सभी धर्मों के भगवान-महापुरुषों का जन्म एक दिन,पर महावीर स्वामी का जन्म दिन कई दिन

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॰ सभी त्यौहार एक दिन मनाते, पर जैन क्यों कई दिन में बांट देते
॰ धर्म की जगह धन और दर्शन की जगह बढ़ता प्रदर्शन
॰ क्यों जैनों का त्यौहार मनाना, सण्डे का इंतजार करता है?

2 अप्रैल 2025 / चैत्र शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /

कितनी अजीब बात है हमारे देश में 96,62,57,353 की गिनती वाले हिंदू भाई (79.8 %) अपने त्यौहार – दिवाली, दशहरा, होली हो या श्री राम-हनुमान – श्री कृष्ण आदि जन्म जयंती; 17,22,45,158 की गिनती वाले मुस्लिम भाई (14.2%) चाहे मीठी ईद हो या दूसरी; 2,78,19,588 गिनती वाले क्रिश्चियन भाई (2.3 %) चाहे गुडफ्राइडे मनाये या क्राइस्ट का जन्म; 2,08,33,116 गिनती वाले सिख भाई (1.72 %) वे गुरुनानक जी सहित किसी का प्रकाश दिवस मनायें या जोती-जोत मनायें; 84,42,972 गिनती वाले बौद्ध (0.7 %) हों, वो बौद्ध की जन्म जयंती मनायें या अन्य कोई, सभी एक निश्चित दिन ही मनाते हैं, पर 2011 की सरकारी गणना के अनुसार 44,51,753 की गिनती वाले जैन (0.37 %) अपने हर पर्व को उस दिन नहीं, उससे पहले सण्डे से उस पर्व के अगले या उससे भी अगले सण्डे तक मनाते हैं।

छोटी गिनती के लम्बे पर्व
क्षमावाणी आश्विन कृष्ण एकम को, उसके बाद दो-तीन सण्डे पर भी मनाई जाती रहेगी और अब भी चैत्र शुक्ल त्रयोदशी केवल एक सरकारी अवकास वाला पर्व महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक, उसके पहले सण्डे 06 अप्रैल से उसके बाद के 13 से 20 को भी मनाया जाएगा।
हमारी गिनती जरा सी और फैलाव इतना, कि सोच भी नहीं सकते, क्या हमारे यहां त्यौहार तिथि का महत्व नहीं है? अगर नहीं, तो क्यों देखते हैं शुभ दिन, शुभ मुहुर्त, बड़ा आश्चर्य है, हम बंट-बंटकर क्या दिखाना चाहते हैं? बदल लो अपना कलेण्डर और कर दो सण्डे ही वण्डर, अंग्रेज गये पर उनकी छुट्टी जैनों में आज भी जिंदा है।

दर्शन नहीं प्रदर्शन, धर्म नहीं धन
आज धर्म का नहीं धन का बोलबाला है, आज दर्शन नहीं प्रदर्शन का; भक्ति नहीं, दिखावे का; पैसे का उपयोग नहीं, दुरुपयोग का; भगवान के लिये नहीं, नाक और मान के लिये; एकता के लिये नहीं, खण्डता के लिए; जुड़ाव नहीं, बिखराव के लिये हो रहा है सबकुछ।

एक दिन सब जगह, तो बनेगी पहचान, बनेगी मिसाल
दिल्ली से ही शुरूआत करें, हम जितने भी पंथवाद में बंटे हो, पर महावीर जन्म कल्याणक तो एक दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को ही मनाते हैं ना, हां, वैसे गजब है, उनका जन्म स्थल कई जगह मानते हैं, चाहे वो दिगंबरों में ही क्यों न हो।
दिल्ली में सभी जैन मंदिर-स्थानक सब मिलकर गिनती 300 के पार होगी। इन सबमें एक ही दिन शोभायात्रा निकले, पेय-भोजन पदार्थ के बाहर स्टॉल लगें, तो निश्चित ही उस दिन सबको याद रहेगा कि भाई आज सड़क पर जरा जल्दी निकलना, जैनों की शोभायात्रा से जाम होगा। हर गरीब व किसी कारण से पेट ना भरा हो, वो याद रखेगा कि आज तो जैनों के भण्डारे लगे होंगे, वहीं खा लेंगे। उसे फिर वो दिन साल भर याद रहेगा। इसके लिये महावीर स्वामी जन्म कल्याणक, प्रथम तीर्थंकर का मोक्ष कल्याणक और क्षमावाणी को ही लें, तो अंतराल में आने वाले ये तीन पर्व, पूरे देश में अलग पहचान बना देंगे, कि ये दिन तो जैनों का है।

राजनीति में मिटती पहचान
महावीर जन्म कल्याणक जैनों का कौन से दिन है? पहले या दूसरे रविवार को या फिर उसी दिन को, जब जैन ही कन्फ्यूज हैं, तो नेताओं का क्या कहना। अपनी पहचान को मिटाने के लिये किसी दूसरे को नहीं, अपने को ही कोसना होगा।

मूंछ को ताव देना बंद कीजिए

आज नाक, मूंछ, मान के लिये, भक्ति कम, दिखावा ज्यादा हो रहा है, धन के व्यय में उपयोगिता कम दुरुपयोग ज्यादा दिखता है, समाज के लिये चार पैसे नहीं निकलते, पर पण्डाल, बैण्ड-बाजे, नाच-गाने में दूसरे के खाली खजाने भरने में, जैन मानो कभी पीछे नहीं रहते।

जरूरत है सही बदलाव की
आज फिर समय है कि चिंतन करें, मनन करें, केवल चैनल महालक्ष्मी सफेद कागजों को काला करें, तो उससे कुछ नहीं होगा। सही दिशा में चलना होगा। चाहे वो साधु-संत हो, विद्वत वर्ग हो (पर आज विद्वत वर्ग अपनी पहचान ही खोता जा रहा है), श्रेष्ठी वर्ग हो, और विभिन्न तीर्थों की कमेटियां हो, सबको एक निश्चित दिशा में अगुवाई, गुरुओं के मार्ग निर्देशन में करनी होगी। वरना अपने को बांटने वाले जैन, अपने पर्वों को भी बांटकर, अपनी संस्कृति का, विरासतों का, परम्पराओं का, दूसरे की कोशिशों से पहले ही, अपना बंटाधार कर लेंगे।

चैनल महालक्ष्मी चिंतन
समय की मांग है कि हर शहर में है तो मुश्किल, पर कोशिश तो करनी होगी। महावीर स्वामी जन्म कल्याणक का एक ही बड़ा महोत्सव हो, हर मंदिर से झांकियां आयें, और एक जगह मिल जायें।
भण्डारे हों, शोभायात्राएं एक ही दिन, उसी दिन (सण्डे का इंतजार नहीं), याद रहेगा पूरे देश को कि वो दिन तो सड़कों पर जैन ही जैन दिख रहे हैं और उन्हीं के जगह-जगह भण्डारे लगते हैं।
और प्रकृति का वो फार्मूला तो मालूम ही होगा, कि अलग-अलग अंगुली में कोई ताकत नहीं, जो मुट्ठी में है, अलग-अलग तिनकों से सफाई नहीं होती, सबको मिलकर एक करना होता है काम। तो क्या कोई प्रयास होगा या फिर इस कान से सुना, दूसरे से निकाला और मुंह से बोला महावीर स्वामी की जय।