19 अप्रैल 2024 / चैत्र शुक्ल एकादशी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन
प्राचीनतम सनातन धर्म, जैन धर्म या कहे श्रमण धर्म से जितना खिलवाड़ पिछले कुछ दशकों में हो रहा है, अपनी-अपनी मर्जी से छोटा-बड़ा, किसी की शाखा, नया या पुराना, आदि जैसा जिसका मन, वैसा बना दिया जा रहा जिन धर्म आज।
गत वर्ष जी- 20 के श्रेष्ठतम सुअवसर पर तो भारतीय सरकार द्वारा जैन धर्म को गौण कर दिया, बौना कर दिया, पर उस पर कोई शेर का बच्चा खड़ा नहीं हुआ, इस दहाड़ के साथ कि सरकार द्वारा पूरी दुनिया के माननीय विशिष्ट लोगों में वितरित की गई भारतीय संस्कृति की बुकलेट में जैनो को अति प्राचीन की बजाय मात्र 2600 वर्ष प्राचीन बताया यानि अधिकतम, पारस काल से, क्या सच्चाई यही है? नहीं, बिल्कुल नहीं?
एक बात और, जब अपनी ऊंचाई कम हो, तो खुद ऊंचे ज्यादा खड़े हो जाओ या फिर दूसरे को नीचे खड़ा कर दो, आपका कद स्वयं बड़ा लगने लगेगा, देखा भी होगा आजकल, अनेक छोरियां अपना कद ऊंचा दिखाने के लिये, ऊंचें हील की जूतियां पहनती हैं।
हां, शीर्षक है महावीर जयंंती नहीं कहना, नहीं बनाना, नहीं बोलना। यह सांध्य महालक्ष्मी क्या कह रहा है, गलत बात लगती है, पर यह गलत नहीं, सही होगा, जब महावीर स्वामी के जन्म को मनाना आप सही रुप में चाहेगें। हां देश की सरकार ने चाहे अवकाश घोषित करते हुए महावीर जयंती ही लिखे, तीन राज्य सरकारों को छोड़, शेष ने भी वही महावीर जयंती लिखा, कुछ ने तो अवकाश ही गायब कर दिया। जैनों के साथ यह सब चलता है, क्योंकि किसी का विरोध नहीं किया जाता। चुप रहना, आंखें मूंदे रखना, जैनों की आदत में शुमार हो गया है। अहिंसक से क्या कायर बन गये हैं?
खैर बात जयंती न कहने की, हां कभी नहीं कहना महावीर जयंती, क्यों? सान्ध्य महालक्ष्मी अब इसी बात पर सीधे आता है।
दिवस, वर्षगांठ और जयंती में पहले फर्क समझते हैं, फिर आगे बढ़ेंगे। आप जन्मदिवस, विवाह दिवस, या कोई विशेष दिवस आता है, तो आप में खुशी अलग ही होती है और जब उसे वार्षिक रूप में सामान्यजन मनाते हैं, तो वह वर्षगांठ बन जाती है, जैसे संस्थाओं, कम्पनियों में उसे फाउण्डेशन डे कहते हैं। जब वही वार्षिक रूप में किसी महापुरुष का आता है, तो जयन्ती बन जाती है। हां, भगवानों को भी जयंती में एक हद तक शामिल कर लेते हैं, जैसे श्रीराम जयंती, हनुमान जयंती, परशुराम जयंती, श्री कृष्ण जयंती या फिर तुलसी जयंती, अंबेडकर जयंती, गांधी जयंती आदि।
पर किंतु, परंतु, हमारे आदिनाथ जी से महावीर स्वामी सामान्य पुरुष नहीं, महापुरुषों और भगवानों से भी कहीं ऊपर उठकर तीर्थंकर बने। जी हां, पूरे विश्व के भगवानों में जो अनेक होंगे, कोई देवताओं को भी भगवान कह देता है, इन सबमें केवल 24 ही, तीर्थंकर कहलाये और केवल इन्हीं 24 के विशेष अवसर जो मुख्यत: पांच होते हैं, पहला जब गर्भ में आते हैं (गर्भकल्याणक), जब जन्म होता है (जन्म कल्याणक), जब संसार से राग-द्वेष छोड़ तप धारण करते हैं (तप कल्याणक), जब श्रेष्ठतम केवलज्ञान की प्राप्ति होती है (ज्ञान कल्याणक) तथा जब जन्म मरण के चक्कर को छोड़ सदा सिद्धालय में विराजमान हो जाते हैं (मोक्ष कल्याणक) – इन पांचों अवसरों को मनाने के लिये, इस धरा के लोग ही नहीं, स्वर्ग से उनके इन्द्र के नेतृत्व में इतने देवी-देवता इस धरा पर आ जाते हैं, कि उनसे पूरा आकाश पट जाता है, जरा कल्पना तो कीजिए, ऐसे अवसरों की।
इसीलिये कभी तीर्थंकरों की जयन्ती नहीं, हम और देवता सब उनके कल्याणक मनाते हैं। जब तीर्थंकरों का जन्म होता है, तब तीनों लोकों में आनंद की लहर आ जाती है। यहां तक कि नरक में भी एक साथ सुख की अनुभूति होती है। स्वर्ग में इन्द्र का सिंहासन तक डोल जाता है, खुशखबरी के सूचक के रूप में। वो भी सिंहासन से तत्काल उतर कर सात कदम आगे बढ़ साष्टांग प्रणाम करता है, और फिर उसी का एक रूप इस धरा पर उनका जन्म कल्याणक मनाने आ जाता है। हां, यह भी ध्यान रखना कि सौधर्म इन्द्र कभी भी, अपने मूल स्वरूप में कभी इस धरा पर नहीं आता है (चाहे किसी भी धर्म में ऐसा उल्लेखित हो)।
अब, इसीलिये हमें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक मनाना है, जन्म जयंती नहीं। और हां, भगवान नहीं, तीर्थंकर कहिये, सभी 24 को। भगवान तो अनेक हैं, पर तीर्थंकर 24 ही हैं। जब कोई पीएचडी कर लेता है, तो उसके आगे ‘डॉ.’ लगता है, यह नहीं कहते 10वीं-12वीं पास। जबकि उसने पास 10वीं भी की, 12वीं भी, पर डॉ. लगाने से संकेत की, उसने पीएचडी कर ली। तो महावीर स्वामी का यह जन्म कल्याणक है। और हां, जन्मकल्याणक भी गिनती के साथ जैसे आप अपना 20वां, 30वां, 31वां आदि मनाते हैं, सरकार भी महापुरुषों का 125वां-126वां कहकर मनाती है, फिर महावीर स्वामी का तो यह 2623वां जन्म कल्याणक है। जी हां, याद कैसे रहे? इसका भी सरल उपाय है, जो वर्ष है उसमें 600 जोड़ कर, एक कम कर दें यानि (2024+ 600-1= 2623वां)। महावीर स्वामी जी का ईसा से 599 वर्ष पूर्व कुंडलपुर / कुंडपुर में जन्म हुआ था, वह दिन था चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, और हां, अंग्रेजी तिथि तब थी नहीं, हम उसकी उल्टी गिनती करें तो वह दिन था सोमवार का, 27 मार्च, ईसा से 599 साल पहले। इसी प्रकार हम सभी कल्याणक संख्या के साथ मनायें:-
आगामी कुछ जन्म-मोक्ष कल्याणक जो आ रहे हैं –
23वें तीर्थंकर का 2901वां जन्म कल्याणक व 2801वां मोक्ष कल्याणक
24वें तीर्थंकर का 2551वां मोक्ष कल्याणक
(वैसे शाश्वत ट्रस्ट की स्मारिका में पहले तीर्थंकर से अब तक के मोक्ष कल्याणक की संख्या की गणना की कोशिश की है)।