वर्ष में सिर्फ एक बार महावीर के सिद्धांतों को याद करके क्या हम महावीर जैसे बन सकते हैं ?

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प्रतिवर्ष महावीर जन्मोत्सव को पूरे विश्व में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है | सुबह प्रभातफेरी से लेकर दिनभर और शाम तक देश दुनिया के अलग-अलग भागों में अनेक पूजन,अभिषेक,संगोष्ठियां तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से बड़े हर्षोल्लास पूर्वक महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया जाता है ।

महावीर जन्मोत्सव हजारों वर्षों से मनाते आ रहे हैं किंतु वर्ष में सिर्फ एक बार महावीर के सिद्धांतों को याद करके क्या हम महावीर जैसे बन सकते हैं ?आज इस बात पर विचार करना बहुत आवश्यक हो गया है कि क्या हमें महावीर की जीवन शैली को ,उनके सिद्धांतों को प्रतिपल, साल के तीन सौ पैंसठ दिन नहीं अपनाना चाहिए ? ऐसा जिस दिन होगा तभी हमारा महावीर जन्मोत्सव मनाना सफल होगा।

आज के इस समय में जिसमें अधिकांश लोग अवसाद से घिरे हुए हैं ,भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में कोरोना महामारी का प्रकोप छाया हुआ है ,ऐसे में महावीर के प्रमुख सिद्धांतों अहिंसा ,अनेकांत और अपरिग्रह को जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ,अहिंसा के सिद्धांतों को सूक्ष्मता से समझने और जन-जन के हृदय तक पहुंचाने की आवश्यकता है।

हमारे भीतर हिंसा के भाव ही उत्पन्न न हो, ऐसी उदारता, सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव के प्रति दया का भाव प्रत्येक व्यक्ति के मन में होना चाहिए। प्रत्येक जीव को जीने का हक है, कोई किसी भी जीव को केवल अपने स्वाद के लिए कैसे मार सकता है? अपने दैनिक जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुओं एवं सौंदर्य प्रसाधन के लिए कितनी क्रूरता और निर्दयता से जीवों को मारा जाता है ,कष्ट दिया जाता है, ऐसे निर्दोषी मूक प्राणियों को बचाना,हमारा उद्देश्य होना चाहिए, जिस दिन हम इस कार्य में सफल हो जाएंगे, वास्तविकता में उस दिन ही हमारा महावीर के अहिंसा सिद्धांत को जीवन में अपनाने का संकल्प पूरा होगा ।

‘अनेकांत’ जो कि महावीर का अपना मौलिक सिद्धांत है । वस्तु अनंत धर्मात्मक है, एक ही वस्तु में अनंत विरोधी धर्म विद्यमान होते हैं। इस सिद्धांत को यदि हमने समझ लिया तो निश्चित रूप से हम अपने जीवन में भी विरोधियों को सहज ही स्वीकृति प्रदान करने लगेंगे जोकि अभी तक नहीं कर पा रहे थे । हमारा विरोधी भी अस्तित्व तो रखता है ,उसके विरोध को वही स्वीकार कर सकता है जो अनेकांतवाद को समझता है ।

भगवान महावीर ने इसी प्रकार अपरिग्रह का जो सिद्धांत दिया वह जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ कला बन सकता है । हम वर्तमान में बेजान वस्तुओं से घिरे एक ऐसे चेतन हो गए हैं जिसकी कोई कीमत नहीं रह गई है , आज अचेतन की कीमत ज्यादा है चेतन की नहीं, हम अपने शुद्ध आत्म तत्व को समझ कर अंतरंग और बहिरंग परिग्रह में जरा सी भी कमी यदि ला सके तो हम महावीर को अपने जीवन में उतार सकते हैं ।

कोरोना महामारी के इस महा संकट के बीच में जब हम बड़े-बड़े उत्सव नहीं कर सकते तो अपना आत्म उत्सव करके हम वास्तविक महावीर जयंती मना सकते हैं, महावीर जैसा बन सकते है ।

– डॉ रुचि अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली