यह प्रतिमा तीर्थंकर के समवसरण में विराजमान होने की धोतक है, क्यूंकि समवसरण में विराजमान भगवान को दसों दिशाओं से देखा जाता है तो भी भगवान की मुखाकृति स्पष्ट दिखती है ।इस तरह की कलाकृति की प्रतिमाऐं अब नही बनती है।
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में क्या ‘महावीर स्वामी दिगम्बर स्वरूप में नहीं...
॰ दिगम्बर जैन समाज ने मानो कर लीं आंखें बंद
॰ आचार्य श्री सुनील सागरजी ने राजस्थान उपमुख्यमंत्री को कहा
और चैनल महालक्ष्मी ने सौंपा ज्ञापन
30अक्टूबर...