजी। आपको मिथिला नगरी के मनोहर वन में अशोक वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में अश्वनी नक्षत्र में 6 दिन के तप के बाद ही केवल ज्ञान की प्राप्त हो जाती है, वो दिन था पौष कृष्ण द्वितीया, जो आ रहा है मंगलवार, 21 दिसंबर को।
पौष की शाम दूजी हने घातिया, केवलज्ञान साम्राज्य लक्ष्मी लिया।
धर्मचक्री भये सेव शक्री करें, मैं जजौं चर्न ज्यों कर्म-वक्री तरें।।
सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर तुरंत 36 किमी विस्तार वाले समोशरण की रचना करता है और आपका केवली काल 54,899 वर्ष 11 माह 24 दिन का था। विशाख प्रमुख गणधर सहित 28 गणधर, 40 हजार ऋषि, 550 पूर्वधर मुनि, 29 हजार शिक्षक मुनि, 2200 अवधिज्ञानी मुनि, 2200 केवली, 2900 विक्रियाधारी मुनि, 1400 वादी मुनि, 1750 विपुलमति ज्ञानधारी मुनि, गणिनी प्रमुख मधुसेना सहित 55 हजार आर्यिकायें, 3 लाख श्राविकायें, नारायण प्रमुख श्रोता सहित एक लाख श्रावक व अनेक तिर्यंच आपकी दिव्य ध्वनि का लाभ लेते थे।
कुबेर यक्ष आपके शासन देव और अपराजिता आपकी शासन देवी थी। बोलिये 19वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी के ज्ञानकल्याणक की जय-जय-
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