जहां वर्ष में एक बार चन्दन कि बूँदें पूरी पहाड़ी पर गिरती है , जहां चतुर्दशी – अष्टमी के दिन चमत्कारी केसर की बौछार

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19अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा तृतीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

खन्दारगिरी अतिशय क्षेत्र, गुना, आज की भाववन्दना में ऐसे तीर्थ के दर्शन करते हैं, जहां चतुर्दशी और अष्टमी के दिन चमत्कारी केसर की बौछार होने लगती है। यहाँ मूर्तियों को पहाड़ी में ही उकेरा गया है जिनका पुरातत्व और कला की दृष्टि से विशेष महत्व है। मूर्तियों को 13वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच उकेरा गया है।

आइये दर्शन करें इस तीर्थ के —स्थान – खन्दारगिरी अतिशय क्षेत्र, गुना, म.प्र.

जिला गुना के ऐतिहासिक शहर चंदेरी से एक किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी क्षेत्र में खन्दारगिरी स्थित है। यहाँ मूर्ति कला के एक अनूठे उदाहरण के साथ पहाड़ियों पर छह गुफाओं में तीर्थंकरो की अति सुंदर मूर्तियों हैं । गुफा नंबर २ में भगवान आदिनाथ की एक उच्च खड्गासन प्रतिमा बहुत ही आकर्षक और चमत्कारी है। इन मूर्तियों को १३ वीं सदी से १७ वीं सदी के दौरान पहाड़ियों की चट्टानों को काटकर बनाया गया है ! यह पहाड़िया विंध्याचल पर्वत श्रृंखला का एक हिस्सा हैं।

मंदिरों की संख्या: (04 मंदिर, 6 गुफाएं), पहाड़/पर्वत: हाँ। 115 कदम।

घाटी में यहाँ चार मंदिरों का समूह हैं। प्राचीन समय में यह जगह जैन कला, संस्कृति और दर्शन का केंद्र थी,

यह जगह ऐतिहासिक शहर चंदेरी से एक किलोमीटर दूर जंगलों में एक बहुत ही आकर्षक जगह से घिरे प्राकृतिक पहाड़ियों पर स्थित है ।

यहाँ दो छोटी धर्मशालाए हैं। आधुनिक सुविधाओं के साथ एक धर्मशाला चौबीसी बारा मंदिर, चंदेरी में उपलब्ध है।

चंदेरी के खंदारगिरि पर्वत पर लगभग 2100 वर्ष पुराने ब्राह्मी लिपि के अक्षर सहित कई जैन चिन्ह मिले हैं, जो अभी तक अज्ञात थे। भारतीय पुरातत्व सव्रेक्षण के श्री त्रिवेदी द्वारा इसका उल्लेख सन 1971 की सव्रेक्षण रिपोर्ट में किया था कि चंदेरी की खंदारगिरि पर्वत श्रृखला पर पहली सदी ई.पू. की ब्राह्मी लिपि के कुछ अक्षरों के साथ जैन चिन्ह उकेरे गये हैं।

चंदेरी के इतिहास एवं पुरातत्व की पुख्ता जानकारी रखने वाले डा. अविनाश जैन द्वारा इनकी खोज की गई थी। उनके अनुसार खंदारगिरि की पटघटिया से खंदारगिरि पर कटा पहाड़ नामक स्थान जहां से बाबर ने मोदिनीराय के कीर्तिदुर्ग पर अंतिम आक्रमण कर पराजित किया था, उसी स्थान पर जैन चिन्ह मिले हैं। डा. अविनाश के अनुसार मिले जैन चिन्हों में नंघावर्त स्वास्तिक, चकवामीन मिथुन, स्वतंत्र मीन (मछली), पदम (कमल), शंख, श्रीवत्स, वज्र, ध्वज और तालवृत्त (दर्पण) हैं।

ये सारे चिन्हें जैन तीर्थकरों के एवं मांगलिक चिन्ह हैं। इन्हीं के साथ एक शिलालेख संवत 1462 का भी मिला है।

बस – खन्दारगिरी के लिये ललितपुर से
ट्रेन – खन्दारगिरी से गुना रेलवे स्टेशन 160 किलोमीटर और ललितपुर रेलवे स्टेशन 40 किलोमीटर पर है !निकटवर्ती तीर्थक्षेत्र – थूवोनजी 22 कि.मी., सैरोंजी 27 कि.मी., गोलाकोटा पचराई 50 कि.मी., देवगढ़ 64 कि.मी. इस स्थान के लिए ऐसा माना जाता है, कि यहाँ वर्ष में एक बार चन्दन कि बूँदें पूरी पहाड़ी पर गिरती है ! इस पावन एवं अद्भुत धरा पर आकर दर्शन का लाभ अवश्य ले !