कुंडलपुर – साधु बड़े या कमेटी ॰ आचार्य श्री विद्यासागर के सपनों को किया तार-तार ॰ संतवाद-पंथवाद की उठी आवाज, पर कमेटी ने नकारा

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॰ उपवास के बावजूद मजबूरन 17 पिच्छी संघ विहार

॰ हर संत ने बताया कमेटी कसूरवार – मुनि पुंगव सुधा सागरजी – हिटलर मत बनो, मुनि आदित्य सागरजी – छोटे साधु की तो चटनी बना देते
10 जनवरी 2025/ पौष शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन /

अंग्रेजी तिथि के नववर्ष की पहली किरण से पहले 2024 की विदाई जैन इतिहास में एक काला पृष्ठ लिखकर छोड़ गई कि अब समाज के नेताओं को फैसला करना होगा कि किसको सम्मान दे और कौन कुर्सी पर ब ैठने के लायक है। चैनल महालक्ष्मी द्वारा इस घटनाक्रम पर पहल की गई, जबकि लगभग पूरे जैन मीडिया ने मानो चुप्पी ठान ली। जारी किये गये एपिसोड में दर्शकों द्वारा दी गई टिप्पड़ियां स्पष्ट संकेत दे रही थी कि कुंडलपुर कमेटी कुशल व्यवहार वाली नहीं है।

क्या हुआ था घटनाक्रम :
आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी के भाव थे बड़े बाबा के दर्शन करने के। भाव थे कि 2024 का समाज और नये वर्ष की पहली किरण अपने गुरुवर के कार्यक्रम के साथ करें, पर वह कुंडलपुर कमेटी जो जैसे पहले ही ठान के बैठी थी कि मानो आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी का ना सान्निध्य लेना है, ना ही उनको 31 दिसंबर की या एक जनवरी की स्वीकृति देनी है। किसी श्रावक की एक पोस्ट और कमेटी के लिये कारण बन गई। महाराज जी दो-दो कार्यक्रम नहीं होंगे, हमारी नाटिका ही होगी, यह परोक्ष रूप में संकेत दे रहा था कि कमेटी ही निर्णय लेती है।

आचार्य श्री ने कहा कि मेरा कोई कार्यक्रम नहीं है, जहां मैं बैठा हूं, वहीं भजन करेंगे, इससे कोई व्यवधान नहीं होगा। रविवार दोपहर की यह बात कमेटी ने वहां अंतिम की। आचार्य श्री ने शाम को ही संघ को मानो संकेत कर दिया था कि कल सुबह विहार होगा। और रविवार के चतुर्दशी के सभी 17 संतों के उपवास के बाद सोमवार को सुबह अपने संक्षिप्त उद्बोधन में समाज को कमेटी के व्यवहार की सूचना कर विहार कर लिया और 10 किमी आगे एक पटेल के घर संघ का चौका लगा। कोई सुबह कमेटी से नहीं आया। विहार से रोकने का छोटा सा प्रयास भी नहीं, जो साफ बता रहा था कि ट्रस्टी नहीं चाहते थे।
बस चंद घंटों में यह बात जंगल की आग की तरह पूरे देश में फैल गई। हर कोई कमेटी को दोषी बता रहा था।
फिर दोपहर बाद कमेटी हरकत में आई, किसी तरह नाक बच जाये। पर आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी ने दूध का दूध और पानी का पानी करते हुये उनसे ही कहा कि आप ही बताइये कि क्या हुआ था? फालतू शब्द नहीं बोलिए और फिर क्षमा मांगने के अलावा कुछ बचा नहीं था, दो ने तो तुरंत इस्तीफा भी दे दिया। उसके बाद साधु संघों से प्रतिक्रिया आने लगी।

मुनि श्री सुधा सागरजी ने स्पष्ट कहा कि अगर आपके नगर में साधु आते हैं, तो कोई और जाये या नहीं, कमेटी को पूरी जिम्मेदारी निभानी होगी। उनके साथ अच्छा व्यवहार करें। कोई साधु असंतुष्ट होकर विहार ना करे। तीर्थों की वंदना करवायें, व्यवस्थायें दें। साधुओं के कार्यक्रम की प्रधानता हो। साधु कोई भी हो, उनसे परामर्श करें।

उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर तुम्हें कमेटी का मेम्बर बना दिया है तो यह मत समझना कि तुम हिटलर बन गये हो, तुम्हारी बपौती हो गई है कि जो जाहोगे, वह करोगे। तुम्हारा काम मंदिर की मर्यादा रखना, आम्ना न बदले, सुरक्षा करें। परम्पराओं से छेड़छाड़ ना हो।

मुनि श्री आदित्य सागरजी ने कहा कि मंदिर धर्मायतन हैं, धनायतन नहीं। क्या महाराज तुम्हारी धर्मशाला ले जा रहे थे? और बाद में बयान देकर वक्त बर्बाद कर रहे हो। जब वे विहार कर रहे थे, तो उनके चरण पकड़ लेते, वे रुक जाते, पर आपने चरण पकड़े ही नहीं। सफाई वो देता है, जो चोर होता है। कमेटी में वो ही अध्यक्ष बने, जो पूजा-अभिषेक करता हो, चौका लगाता हो, सप्त व्यसन त्यागी हो। साधुओं में श्रद्धा रखता हो। इतने बड़े आचार्य जिनकी तपस्या के सामने तो हम अंगुली के नाखून के समान भी नहीं है, उनके साथ ऐसा किया, सामान्य साधु की तो चटनी बना देते। उन्होंने यह भी कहा कि उस मंदिर में ही दान देना, जो साधु को लाते हों। अगर आपने दान दे दिया है, और वो साधु को नहीं लाते, तो छाती ठोककर पैसा वापस मांग लेना। कह देना पैसा तुमको नहीं, गुरुओं के लिये दिया है। जहां साधु की एन्ट्री नहीं, वहां दान नहीं। साधुओं का बंटवारा मत करो। मंदिर और धर्मशालायें किसी की व्यक्तिगत नहीं है।

प्रवर्तक मुनि श्री सहज सागरजी ने तो तभी कमेटी के सामने दो टूक खरी-खरी बातें कह दी। उन्होंने तो यह भी कहा कि आज पुराने तीर्थों के नाम बदलने का प्रचलन शुरू हो गया है। सभी के गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी ने कमेटियों के लिये ये कहा था कि मालिक नहीं, सेवक बनो। और तुम्हारे सामने 70 साल के साधुओं के संघ को उपवास के बाद विहार करने को मजबूर कर दिया जाता है। ये वो गुरुजी (प्रसन्न सागरजी) हैं, जो हर तीर्थ को बहुत कुछ देकर आते हैं, कभी एक पैसा लेते नहीं।

आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी के वो शब्द बहुत महत्वपूर्ण रहे – तुम लोगों ने प्रसन्न सागर महाराज को बहुत हल्के में ले लिया। तुमने क्या कार्यक्रम किया, उससे बड़ा तो यह हो गया। पूर्ण जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड न. 3070, 3071, 3076 में देख सकते हैं।