बड़ी विनम्रता के साथ – किसान आंदोलन : हितकारी या अहितकारी

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1.भारत मे धनवान कहे जाने वाले किसान की औसत आय 5,500 रुपये प्रति माह है जो कि आयकर मुक्त है क्यूंकि 41,500 प्रति माह तक की आय वैसे भी आयमुक्त ही है।
2. इस देश मे केवल 6 प्रतिशत फसल MSP पर बिकती है। वो भी केवल सरकार ही खरीदती है। ( सुविधा शुल्क के साथ ) सरकार आज तक MSP को कानून नही बना पाई है।
3. इस देश मे किसान से 5 रुपये किलो का लिया जाने वाला आलू टमाटर 50 से 60 रुपये का बिकता है। फिर भी कोई MRP की सुनिश्चिता पर बात नही करता। जिसका सीधा असर उपभोक्ता पर पड़ता है।
4. सरकार कोई भी दावा करे पर जमीनी हकीकत ये है कि ना बीज फ्री है, ना खाद फ्री है, ना पानी फ्री है और ना बिजली फ्री है (न्यूनतम 2000 रुपये महीने का बिल ट्यूब वेल के लिए निश्चित है )।
5. सरकारी व गैर सरकारी मिल पर केवल वर्ष 2019 का लगभग 13,000 करोड़ का केवल गन्ने का भुगतान अभी बकाया है। जबकि नियम के अनुसार 14 दिन के भीतर
पेमेंट होना चाहिए।
6. इस साल अपनी बुआई भी ना करके 5 डिग्री के तापमान पर सड़क पर बैठना कोई तो मजबूरी का परिचायक होगा। (केवल धरना प्रदर्शन कोई चक्का जाम नही)
7. चार या छः महीने का राशन लेकर आना, उसमें स्वयं भी खाना और पुलिस वालों व पत्रकारों को भी खिलाना, फिर भी इन्हें ठलवे, भड़वे व कामचोर कहा जाता है।
8. सरकार रातो रात कोरोना काल मे इनसे पूछे बिना इनके लिए कानून तो बना सकती है पर इनके मना करने पर इनके लिए बना कानून ही वापस नही ले सकती, ऐसी क्या मजबूरी है सरकार की?
9. क्यों सरकार को गंगा जल की कसम खाने की आवयश्कता पड़ रही है ? क्यो कानून आने के साथ ही कोरोना काल मे कॉरपोरेट के गोदाम बन कर तैयार हो जाते हैं।
हम लोग अपने घरों व ऑफिस में बैठ कर एक किसान की व्यथा पर व्यंग्य तो कर सकते है पर उसकी हकीकत नही जान सकते।
बात किसी को चोटिल करने के लिए नही केवल विषय की स्पष्टता पर है, इन कानून का दूरगामी परिणाम बहुत खतरनाक है ना केवल किसान के लिए, उससे बहुत ज्यादा हम उपयोगता के लिये।