#तिरुपति_बालाजी में तीर्थंकर #नेमिनाथ जी और #बद्रीनाथ में श्री #आदिनाथ जी के बाद, #केदारनाथ में कौन से तीर्थंकर

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19 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन / EXCLUSIVE/

समय-समय पर इस बात की कोशिशें की जाती है कि हमारी जैन समाज की, धरोहरों की, विरासतों की, सही जानकारी समाज के सामने, देश विदेश के सामने, आ सके। इसी कड़ी में चैनल महालक्ष्मी कुछ एपिसोड में आपको बद्रीनाथ और तिरुपति बालाजी के बारे में जानकारी दे चुका है, जो आप निम्न लिंक पर भी देख सकते हैं।
Ep.789 बद्रीनाथ के जब खुलते कपाट, सामने दिखते आदिनाथ, IS BADRINATH A JAIN DHAM?

Ep.1168 -6 कारण- जो दर्शाते हैं कि तिरुपति बालाजी है जैन मंदिर ! Tirupati Balaji is Jain temple

क्या एक और धाम – केदारनाथ धाम भी जैनों से जुड़ा हुआ है?
इस बारे में क्या कोई प्रमाण है?

अब, जब आगामी 26 अप्रैल को इस केदारनाथ धाम के कपाट खुलने वाले हैं , ऐसे में उसकी स्थिति को जानना और भी सही समय लगता है।

आज से 9 साल पहले एक प्रमुख चैनल एबीपी की कैमरा टीम के साथ उनके एक प्रमुख रिपोर्टर पंकज झा जी भी इसी केदारनाथ धाम में पहुंचे । उस समय भी उसको चैनल पर लाखों लोगों ने देखा और फिर यूट्यूब पर भी उस 5 मिनट की क्लिप को भी अब तक 20 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। इनमें से 100 भी नहीं होंगे, जिन्होंने उस कैमरे में कैद उन चित्रों को देखा, जो एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करते हैं कि क्या केदारनाथ का संबंध जैनों से भी रहा है?
क्या वहां भी कोई तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं ?

सवाल बहुत अजीब लगता है, इसी पर चैनल महालक्ष्मी गुरुवार, 20 अप्रैल, शाम 8:00 बजे अपने एपिसोड नंबर 1815 में आपके सामने कुछ ऐसे ही चित्र प्रस्तुत करेगा, जो एबीपी के कैमरे में कैद हुए।
उनके रिपोर्टर ने वहां के पुजारी से कई सवाल किए, यह क्यों, वह क्यों , पर इस बारे में, जो उनके कैमरे में साफ दिख रहा था, उस पर चुप्पी ठान ली।

उन्होंने ही नहीं रखी, आज जैन समाज के प्रति हर कोई, लगभग इसी तरह का रवैया अपनाता है। छोटा हो या बड़ा हो, आखिर क्यों ना करें, जब जैन समाज की कमेटियां ही मौन रहती है। कहती है कि हम किसी पचड़े में क्यों पड़े, जैसा है वैसा ही ठीक है। एक नया तीर्थ बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है, पर पुरानी संस्कृति और विरासत की ओर नजर उठा कर नहीं देखी जाती।

हम किसी से कब्जा नहीं मांग रहे, पर हकीकत तो सामने आ नहीं चाहिए। इतिहास में वह भी लिखना चाहिए, जो दिखता है और उसकी खोज और जांच भी होनी चाहिए। यह लोकतंत्र में न्याय कहलाता है।

अगर किसी ऐतिहासिक स्थल, धार्मिक स्थल पर कोई अलग जानकारी दिखती है , तो उसका भी वहां उचित उल्लेख होना चाहिए। अगर किसी जैन मंदिर में हिंदू प्रतिमाएं हैं, तो उसका स्पष्ट उल्लेख हो कि यहां पर फलाना फलाना हिंदू प्रतिमाएं हैं और उसका इतिहास यह है। उसी प्रकार अगर किसी हिंदू मंदिर में जैन प्रतिमाएं है, तो उसका भी इतिहास का वहां उचित उल्लेख होना चाहिए। अगर किसी मस्जिद को, मंदिर तोड़कर बनाया गया हो, चाहे वह कुतुबमीनार रही हो या कोई और मजार या मस्जिद, वहां पर भी इतिहास को स्पष्ट अंकित किया जाना चाहिए, जिससे भारत की प्राचीन समृद्ध संस्कृति का, आने वाले भविष्य में भी लोगों को पता चल सके। क्या इस तरह की मांग कोई भी समाज नहीं कर सकता या नहीं करना चाहिए? इसमें इतिहास को सही दिखाना है जो मिट रहा है उसको सामने लाना है। यह अपील तो हर को करनी ही चाहिए। देखिएगा जरूर, गुरुवार 20 अप्रैल रात्रि 8:00 बजे, चैनल महालक्ष्मी के विशेष एपिसोड में।