महावीर गुणगान सभा को बना दिया मोदी चुनावी सभा ॰ जैन मंच बना राजनीतिक मंच ॰ आह-आह जैन, वाह-वाह मोदी सरकार

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॰ महावीर स्वामी निर्वाण महोत्सव की केवल 2 ही उपलब्धि, पहली मोदी बने 13वें चक्रवर्ती और आदि महावीर के वंशज बना दिये मोदी परिवार

॰ नाम था महावीर स्वामी निर्वाण महोत्सव, पर गुणगान हुआ केवल मोदी जी का ॰ एक दिन के मोदी जी ने जैन कार्यक्रम के इतने ट्वीट भेजे, जितने पूरे साल में नहीं भेजते
॰ जैन तीर्थ सुरक्षा, जैन सनातन धर्म, संस्कृति सुरक्षा, गिरनार जैसे शब्दों पर रहे मुंह बंद
॰ कैसा संयोग जब पूरा विश्व महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक मना रहा है, तब जैन समाज प्रधानमंत्री के साथ निर्वाण कल्याणक

26 अप्रैल 2024 / बैसाख कृष्ण तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /

प्रगति मैदान : भारत मंडपम में 2550वां महावीर निर्वाण महोत्सव
चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, रविवार 21 अप्रैल का वह पावन दिन, जब आज से 2623 साल पहले बिहार के कुंडपुर/ कुंडलपुर में राजा सिद्धार्थ के राजमहल में किलकारियां गूंजीं थीं, देव भी आये थे, तब जन्म हुआ था वर्तमान जिनशासन नायक महावीर स्वामी का। उसी के 2623 साल बाद, उसी दिन दोपहर 12 बजे दिल्ली के प्रगति मैदान के भारत मण्डपम की लगभग सौ सीढ़ियां उतरकर, गेट नं. 1 तक लगभग सवा किमी बढ़ते, पीछे बार-बार मुढ़कर यही देखते सोच रहा था कि मैं प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में महावीर स्वामी और जैन संतों का गुणगान सुनकर लौट रहा हूं या फिर तीर्थंकर महावीर स्वामी के लिये आयोजित कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी का गुणगान उर्फ चुनावी सभा से लौट रहा हूं।

याद आये आचार्य विद्यानंद जी
मन में रह-रह कर चित्र उभर रहा था आचार्य श्री विद्याननंद जी का, जिनकी जन्म शताब्दी वर्ष का लोगो आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने प्रधानमंत्री के हाथों सौंपा, वो मानो उनके व्यक्तित्व की आज चर्चाको स्पष्ट बता रहा था। जैन कार्यक्रम और वो भी वर्तमान जिनशासन नायक महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाण महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में हो और बैरंग लौटे जैन समाज। दलीलें दी जा सकती हैं, कि चुनाव का समय है। सन् 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 300 करोड़ का पैकेज दिया था, जिसकी जानकारी उपाध्याय रवीन्द्र मुनि जी ने इसी मंच से दी, और अब मिला झुनझुना।

जैन संत ने बना दिया मोदी को चक्रवर्ती और जैनों को मोदी का वंशज
पर जब सुबह 9.47 पर भारत मंडपम हाउस फुल जब महावीर स्वामी के जयकारों से गुंजायमान हुआ, तो ठीक 3 मिनट बाद सूचना उद्घोषित हुई कि अब बहुत ताली बज गई, जयकारे लग गये। अब कोई न ताली ब जेगी, न जयकारे लगेंगे और इसके बाद मोदी जी के जाने तक शायद महावीर स्वामी का न जयकारे लगे, न ताली बजी, पर मोदी जी के नारे, तालियां और कहें जयकारे भी जरूर लगे और ये कहें कि लगवायें गये, तो गलत नहीं होगा। गजब तब हो गया, जब जैन संत उन्हें चक्रवर्ती के नाम से उद्घोष करने लगे। आदि-महावीर के वंशजों को मोदी परिवार में समेट सीमित कर दिया। महाव्रतियों के इस भाषण की कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता।

जन्म कल्याणक के दिन निर्वाण महोत्सव का विज्ञापन
वैसे महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के दिन निर्वाण महोत्सव के शुभारंभ से पूरे विश्व में संशय का संदेश गया। क्योंकि सुबह अखबारों में विज्ञापन कुछ ऐसे छापा। साढ़े चार माह पहले होने वाला उद्घाटन हुआ भी तो उस दिन जब पूरा विश्व उनका 2623वां जन्म कल्याणक मना रहा था। वैसे चार माह में पहले भी उद्घाटन सहित 4 बड़े कार्यक्रम हो चुके हैं। तो क्या हमने जो संतों की उपस्थिति में पहले कार्यक्रम किये, उद्घाटन किया, उनका क्या वजूद रहा, इस पर समाज को सोचना होगा। सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में श्री महावीरजी छपना अन्दर रहा, पर बड़ा-बड़ा भगवान महावीर जी का 2500वां निर्वाण महोत्सव, सबको कन्फ्यूज कर गया कि आज जन्म कल्याणक है या मोक्ष कल्याणक।

हां, इस कार्यक्रम के आयोजक भारत सरकार का सांस्कृतिक मंत्रालय रहा, पर इसकी यहां तक पहुंचाने में पूरी मेहनत का श्रेय जाता है आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी को, साथ ही भगवान महावीर मेमोरियल समिति और भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव समिति के संयोजन रूपी प्रयासों के बिना सफल नहीं हो पाता।

पूरे साल के जैन ट्वीट मोदी द्वारा एक ही दिन में
इस कार्यक्रम का प्रधानमंत्री के ट्वीटों से ही पता चल गया। 21 अप्रैल को प्रधानमंत्री द्वारा 27 ट्वीट किये गये और उनमें से 9 इस महावीर स्वामी महोत्सव पर थे। शायद पहली बार इतने ट्वीट तीर्थंकरों के कार्यक्रम पर किये हों, शायद पूरे साल में भी आज तक इतने ट्वीट नहीं किये होंगे।

प्रधानमंत्री के ट्वीटों से ही इस कार्यक्रम में क्या विशेष रहा पता चल जाता है, प्रधानमंत्री के दिल को छुआ तो जैन भारती मृगावती विद्यालय के छात्रों द्वारा प्रस्तुत की गई 8 मिनट की ‘वर्तमान में वर्धमान’ नृत्य नाटिका ने। और शायद पूरे कार्यक्रम में बस यही एक वह कार्यक्रम था, जो भगवान महावीर का संदेश सफलता से दे पाई।

महावीर के लिये सभा बन गई मोदी चुनावी सभा
प्रधानमंत्री जी ने 23 मिनट के भाषण में 6 बार महावीर स्वामी का नाम लिया, जिसमें दो बार प्रणाम के लिये और चार बार उनके संदेशों के लिये, एक बार महावीर जयंती की शुभकामनायें दीं, हां, एक बार आचार्य श्री विद्यासागरजी का भी स्मरण किया। 23 में से 13 मिनट अपनी उपलब्धियों का चुनावी सभा के अंदाज में जरूर बखान किया, यह कहकर कि मैं तो चुनावी चीजों को बाहर रखकर आया हूं, मैं नहीं लाया, पर आप जरूर लेकर आये हैं, कमल से आपका, संतों का जुड़ाव है, इनका कहना कि जैन भीड़ जो महावीर स्वामी के जयकारे न बोलने की सूचना मानो याद रख दी, पर मोदी-मोदी में उसे दरकिनार कर दिया, क्योंकि हमारे संत और मोदी स्वयं यही चाहते थे।

जैन धर्म की प्राचीनता, तीर्थ सुरक्षा, सब गोल
अपने पूरे भाषण में मोदी जी ने शेष 23 तीर्थंकरों का नाम, एक बार भी नहीं बोला, सानत जैन संस्कृति पर कोई शब्द नहीं निकला, भारतीय संस्कृति पर हो रही चोट, मतलब प्राचीन जैन तीर्थों पर कब्जे, जैों की हिस्सेदारी आदि सभी कुछ गायब था, उन्हें 10 साल की उपलब्धियों पर बताना जरूती था, क्योंकि इससे पहले हताशा और निराशा ही दिखती थी।

शुभारंभ के बाद फिर एक शुभारंभ, चार बार
26 नवंबर 2023 को मोदी के न आने से निर्वाण महोत्सव वर्षका शंखनाद जब ठंडे बस्ते में चला गया, उसके बाद आचार्य श्री सुनील सागरजी की अगुवाईमें कई संतों के साथ लाल मंदिर कमेटी द्वारा लालकिला मैदान में संतों के द्वारा शुभारंभ किया गया, उसके बाद तीन बड़े और कार्यक्रम हो चुके वहीं पर, तब भी एक और बार शुभारम्भ, क्या हमारे संतों का यही सम्मान बचा है?

आदि महावीर परिवार क्यों मोदी परिवार और क्यों 13वें चक्रवर्ती मोदी?
जैन मंचों का प्रयोग, कम से कम जैन संतों को पूरा सदुपयोग जैन प्रभावना में करना चाहिये, ऐसी चैनल महालक्ष्मी की निजी राय है। आचार्य श्री द्वारा जैन ऋषभदेव – महावीर परिवार के वंशज कहने की बजाय उन्हें मोदी परिवार कहना और भरत चक्रवर्ती के नाम पर भारत कहने की बजाय मोदी को चक्रवर्ती कहना शायद, महावीर निर्वाण महोत्सव के मंच के अनुकूल नहीं था। धर्म में राजनीति कभी अच्छी नहीं होती, हां, राजनीति में धर्म का समावेश अच्छा होता है, पर आज तो उल्टा ही होता है।

इस मंच का उपयोग हम भी अपनी बात कहने में नहीं कर सके। हो सकता है गिरनार जैसे शब्द इस कार्यक्रम के लिये पहले ही सेंसर-प्रतिबंधित की श्रेणी में डाल दिये गये हों। आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी का मांस पर रोक और उपाध्याय रविन्द्र मुनि जी का पर्यावरण सुरक्षा पर सीमित संबोधन जैनों की वर्तमान समस्यायें आवश्यकताओं को सरकार से नहीं कह पायें, क्या ऐसी कोई शर्त रही होगी, या फिर हममें ही अब उठने की हिम्मत नहीं है।

डाक टिकट-सिक्का जारी
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर महावीर स्वामी पर सिक्का और डाक टिकट का विमोचन जरूर किया, उन्होंने कुछ झांकियों और प्रदर्शनी को भी देखा।पर उन्होंने जैनों की दुखती दर्द, बढ़ती समस्यायें, असुरक्षा, संस्कृति से छेड़छाड़, जैनों से हो रहे भेदभाव, आदि जैनों की पीड़ा पर, भरोसा देने लायक कुछ नहीं कहा, केवलअपनी अन्य उपलब्धियां गिनाने के अलावा। अस्तेय और अहिंसा के आदर्शों को मजबूत करने के अलावा शायद जैनों को देने के लिये उनके पास कुछ नहीं था।

हां, जैनों की भागीदारी पर कुछ बोलना तो दूर, जैनों से वोट के लिये जरूर बोले, पर टिकट देने की बात नहीं की, करें भी कैसे, किसी को टिकट ही नहीं दिया। हां, डॉ. वीरेन्द्र हेगड़े और नवीन जैन जैसों को राज्यसभा में एंट्री जरूर कराई, शायद यह स्पष्ट संकेत था कि जैन मंदिरों तक मत सीमित रहो, कल्याण के कार्यक्रमों में आगे आओ, वर्ना जैनों का काम केवल वोट देना है, वोट लेना नहीं, और वैसे भी जैन तो खाली हाथ ही खुश हो जाते हैं, क्योंकि खाली हाथ से ही ताली बज सकती है।

हो गया जन्म कल्याणक पर निर्वाण महोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ। पर क्या जैन समाज सरकार से और विशेषकर प्रधानमंत्री से बस यही चाहता है। पुन: धन्यवाद आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी के अथक प्रयासों को, पर ऐसे प्रयास केवल उन्हें ही नहीं, हमारे हर संत को करने होंगे, तभी जागृति आएगी, क्रांति आएगी वर्ना ऐसे ही जैन मंच राजनीतिक गुणगान और उनके लिये जयकारे और ताली पीटने में ही सिमट कर रह जाएगा।
सान्ध्य महालक्ष्मी द्वारा प्रधानमंत्री का पूरा भाषण अलग से दिया जा रहा है, वह इस कार्यक्रम पर एक नजर यू-ट्यूब पर चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2563 में देखा जा सकता है।

सान्ध्य महालक्ष्मी टिप्पणी : धार्मिक मंचों का कभी राजनीतिकरण ना हो। तीर्थंकर महावीर स्वामी को गौणकर किसी राजनीतिज्ञ का गुणगान, धर्म और संस्कृति का भी अपमान है। प्रधानमंत्री के आने के बाद महावीर स्वामी का एक जयकारा नहीं और मोदी-मोदी के लिये गुनगुनाते रहे और मोदी जी भी इस धर्म सभा को चुनावी सभा की तरह भुनाते रहे। दोषी कौन? केवल और केवल जैन कहलाने वाले, उनका महिमा मंडन करने वाले। यह वास्तव में कोई उपलब्धि नहीं, जब अपने जैन मंच से भी अपनी सनातन परम्परा, तीर्थ संरक्षण, संस्कृति सुरक्षा, लुटते जिनालय, गिरनार दर्शन, जैसे शब्द वाकपटुता के साथ बोल न पायें, तो ऐसे कार्यक्रमों की क्या उपयोगिता रह जायेगी। महाव्रती संत अपनी सीमा के बाहर जाते राजनीतिज्ञ को चक्रवर्ती से नवाजे और उसमें सबके सम्मानीय आचार्य विद्यानंद जी को घसीटे, और आदि-महावीर के वंशजों को मोदी परिवार में समेटना, निश्चय ही जैन संतों के सम्मान को गिराना है। आज लगा आचार्य विद्यानंद – आचार्य विद्यासागर के बाद हमने अपनी गरिमा को रसातल पर लाकर रख दिया। किसी को अप्रिय लगे तो हृदय से क्षमा – शरद जैन।