आचार्य द्वारा प्रदान की गई किसी भी उपाधि को ना तो मैं स्वीकार करती हूं , ना ही इसका किसी भी तरह से भविष्य में उपयोग करूंगी : मां श्री कौशल जी

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शास्त्री परिषद द्वारा रिषभञ्चल पंचकल्याणक के संदर्भ में, जहां पर मां श्री कौशल जी को पूज्य आचार्य श्री 108 प्रज्ञसागर जी महाराज के द्वारा भट्ट भक्त परंपरा से जोड़ने संबंधी एक विषय प्राय:कर ग्रुप्स में देखा जा रहा है जो कि सर्वथा सत्य नहीं है ।

यह सही बात है कि जिस मंच से मां श्री को यह उपाधि दी गई उस पर ब्रह्मचारी भैया जय निशांत जी भी उपस्थित थे, पर इस घोषणा के संबंध में उन्हें 1% भी जानकारी नहीं थी और ना ही ब्रह्मचारी भैया कि किसी भी तरह की इस फैसले में सहमति थी । जब भैया जी को पूर्ण घटना का ज्ञान हुआ तब उन्होंने पूज्य आचार्य श्री के समक्ष इस तरह की घटना के संदर्भ में अपना विरोध विनय पूर्वक दर्ज कराया, इस विरोध के समय पूज्य मां श्री कौशल आचार्य श्री प्रज्ञसागर जी महाराज मुनि, श्री विभंजन सागर जी महाराज और लगभग 500 श्रोता,वहां उपस्थित थे,

ब्रह्मचारी जय कुमार जी निशांत के द्वारा जब मां श्री कौशल जी से यह पूछा गया कि क्या आपने भटटारिका का पद स्वीकार किया है ? तब माँ श्री ने अपने प्रत्युत्तर में कहा कि किसी भी पद को स्वीकार करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है । बस यह तो एक हमारे यहां आए हुए अतिथि की बातों को सम्मान देने की बात थी, उनके द्वारा प्रदान की गई किसी भी उपाधि को ना तो मैं स्वीकार करती हूं ना ही इसका किसी भी तरह से भविष्य में उपयोग करूंगी ।

वीडियो को देख कर के आप सभी विदवत जनों को इस बात का पूर्ण एहसास हो जाएगा की व्हाट्सएप पर फैलाया जा रहा यह भ्रम सर्वथा निराधार है, आप सभी जारी किये गए वीडियो के माध्यम से स्वम ही दूध का दूध और पानी का पानी कर सकते है , क्योकि आप सब विद्वतजन तो स्वमेव नीर क्षीर विवेकी है

भट्टारिका पद स्वीकार्य नहीं
इस से पूर्व डा .सुरेन्द्र कुमार जैन भारती, महामंत्री- अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ने इस घटना पर कहा
– आजकल यह नयी परम्परा चल पड़ी है कि किसी को भी बिना किसी औचित्य के उपाधि या पद दे दो। जैसे यह भट्टारिका का पद है।
कोई दीक्षा संस्कार विधि भी होना चाहिए।किसी भी मुंडित सिर पर चन्द लोंगें चढ़ा दो, उतार लो और मनमाना पद दे दो। इससे ब्र.कौशल जी का भी मान घटा है।

हमारे यहां भट्टारक पद सम्माननीय है।उसे ऐसा मत बना दो कि कि जो साधु चर्या पालन नहीं कर पाये उसे भट्टारक बना दो। एक शिथिलाचारी मुनि पद छोड़कर भट्टारक बन गए। दिन भर आगम आगम कहने वाले यह आगम विपरीत आचरण कर रहे हैं। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् इसका पुरजोर विरोध करती है।

मां श्री कौशल जी द्वारा अस्वीकार करने पर डॉ चिरंजी लाल बगडा,संपादक, दिशा बोध एवम चिंतन समूह, कोलकाता ने कहा
जय कुमार जी निशांत के साहसिक एवम समय पर किये प्रतिवाद का तहेदिल से स्वागत एवम उन्हें बधाई l
शास्त्री परिषद से अपनी गरिमानुकूल कार्य किया, एतदर्थ अनुमोदना, स्वागत एवम साधूवाद।
एक गलत कदम का सही पटाक्षेप l जागरूक समाज की पहचान।

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