महारानी त्रिशला के गर्भ से तीर्थंकर के रूप में जन्म ग्रहण करेंगे ,तीनों लोकों को जिन बालक के जन्म से 15 माह पहले ही खबर हो गई, कैसे?

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31 मार्च 2023/ चैत्र शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
16वें स्वर्ग में अच्युतेन्द्र, अन्तर्मुहूर्त में यौवन को प्राप्त कर, 40 हजार अंगरक्षक देवों के साथ सारी विभूति पा ली थी, इसमें कोई आश्चर्य नहीं था, सभी अच्युतेन्द्र देवों को प्राप्त होती है, पर अपने आसन पर विराजमान सौधर्म इन्द्र बहुत कुछ आभास कर रहा था। 11 माह बीतने पर सुगंधित श्वास लेना, मानसिक दिव्य अमृत रूपी आहार लेने वाला, नरक की छठी पृथ्वी तक का अवधि ज्ञान से जानने वाला, तीर्थंकरों के कल्याणकों, अकृत्रिम चैत्यालयों की वंदना करने वाले उस अच्युतेन्द्र देव की जब आयु मात्र 6 मास शेष रह गई तो दिव्य माला मुरझानी शुरू हुई।

उधर सौधर्म इन्द्र ने तब कुबेर से कहा – 6 माह बाद में अच्युतेन्द्र जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में सिद्धार्थ महाराज की महारानी त्रिशला के गर्भ से इस युग के अंतिम तीर्थंकर के रूप में जन्म ग्रहण करेंगे। अब तुम्हें इस 15 माह की अवधि उनके नंद्यावर्त महल पर रत्नों की वर्षा आरंभ कर देनी चाहिए। यही नहीं, शेष आश्चर्यों को भी परहित के लिए सम्पन्न करना चाहिये। ऐसा हर तीर्थंकर के गर्भ में आने के 6 माह पहले, इन्द्र सदैव करने की आज्ञा देता है।

बस शुरु हो गई दिन के तीनों पहर – सुबह, दोपहर, शाम-प्रत्येक पहर में, साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा। साथ ही राजमहल, कल्पवृक्ष के पुष्प, सुगंधित जल, सुवर्ण और रत्नों के ढेर से जगमगा उठा। यह संकेत था, पूरे लोक में कि महारानी त्रिशला (प्रियकारिणी) के गर्भ में वह बालक आने वाला है, जो तब चल क्रूर विसंगतियों, प्रताड़ना, नारी दासता, वास्तविक स्वतंत्रता आदि के बोध से तीनों लोकों का कल्याण करेगा।