आज 14 मार्च : 18 भाषाओँ एवं पशु पक्षियों की बोली के ज्ञान के धनी आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज का मुनिदीक्षा दिवस

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14 मार्च/फाल्गुन शुक्ल एकादिशि /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज का जन्म फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश में ३ मई १९१० को पद्मावती पोरवाल जाति में श्री रतनलाल जी मत बुन्दा देवी की कोख से हुआ था।आपके ४ भाई बहिन थे ।आपका नाम महेंद्र सिंह रखा गया।आपकी प्रारंभिक शिक्षा फिरोजाबाद में हुई।अपनी १० वर्ष की उम्र में माताजी का देहांत हो जाने के कारण मन में संसार के प्रति उदासीनता आ गयी और वैराग्य की ओर अग्रसर हुए ।इसके लिए आपने पहले जैन धर्म का गहरा अध्ययन कर जैन दर्शन को समझकर आपने अपने मन में विचार कर लिया की मुझे संसार चक्र में नही फसना है।

आपने सेठ हुकुमचंद महाविद्यालय इंदौर ,महाविद्यालय व्यावर में अध्ययन कर न्याय तीर्थ ,व्याकरण ,न्याय सिद्धांत आदि की परीक्षा उत्तीर्ण की,आपने ज्योतिष शास्त्र,मंत्र शास्त्र ,आयुर्वेद आदि का भी गहन अध्ययन किया ।आपको १८ भाषाओँ का ज्ञान एवं पशु पक्षियों की बोली का भी ज्ञान था।
संक्षिप्त परिचय
जन्म: वैशाख कृष्णा ९ सन १९१०
जन्म स्थान : फिरोजाबाद उत्तरप्रदेश
जन्म का नाम महेंद्र सिंह
माता का नाम : बुन्दादेवी
पिता का नाम : रतनलालजी जैन
मुनि दीक्षा तिथि : फाल्गुन शुक्ला ११ सन १९४३
दीक्षा नाम : महावीरकीर्तिजी महाराज
दीक्षा गुरु : आचार्य आदिसागर अंकलीकर महाराज
मुनि दीक्षा स्थल : उदगांव
आचार्य पद तिथि: अश्विनी शुक्ला १० सन १९४३
आचार्य पद प्रदाता: आचार्य आदिसागर अंकलीकर महाराज
समाधि स्थल : मेहसाना गुजरात
समाधि तिथि : माघ कृष्णा ६ सन १९७२
विशेषता : १८ भाषा के ज्ञाता, महान विध्वान, उत्क्रूसठ तपश्वी

आपने १६ वर्ष में श्रावक धर्म का निर्दोष आचरण करना प्रारंभ कर दिया और कठोर व्रतों का पालन करने लगे।संसार को असार समझकर शरीर व् भोग से विमुख हो गये और परम पूज्य मुनि चन्द्र सागर जी से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये और २५ वर्ष के उम्र में मुनि दीक्षा वीर सागर जी से ग्रहण कीऔर अपना सारा समय ज्ञान उपार्जन व साधना में लगाने लगे।अब आपको ऐसे गुरु की तलाश थी जो त्याग और तपस्या साधना में लीन होकर ख्याति लाभ ,पुजादि से दूर हो।आखिर वो समय भी आ गया और आप उदगांव दक्षिण में विराजमान आचार्य आदिसागर जी अंकलीकर से मुनि दीक्षा हेतु निवेदन किया। आचार्य श्री ने खा की में निस्प्रही हूँ।जंगल में रहता हूँ आप उत्तर भारतीय है।आखिर आपने आचार्य श्री से निवेदन करके मुनि दीक्षा ले ली ।

आचार्य श्री की सेवा करना और अपने को ध्यान ताप व साधना में लगाना आपका मुख्य कार्य था।आचार्य श्री आदिसागर जी ने महावीर कीर्ति जी को सुयोग्य शिष्य मानकर १९४३ में उदगांव में अपना आचार्य पद से महावीर कीर्ति जो अलंकृत किया और आप मुनि महावीर कीर्ति से से आचार्य महावीर कीर्ति जी बन गए ।आपने अपने गुरु की सल्लेखना पूर्वक समाधी करायी । उसके बाद आपने अपने संघ के साथ दक्षिण में विहार कर धर्म प्रभावना करने लगे।आपने दक्षिण महाराष्ट्र ,बिहार ,उड़ीसा ,बंगाल ,गुजरात ,राजस्थान ,मध्य प्रदेश आदि स्थानों पर विहार करके धर्म की प्रभावना करी और भव्य जीवों को मुनि ,आर्यिका ,ऐलक, क्षुल्लक दीक्षा दी।और अंत समय में अपना आचार्य पद श्री विमल सागरजी को देकर सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण किया।