तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु जी -ललित कूट – आकर्षक रूप दिया गया है, अब स्वर्णभद्र कूट की तरह, यहां की सीढ़ियां भी आराम देह और चौड़ी

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9 मार्च/फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, दिन बुधवार, 9 मार्च । यह वही पावन दिन है , जब आठवें जैन तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु जी ललित कूट से मोक्ष गए। 1 माह के भोग निवृत्ति काल से पूर्व 8वे तीर्थंकर श्री सम्मेद शिखरजी की इस बिल्कुल पूरब में बनी ललित कूट पर पहुंचे और 1000 महामुनीराजों के साथ फागुन शुक्ल सप्तमी को सिद्धालय गए।

आपका तीर्थ प्रवर्तन काल 90 करोड़ सागर चार पूर्वांग रहा। ललित कूट को कुछ समय पहले तीर्थ क्षेत्र कमेटी द्वारा आकर्षक रूप दिया गया है ।

अब स्वर्णभद्र कूट की तरह , यहां की सीढ़ियां भी आराम देह और चौड़ी कर दी गई हैं। तीर्थंकर चंद्रप्रभु जी का जन्म सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ जी के नौ सौ करोड़ सागर बीत जाने के बाद चंद्रपुर नगर में महारानी लक्ष्मणा देवी जी के गर्भ से पौष कृष्ण एकादशी को हुआ था। आपकी आयु 1000000 वर्ष पूर्व थी और कद उतंग 900 फुट ।

आप की पवित्र आत्मा जो जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्यखंड के भारत देश के झारखंड राज्य के शास्वत सिद्धक्षेत्रश्री सम्मेदशिखरपर्वत में ललित कूट में बने चरणकमल से ऊर्ध्व में 7 राजू ऊपर सिद्धशिला से 37,87,498 धनुष 1 हाथ ऊपर विराजमान है
बोलिए 8वे तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु स्वामी जी के मोक्ष कल्याणक की जय जय जय। ललित कूट से 984 अरब 72 करोड़ 80 लाख 84,595 मुनिराज मोक्ष गए हैं । इस कूट की निर्मल भावों से वंदना करने से 96 लाख प्रोषध उपवास का फल मिलता है।

यह कूट जिस तरह पारस प्रभु की बिलकुल पश्चिम में दाईं तरफ पड़ती है , यह ललित कूट बिल्कुल पूर्व में अन्य कूटों से लगभग 2 किलोमीटर दूर है।