चार जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली काशी में जैन सर्किट (भदैनी, भेलूपुर, सारनाथ, चंद्रावती) बनाने की घोषणा वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा की गई थी लेकिन आज तक न यह योजना आरम्भ हुई और न इनके आसपास के क्षेत्र का कोई विकास कार्य?
चार तीर्थंकरों की नगरी काशी में जैन तीर्थों के कायाकल्प की व्यापक कार्ययोजना तैयार की गई है। जैन समाज की आस्था के केंद्र तीर्थकरों की जन्मभूमि को जैन सर्किट के रूप में विकसित किया जाएगा। गंगा की कटान से चौपट होने के कगार पर पहुंचे आठवें तीर्थंकर चंद्रा प्रभु स्वामी की जन्मस्थली के कायाकल्प के लिए पर्यटन विभाग ने 25 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। धन अवमुक्त होते ही काम शुरू कर दिया जाएगा। पर पांच साल बाद भी कुछ नहीं हुआ
अहिंसा परमो धर्म: का संदेश देने वाले जैन धर्म के अनुयायियों के लिए काशी सबसे बड़ा तीर्थ है। यह वह तपोभूमि है जहां चार तीर्थंकरों ने जन्म लिए। सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की जन्मभूमि गंगातट पर भदैनी में है तो गंगा किनारे चंद्रावती में आठवें तीर्थंकर चंद्राप्रभु स्वामी ने जन्म लिया था। वहां चंद्राप्रभु का भव्य मंदिर आस्था का केंद्र है लेकिन गंगा की कटान की वजह से यह तीर्थ बदहाल पड़ा है। इसी तरह सारनाथ के सिंहपुरी में 11वं तीर्थंकर श्रेयांशनाथ की जन्मस्थली है तो 23वें तीर्थंकर की भेलूपुर में। पर्यटन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जैन तीर्थंकरों के दर्शन के लिए वर्ष भर देश के कोने-कोने से लाखों की तादाद में जैन धर्मावलंबी काशी आते हैं। काशी में जैन तीर्थंकरों के जन्मस्थान को जैन सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की गई है। चंद्राप्रभु के मंदिर के अलावा घाट का निर्माण जल्द ही शुरू करा दिया जाएगा। पर पांच साल बाद भी कुछ नहीं हुआ