है किसी में इतना अदम्य साहस, सामर्थ्य, शक्ति प्रदेश प्रमुख को खरा-खरा सुनाने की जैसा आचार्य श्री ने सुनाया

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वैसे तो आज जैन मंचों पर राजनीतिज्ञों को लाकर जैन कमेटियां अपने को धन्य समझती हैं और उनसे कुछ जैन हित की मांग करने की हिम्मत भी नहीं कर पाते, पर वहीं कुछ ऐसी भी संत हैं, जिनके दर्शन पाने को राजनेता भी तरसते हैं, आते हैं, हाथ जुड़े रहते हैं, जैसे कह रहे हों, आप बस इशारा कीजिए, काम हम करेंगे।

ऐसे ही लीक से हटकर कुछ करने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, सोमवार 21 फरवरी को दोपहर डेढ़ बजे हैलीकाप्टर से भोपाल से सीधे पहुंचे कुण्डलपुर और कई वायदे किये, फिर उसके बाद संत शिरोमणि आचार्य श्री न ेजो खरी-खरी बात सुनाई, तब चुपचाप सुनते रहे, वह प्रशासन-राज्य-केन्द्र हरके सुनने के लिये थी। हाथ जुड़े रहे मुख्यमंत्री महोदय के।

आचार्य श्री ने इतिहास को ना पढ़ने, भारत को इण्डिया बोलने, अपने संविधान की बजाय इधर-उधर का कट पेस्ट कर जोड़तोड़ वाले कन्स्टीट्यूशन बनाने, भारतीय विद्यालय की जगह स्कूल खोलने जैसे कई राष्ट्रीय मुद्दों पर झकझोर डाला।
आज सान्ध्य महालक्ष्मी भी उसी उद्बोधन को आपके लिये प्रस्तुत कर रहा है:-

॰ इण्डिया नहीं, भारत बोलो
॰ स्कूल नहीं, भारतीय विद्यालय खोलो
॰ भारतीय इतिहास को पढ़ो और पढ़ाओ
॰ अपना संविधान बनाओ, कट पेस्ट नहीं
॰ भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार को रोकने का दिया मंत्र


भारत भारी नहीं, हल्का बने
आचार्य श्री ने कहा कि गुरु बहुत भारी होता है, वे दुनिया की निगाह में नहीं आता, नीचे की ओर जाता है। हम भारत को इस रूप में नहीं स्वीकारते, हम हल्के रूप में स्वीकारते हैं। जो हल्का होता है वो उर्ध्वगमन करता है, उठ जाता है। दुनिया की नजर में आ जाता है। जो गरिष्ठ होता है, वह ऊपर रहता है जैसे दूध में घी ऊपर ही रहता है। दूध में घी रहते हुए भी अन्य वस्तुओं के साथ मिलकर औषधि नहीं बनता, तेज बनकर मुख पर चमक नहीं सकता। इसी तरह भारत भी घी की तरह तेज की तरह चमके।

भारतीय विद्यालय खोलो, स्कूल नहीं
यह आप लोग भारत को भूल गये। जरा बताओ, भारत का नाम इण्डिया कैसे पड़ा? आप भारत निवासी हैं या इण्डिया निवासी?
आज सब चीजों का अवमूल्यन हो रहा है, भारत की 100 रुपये की मुद्रा भी 75 रुपये रह गई है। क्या चाहते हैं आप? भारत का इतिहास जब तक विद्यालयों में नहीं पढ़ाया जाएगा। आज तो विद्यालय ही नहीं चलते हैं, यहां तो स्कूल चलते हैं और उनके रूल सब जानते हैं। इसलिए भारतीय विद्यालय कायम करो, इण्यिन साफ।

पहले मध्य भारत था और राजधानी नागपुर
मुख्यमंत्री महोदय ने कहा कि पहले भारत था, पर बीच में कुछ गड़बड़िया हो गई। क्यों हुई, क्योंकि आप प्रमाद में आ गये। स्वतंत्रता मिली तब मध्य प्रदेश को मध्य भारत कहते थे, नागपुर इसकी राजधानी थी। नाग यानि हाथी, या नागों का। वो हाथी अच्छे-अच्छे सिंहों को पछाड़ते हैं, यही नहीं, भैंसा भी एक समूह बनकर आ जाये तो सिंह को पछाड़ दे

हजारों वर्ष प्राचीन आयुर्वेद इंडिया नहीं, भारत का
भारत को यदि बचाना चाहते हो तो मध्य भारत से चलिये। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों तरफ भारत है, इतिहास में भी भारत है। आज भारत का नाम नहीं, हर वस्तु पर मेड इन इंडिया। दवाईयां आयुर्वेद की भारतीय भाषा में नहीं लिखते, तभी तो कोरोना जैसी बीमारी आ गई। हमें कम समय में ज्यादा काम करना है।

संविधान पुस्तिका अपने विचारों की, न कि कट पेस्ट
भारतीय भूमि को बचाने के लिये कार्य करो। इतिहास पढ़े बगैर कुछ नहीं कर पाओगे। आज आपके पास स्वतंत्रता भी नहीं। कैसे कहें कि आप भारतीय हैं। भारत के संविधान पुस्तिका, अपनी विचारों के अनुसार नहीं, इधर-उधर से ले लेकर खिचड़ी बना दी। अरे खिचड़ी बने या राजस्थानी खिचड़ा बने, उसमें घी तो डालो। पुराने लोग कहते हैं जितना तुमने जीवन में पानी नहीं पिया, उतना तो मैंने घी पिया है। आज तो घी भी डाल-डाल (डालडा) है।

मां की भाषा में हो, संविधान पुस्तिका
भारत को बचाओ। तैयार हो जाओ। संविधान की पुस्तिका, महत्वपूर्ण है, न्याय के मंदिर में सब स्वीकारते हैं। क्या आम लोगों को मातृभाषा नहीं आती, कोई भी हो पर हो मातृभाषा क्योंकि मां की भाषा अंतरंग को छूने वाली होती है।

आज से ही शुरू हो मातृभाषा में काम
गांधी जी सहित जितने नेता थे, सभी के उद्गार थे कि न्यायग्रंथ की भाषा और उसका भाव समझ नहीं आता, तब भी कहना पड़ रहा है। आज के दिन से ही काम शुरू करना चाहिए। अनेक देश भारत की तरह परतंत्र हो जाते हैं। चाहे चीन, फ्रांस से उदाहरण लो, स्वतंत्रता पाते ही उनके मुखिया ने कहा कि हम अपनी भाषा में रूपांतरण करेंगे, इसमें 10-12 बरस लगेंगे, लग जायें, पर शुरू करें, आज सूर्यास्त से पहले शुरू करें, चाहे 15 बरस लगें।
मातृभाषा रो रही है, गुदड़ियों के लाल नहीं, कोयला भी नहीं
75 वर्षों में आप लोगों ने विदेशी भाषा के अनुसार काम लगा रहे हो। गुदड़ियों के लाल होते थे, आज कोयला भी नहीं मिल रहा। स्वाभिमान जागृत नहीं हुआ आज तक। मातृभाषा रो रही है, और विदेशी भाषा विषाक्त भाव कर रही है। कर्तव्य करोगे तो नेत्र की ज्योति अच्छी बनेगी, रोना अच्छा है, दूसरे पर हंसना कषाय है। कमर कसिये, कमर का दर्द ठीक हो जाएगा। बड़े बाबा, जैसे यहां बुद्धि पलट गई। दबे स्वर में कह रहे थे, कि कोरोना काल है, पूरे देश में देख रहे हो, धकधक हो जाता है, पर देश की रक्षा तभी कर पाओगे जब आपके पास अपना इतिहास होगा।

चाहे कुर्सी छिन जाये, ना मत कहो
ना मत कहो, मुख्यमंत्री जी, को सुनाते हुये, आचार्य श्री बोले- कहो सुन रहा हूं। ना मत कहो, हां की कूबत देखो, दंग रहोगे। दो महीने जो बढ़ाने की बात कह रहे थे, देखो दस दिन में यह कैसा लग रहा है। (प्रशासन ने पंचकल्याणक महावीर जयंती तक बढ़ाने को कहा था।) 5-6 वर्ष पहले कहा था, आज चिंतन करो, अपनी बात कहो। अगर कुर्सी छिन जाये, तो आराम कुर्सी मिल जाये। कुर्सी की चिंता छोड़ो, जनता भी समझ गई है। सरकार की भाषा बोलते रहोगे पर सर-कार, सर की भी भाषा भी बोला करो।

आप डरपोक हैं, रामराज्य लाओ

भारत विश्व का गुरु था, आज भी है। हमारी बात दूसरे पर क्यों आधारित हो रही है। सिंह भी डरता है, जब वन कटता है। सिंह दहाड़ता है वन में। सिंह भी डरपोक है और आप भी डरपोक हैं। हमें किसी पर अधिकार नहीं करना, सबके अधिकार-विचार सुरक्षित रखें। राष्ट्र में जीवन का अंग रहता है। यह महावीर-ऋषभनाथ का ही नहीं, राम का, रामायण का भी है। राम वन में भी कल्याण करते रहे, और भीतर से मन को ताड़ते रहे। भीतर संयम बनाये रखो, सबको संयम की ओर लाते रहो। आज उनके जाने के बाद भी रामराज्य की बात कर रहे हैं। आधी रात में विभीषण आया, शरण के लिये। भारत की चिंता करो, लंका की नहीं। राम और रामायण के अनुसार चलोगे तो कोई दुख नहीं होगा।

अपनी भाषा, अपना संविधान, तो मुद्रा होगी सुरक्षित

आपको यह भारत मिला, अगर अपना संविधान होगा तो कोई आपको हिला नहीं सकता। भारत की मुद्रा को बचाने के लिये भाषा और संविधान पुस्तिका अपनी हो। संविधान पुस्तिका की मुख पृष्ठ पर वही चिह्न लगा है जो बड़े बाबा का चिह्न है। भाषा और भाव, संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिये इतिहास को दोहराना होगा।

भ्रष्टाचार, कदाचार, दुराचार जो हो रहे हैं, वो हो नहीं सकते, क्योंकि संविधान, संविधान होता है, उसमें पक्षपात नहीं होता। भारत का स्वरूप बदल जाएगा।

इससे पूर्व म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री शिवराज जी ने कहा कि आज यहां मुख्यमंत्री नहीं आया, गुरु का शिष्य आया है, यहां शिवराज आया है, तो राज्य का अधिकार छोड़कर आया है। आचार्य भगवन के चेहरे का तेज, वाणी के ओजस्व को देखकर वो आनंद मिला है जिसका वर्णन नहीं कर सकते।

गुरुजी आपने क्या-क्या नहीं छोड़ा, पर हमें नहीं छोड़ देना, कृपादृष्टि बनाये रखना। आज तो मुकुट बांध दिया है, खुलकर कह रहा हूं जब कोई समस्या आती है, दुविधा आती है, तो मंदिर में बैठता हूं, आचार्य श्री का हाथ उठता है, समस्या का समाधान हो जाता है, भोपाल में आचार्य श्री का नाम लिये बगैर घर से नहीं निकलता।