॰ तीन दिन पहले ही प्रेस वार्ता में जैन मंदिर की बात कही
॰ कौन जैनों को विश्व मानचित्र पर पहुंचाने में बाधक बन रहा, पहले जी 20 में भी जैनों को महज 2650 वर्ष प्राचीन बताया था
29 जनवरी 2025/ माघ कृष्ण अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन /
गणतंत्र बनने के ठीक 75 वर्ष पूरे होने के बाद भी आज जैनों के साथ, सनातन धर्म के साथ क्यों सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, समझ से बाहर है। एक जैन उद्योगपति गौतम अडाणी जी 50 लाख लोगों को रोज कुंभ में खाना खिला रहे हैं, जैन पिता-बेटे की वकील जोड़ी विष्णु-हरिशंकर जैन अयोध्या सहित कई हिंदू तीर्थों के लिये अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। जैन समाज में आज भी महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले महेन्द्र-सरिता जैन जी के पुत्र वर्धमान जैन जी तिरुपति बालाजी में 6 करोड़ का दान गत सप्ताह देकर आये हैं, दूसरी तरफ जैनों के साथ कैसा सितम हो रहा है।
22 जनवरी को बेंगलुरु में कर्नाटक के सूचना विभाग के आयुक्त हेमंत निंबालकर ने बाकायदा प्रेस को बुलाकर कांफ्रेंस में कहा था कि इस बार दिल्ली के गणतंत्र दिवस समारोह में कर्तव्य पथ पर कर्नाटक में पत्थर शिल्प के लिए मशूहर स्थल ‘लक्कुंडी’ जैन बसदि को प्रदर्शित किया जायेगा।
गौरतलब है कि गदग जिले में स्थित लक्कुंडी मंदिरों का निर्माण 11वीं सदी में कल्याणी चाकुल्कलय काल में हुआ था। अग्र भाग में चतुर्मुखी ब्रह्म विराजमान होंगे, जो प्राचीन जैन मंदिर का हिस्सा है, मध्य भाग में ब्रह्मा जिनालय प्रांगण में 30 भव्य स्तम्भ होंगे। इसके बाद काशी विश्वेश्वर मंदिर को प्रदर्शित करेगा, जो भगवान शिव और सूर्य को समर्पित होगा। अंतिम भाग नंदीश्वर मंदिर को प्रदर्शित करेगा। इसमें उत्तर व दक्षिण भारत की स्थापत्य कला शैली देखने को मिलेगी। यही खबर सभी अखबारों में छपी।
ध्यान रहे, 2005 में कर्नाटक राज्य ने गोम्मटेश बाहुबली को दिखाया था, और पहली बार कर्नाटक को प्रथम पुरस्कार मिला, उसके बाद से अब तक 6 बार पुरस्कार मिल चुका है।
पर 26 जनवरी को उत्तर प्रदेश की झांकी में कुंभ का स्वरूप और बिहार झांकी की शुरूआत में भगवान बुद्ध की छवि के बाद सबकी नजर कर्नाटक झांकी पर थी। जैसे प्रेस वार्ता में बताया था, वही झांकी सामने आई, पर उद्घोषणा में केवल लक्ष्मी नारायण मंदिर, विश्वेश्वर मंदिर व शिव का उद्बोधन किया गया यानि महावीर जिनालय न बोलकर अग्रभाग व मध्य के स्तंभ मण्डप को भी हिंदू मंदिर के रूप में बताकर पूरे विश्व में सही संदेश नहीं दिया गया। सचमुच जैन समाज के साथ ऐसा करना किसी की कोई गहरी चाल तो नहीं, कहीं जैनों को यूज एंड थ्रो समझ लिया गया है। पूरी जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 3124 में देख सकते हैं।
चैनल महालक्ष्मी चिंतन :
॰ एक तरफ जहां जैन बहुसंख्यक समुदाय के लिये सहयोग खुलकर दे रहे हैं, अपने जैन समुदायों को छोड़कर, वहीं प्रशासन द्वारा जैन संस्कृति की अनदेखी करना असहनीय है और इसका विरोध ज्ञापित कर अपना पक्ष रखना चाहिए।