6 माह अपनी बाजुओं से, समुंद्र को तैरते हुए कहां आए थे मैनासुंदरी के श्रीपाल, जहां है चतुर्थ कालीन प्रतिमाएं ?और क्या था उसके बंद कपाट का रहस्य ? कैसे खुले?

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25 फरवरी 2023/ फाल्गुन शुक्ल षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
भाद्रपद मास के दसलक्षण महापर्व की तरह, फागुन माह की अष्टाहनिका का तीनों अष्टाहनिकाओं में से सबसे लोकप्रिय है और इस अवसर पर सिद्धचक्र विधान अधिकांश मंदिरों में किए जाते हैं । इसके साथ ही मैना सुंदरी की वह कथा हर के मुख पर आ जाती है कि किस तरह उसने कर्मों को महत्वपूर्ण मानकर, अपनी भक्ति, श्रद्धा, व्रत, उपासना से सिद्धचक्र व्रत के द्वारा अपने श्रीपाल राजा के कोड़ को तथा 700 अन्य के कोड़ को भी ,उस पावन गंधोदक के माध्यम से दूर कर दिया था। यह कथा सब जानते हैं , पर यह पूरी नहीं है इसके आगे भी रोचक कथा है ।

आखिर एक कोड़ी से मैंनासुंदरी ने विवाह क्यों किया? सवाल तो यह भी उठता है। शायद आप में से बहुत कम जानते होंगे कि मैना सुंदरी के पिता राजा प्रजापाल ने उसकी ख्वाहिश भी पूछी थी कि बोलो बेटी, तुम किस से विवाह करना चाहती हो। राजा को उम्मीद थी कि बेटी उनका गुणगान करेगी ,लेकिन उसने स्पष्ट कह दिया कि जो मेरे कर्म में लिखा होगा, मुझे वही पति के रूप में मिल पाएगा। राजा प्रजापाल का दिमाग घूम गया , जो बेटी यमधर मुनिराज के पास पढ़ कर आई थी। आज वह अपने पिता की के गुणगान की बजाय, कर्म की बात कर रही है। ठीक है, अब मैं इसको बताऊंगा और बस पिता के अंदर गर्व को जैसे एक चोट लग गई ।

एक दिन, राजा प्रजापाल वनविहार को गए और वहां उन्होंने 700 कुष्ठ रोगियों के साथ से गलित कुष्ठ से पीड़ित श्रीपाल को देखा। बस इसी से उसका विवाह कराऊंगा और मुस्कुराते हुए वापस लौट आए। मैना सुंदरी उसे कर्मों का खेल स्वीकारते हुए कुष्ठ रोगी को अपना पति स्वीकार कर लिया। बाद में राजा प्रजापाल की लोक निंदा होने लगी । पिता का दिल पिघल गया और तब उसने पास ही सात मंजिला कोठी बनाकर बेटी और कुष्ठ रोगी श्रीपाल तथा अन्य 700 पीड़ितों को वहां रहने की व्यवस्था कर दी। मैना सुंदरी पति की सेवा में लग गई। एक दिन वह श्रीपाल को अपने साथ जिनालय में लेकर गई। वहां सुगुप्त आचार्य विराजमान थे। उनको प्रणाम कर उसने अपनी दुविधा का उपाय पूछा। मुनिराज ने कहा कि सिद्ध चक्र व्रत करो, तुम्हारे व पति के कर्मों का नाश होगा, फिर राज कर पाएंगे। सिद्ध चक्र व्रत की महिमा अपरंपार है। श्रद्धा, भक्ति के साथ वह ठीक हो गया। उसके माता-पिता भी खुश हो गए। तब एक दिन राजा प्रजापाल अपनी बेटी को कामदेव से सुंदर युवक को देखकर चरित्रहीन समझने लगा।
तभी उसके मंत्री ने बताया कि यह वही रोगी श्रीपाल है और मैना सुंदरी की सेवा से ही है अब इतना सुंदर हो गया है। पिता का सिर झुक गया । वह भी मान गया कि वह कुछ नहीं, कर्मों का ही सारा खेल है।

पर इसके बाद वह कथा शुरू होती है , जो आज एक अनोखे मंदिर से जुड़ी हुई है । श्रीपाल ने ठान लिया कि मैं अपने पुरुषार्थ से कर्मों को लिखूंगा ,क्योंकि आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य होता है अगर मैं यहां रुका, तो मुझे ससुर के पैसों पर जिंदगी गुजारनी होगी , जो मेरे आत्मसम्मान को मंजूर नहीं। उसने मैंनासुंदरी से कहा, मैं व्यापार के लिए बाहर जा रहा हूं । तुम अपने मां-बाप के पास रहो । पर तब जाने को हुआ, तो मेरा सुंदरी ने पति का वस्त्र पकड़ लिया। श्रीपाल बोला, अरे यह अमंगल है, मैं संकल्प देता हूं कि मैं 12 वर्ष के समाप्ति तक जरूर आ जाऊंगा।उधर धवल सेठ विदेश में जाकर रत्नों का व्यापार करता था। उसके 500 जहाज हो रुक गए थे। नहीं बढ़ रहे थे । पता चला कि कोई 32 लक्षणों से युक्त व्यक्ति आएगा, तभी है छूट पाएंगे । उधर से श्रीपाल आया, तो उसके आते ही जहाज चलने लगे , बस श्रीपाल को देख वह आनंदित हो गया ।

जिस तरीके से सूर्य को देख अंधेरा भाग जाता है , उसी तरह श्रीपाल को देखते मिथ्यादृष्टि देव भाग उठे । श्रीपाल को अपने साथ ले लिया। रास्ते में समुद्री डाकुओं ने हमला कर दिया , पर श्रीपाल ने वीरता दिखाकर , उनके छक्के छुड़ा दिए । तो अब धवल सेठ पूरी तरह उस पर मंत्रमुग्ध हो गया। तब 1008 शिखरों वाले सहस्त्र कूट को देखा। त्रिलोक तिलक उस जिनालय, वज्रपात बनते द्वारपाल ने बताया कि वज्र में कपाट है देवताओं में भी इनको खोलने का सामर्थ्य नहीं है बस यह सुना था फिर क्या था श्रीपाल ने उसे अंगूठे से छुआ मानव है कपाट खुद ही खुल गए जिनालय में पूजा की तभी वहां द्वार पर एक विद्याधर इंतजार कर रहा था उसने श्रीपाल को देख अपनी पुत्री का वर्मा लिया अत्यंत सुंदर थी बस हो गया मदन मंजूषा उसके दिमाग में एक प्रकार से पागल हो गया । मित्रता भूल गया था। एक ही धुन कि श्रीपाल को मार दिया जाए और उसकी अर्धांगिनी का भोग करूं। एक को संकेत दिया और फिर उसने अपने अब तक के प्रिय मित्र श्रीपाल को समुद्र में फेंक दिया। उधर श्रीपाल सिद्ध चक्र को मन में गुनगुनाता हुआ, अपने दोनों बाजू से समुद्र पार करने लग गए और फिर समुंद्र पार करते करते , वह किनारे पहुंचा। तो जानते आप, किस मंदिर के किनारे पर पहुंचा? हां, भावनगर से 18 किलोमीटर दूर, एक अति सुंदर मंदिर में पहुंचा। उसके भी कपाट काफी समय से बंद थे। सहस्त्रकूट जिनालय के वज्र कपाट किसी देव शक्ति से बंद हो गए थे।

6 माह अपनी बाजुओं से, समुंद्र को तैरते हुए पहुंचे श्रीपाल, बस उस कपाट पर, जैसे ही हाथ रखे , वह जैसे अपने आप ही खुल गया । वहां के लोग हैरान हो गए और सब ने मिलकर पूजा और विधान किया , श्रीपाल के नेतृत्व में । हर कोई उनके गुण गा रहा था। आज वहां पर, वह विशाल सहस्त्र कूट जिनालय तो नहीं, परंतु काष्ठ का बना सहस्त्रकूट जिनालय जरूर है। वह मूल जिनालय कहां गया, यह तो मुकेश त्रिवेदी पुजारी से नहीं मालूम चला।

पर आज वहां पर मूलबेदी में, मूल प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ जी की 1200 वर्ष प्राचीन तथा बाई ओर श्याम वर्ण की अजीत नाथ जी की ढाई हजार वर्ष तथा दाईं तरफ ढाई हजार वर्ष प्राचीन चंदा प्रभु जी की प्रतिमा है।। दोनों ही चतुर्थ काल की है आज आसपास कोई दिगंबर जैन भाई नहीं रहता, इसका अफसोस उस हिंदू पुजारी को भी है, जो 30 साल से यहां पूजा अभिषेक आदि कर रहा है।

चैनल महालक्ष्मी से बातचीत करते हुए उसने बताया कि यहां पर निकट में बहुत सुंदर श्वेतांबर मंदिर है। बहुत कम लोग इस तरफ इस चतुर्थ काल के महान अतिशयकारी मंदिर को देखने आते हैं। चैनल महालक्ष्मी रविवार, 26 फरवरी को, इस पर विशेष एपिसोड जारी करेगा कि कहां पर आए थे मैना सुंदरी के श्रीपाल? और क्या था उस मंदिर में कपाट खुलने का रहस्य? देखिएगा जरूर रविवार 26 फरवरी को रात्रि 8:00 बजे।