06 अक्टूबर 2023/ अश्विन कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /शरद जैन/EXCLUSIVE
1974 वर्ष के 2500वें निर्वाण महोत्सव के चित्र आज भी अनेकों के मस्तिष्क पटल पर चिर अंकित होगें। हां, मैं भी उम्र के हिसाब से दहाई वर्ष में प्रवेश कर पाया था, पर आज भी, वो कुछ दृश्य नहीं भूले जाते। पिताश्री द्वारा अगुंली पकड़कर ले जाना, उस दिन सिर्फ जैन था, मंच पर सम्प्रदाय नहीं था। आचार्य श्री विद्यानन्द जी के अद्भुत नेतृत्व के गीत आज भी गाये जाते हैं। पर क्या आज भी हम जैन, उसी रूप में तैयार हैं? तब मात्र आयोजन नहीं, धरातल पर बहुत कार्य हुए, आज शायद हम उसके 10वें पायदान तक नहीं पहुंचे हैं।
सांध्य महालक्ष्मी ने कुछ मंदिरों में, कुछ धर्म सभाओं में, वहां उपस्थित लोगों से पूछा कि यह कौन सा वीर निर्वाण संवत है, तो 90 फीसदी से ज्यादा मुख देखते रहे और जब पूछा इस वर्ष हम महावीर स्वामी का कौन से नंबर का निर्वाण महोत्सव मनायेंगे, विश्वास कीजिए 10 में से 9 मौन रहे। यह पूछा हमने दिल्ली (ठउफ) में व धर्मनगरी बड़ौत में भी। आप भी 8-10 मंदिरों में अनायास अलग-अलग पूछे, तो परिणाम देखकर चौक जायेंगे।
पूरे देश में महावीर स्वामी के संदेशों की जागृति के लिये तीन रथ, तीन संतों के आशीर्वाद से चल रहे हैं, अजैनों की छोड़िये, जैनियों में भी जागृति नहीं हो पा रही। इस बार भी मनायेंगें, पर वह हर वर्ष की तरह, औपचारिकता ही तो नहीं हो जायेगी। 2600वीं जन्म जयंती पर बनी सभी सम्प्रदायों की संस्था, इतने वर्ष तक गहरी नींद में रही, और अब जगी हैं, क्या करती रही इतने वर्ष। इसका किसी पर जवाब नहीं। बुरा ना लगे, तो यह भी कड़वा सच है, चारों सम्प्रदाय ने मिलकर एकता का कोई बड़ा जयघोष नहीं किया। छोटे स्तरों पर पहल दिखी। दिल्ली में आचार्य प्रज्ञासागर जी ने तो शुरुआत दो वर्ष पहले ही कर दी थी। राजनीतिक गलियारे तक आवाज भी पहुंचाने के प्रयास हुए, मेहनत कुछ रंग भी लाई, पर इसकी आवाज बहुत संकुचित गलियारे में है। अभी चारों सम्प्रदाय तो दूर, एक सम्प्रदाय भी मिलकर आवाज नहीं उठा पाया है।
डेढ़ माह भी शेष नहीं और तैयारियां अभी अधूरी, तैयारी कर ही कौन रहा है, केवल एक आचार्य प्रज्ञ सागर जी, उन्होंने 2550वें के लिये दो सालों से पूरा होमवर्क किया, नई संस्था का गठन करके, पर सभी सम्प्रदाय एक नहीं हो सके। सफलता में सबसे बड़ा गतिरोधक। पूरे समाज में कहीं कोई हरकत नहीं। केवल कुछ लोगों का मिशन बन कर रह गया है। समाज को जागरूक करने में कमेटियां सफल नहीं हो रही।
तीन रथ प्रर्वतन हो रहे हैं, आचार्य श्री सुनील सागरजी के आशीर्वाद से सबसे पहले जयपुर से शुरु हुआ, फिर उसने केरल, तमिलनाडू, कर्नाटक, गोवा ,महाराष्ट्र में प्रभावना की, अब गुजरात से राजस्थान होते, फिर दिल्ली आयेगा। गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद से राजस्थान से दूसरा रथ प्रभावना के लिये बढ़ा तो लगभग उसी डेढ़ माह पहले आचार्य प्रज्ञ सागर जी के आशीर्वाद से दिल्ली के मंदिर-मंदिर में महोत्सव की जानकारी दे रहा है।
पर क्या करें जैन समाज? आचार्य श्री सुनील सागर जी इसे सामूहिक रुप में एक दिन, एक समय में, जगह-जगह लक्षदीप आरती हो (लाख दीपकों द्वारा)। जैनेत्तर समाज में भी महावीर स्वामी के संदेश पहुंचे।
वहीं सांध्य महालक्ष्मी की शिखर जी यात्रा के दौरान गुणायतन में विराजित मुनि श्री प्रमाण सागरजी ने अपने अनुभव से कहा कि कार्तिक अमावस को जैन दीपावली के रूप में होता है, उसे महावीर स्वामी निर्वाण के 2550वें महोत्सव के लिये कुछ बदलना मुश्किल है। इसलिये हमें अग्रेंजी तिथि के अनुसार मनाना ही श्रेयकर होगा। यानि 15 अक्टूबर। बस 15 दिन कम हैं इस तिथि को, पर कहीं जरा सी भी आवाज नहीं।
चलिए आपको प्राकृत विद्या में प्रकाशित पांचों कल्याणक की हिंदी -अग्रेंजी तिथि बताते हैं:-
गर्भ कल्याणक आषढ़ शुक्ल षष्ठी 17 जून 599 ई.पू.
जन्म कल्याणक चैत्र शुक्ल त्रयोदशी 27 मार्च 598 ई.पू. सोमवार
दीक्षा कल्याणक मंगसिर कृष्ण दशमी 29 दिसंबर 569 ई.पू. सोमवार
ज्ञान कल्याणक बैसाख शुक्ल दशमी 26 अप्रैल 557 ई.पू. रविवार
मोक्ष कल्याणक कार्तिक अमावस 15 अक्टूबर 527 ई.पू. मंगलवार
चारों सम्प्रदायों में नेतृत्व की कमी, संतों विद्वानों की लगभग उदासीनता, समाज में कमजोर इच्छा शक्ति ने साफ कर दिया कि इस बार जैन समाज किसी विशेष उत्साह के बिना, छोटे-छोटे स्तर पर ही कार्यक्रम कर 2550वां निर्वाण महोत्सव मनायेगा, और यह निश्चय ही समाज की एक जुटता व प्रभावना में अच्छा संकेत नहीं है। (शरद जैन)