कर्मों का खेल, समझो इनका मेल :ज्ञानावर्णिय,दर्शनावर्णिय,वेदनीय,मोहनिय,आयु,नाम,गोत्र,अंतराय

0
2039

100 बार समझने की कोशिश की पर कुछ ना पल्ले पड़ पाया
इसमें पढ़ाने वाले गुरु का क्या दोष इसमें तो ज्ञानावर्णिय कर्म तुम्हारा है।

नींद तुम्हें पूरा दिन आए, दिन के लक्ष्य पूरे ना हो पाए
इसमें रात भर जगाने वाले बच्चे का क्या दोष, दोषी तो दर्शनावर्णिय कर्म तुम्हारा है।

बच्चों ने तुम्हें तंग किया, सिर तुम्हारा दुखाया है
बच्चे तो केवल निमित बने, इसमें असाता-वेदनीय कर्म तुम्हारा है।

कोई इस दुनिया से चले गया, पीछे अकेला तुम्हें छोड़ गया
इसमें उसके आयुष्य का क्या दोष, इसमें लगाव का मोहनिय कर्म तुम्हारा है।

कच्ची उम्र में भी बहुतों ने, इस संसार को अलविदा कह दिया
इसमें स्थितियों का क्या दोष, दोषी तो आयुष्य कर्म उनका है।

तुम्हारा क़द है छोटा, बहन का लम्बा,तुम हो गोरे, भाई है साँवला
इसमें तुम्हारे माता-पिता का क्या दोष, दोषी तो है नाम कर्म तुम्हारा।

दूसरों के अमीरी की चकाचौंध देखके, भाग्य तुम अपना कोसते हो
इसमें भगवान का क्या दोष, यह तो गोत्र कर्म तुम्हारा है।

कड़ी मेहनत करके भी, व्यवसाय में घाटा लाखों का पाया है
इसमें business partner का क्या दोष, दोषी तो अंतराय कर्म तुम्हारा है।