कठिन स्थितियों में अद्भुत समता विश्व के सर्वाधिक आश्चर्य है ये जैन श्रमण-
पूरी रिपोर्ट 26 फरवरी शाम 8 बजे चैनल महालक्षी के विशेषः एपिसोड में
आचार्य श्री कनकनन्दी जी ने नन्दी संघ के आ श्री देवनन्दी जी,आ श्री पद्मनन्दि सहित अनेक आचार्य व लगभग 300 सन्तो को णमोकार से समयसार,छह ढाला से धवला-जय धवला की शिक्षा का बीजारोपण किया।
50 वर्ष के इस भागीरथ पुरुषार्थ में आचार्य श्री कनकनन्दी जी के इस शरीर पर पित्त का भारी प्रकोप बढ़ा जिससे शरीर की ऐसी गम्भीर स्थिति बनी जो लाखो लोगो मे किसी एक को होती है,उन्हें अत्यधिक गर्मी,पसीना,कफ बना रहता है,जो सामान्य व्यक्ति के लिए सहन करना असंभव है,अनेक बार अत्यधिक रुग्ण भी हुए,समाधि का भी विचार ठान लिया किन्तु गुरुओ ने भविष्य में धर्म की महान क्रांति व प्रभावना के रक्षार्थ उपचार स्वरूप शरीर को शीत रखने हेतु आवश्यक छूट रखने के लिए संकल्पित किया। उनके गुरु यह जान चुके थे कि जो वैश्विक स्तर के धर्मकार्य आ.श्री कनकनन्दी जी द्वारा होने वाले है वो शायद ही इस पृथ्वी में अन्य कोई कर सकता है। इसलिए वे इस नायाब रत्न को अहिंसा दर्शन की प्रभावना हेतु सरक्षित रखना चाहते थे।
आचार्य श्री कनकनन्दी जी के शारीरीक विषम स्थिति में योग्य आहार ही उत्तम ओषधि है जिसमे अध कच्चा या अध पका,आहार के वक्त गैस की बदबू शरीर को तत्काल अस्वस्थ कर देता है कई बार तो चक्कर आकर अंतराय भी हो जाती है।
ऐसे में विगत 25 वर्षों से धर्म सूर्य रूपी आचार्य श्री के शरीर के लिए यह मेवाड वागड क्षेत्र व यहाँ के श्रावको की उनके प्रति योग्य पद्दति ने रत्नत्रय साधना में कुशलता प्रदान की। जिससे कि 20वी सदी के महान पूर्वाचार्यो ने जो आंकलन व विश्वास उनकी विलक्षण क्षमता पर किये थे वो अक्षर अक्षर खरे उतरे।
हाल ही के इसी फरवरी माह में आचार्य श्री के शरीर को वायरल फीवर हुआ,पुनर्वास कॉलोनी के श्रावको की उत्तम सेवा-वैयावृत्ति-आहार ओषधि से स्वास्थ्य में सुधार हुआ,18 फरवरी को केशलोचन उपवास हुआ,किन्तु 19 फरवरी की सन्ध्या 6 बजे किसी को ज्ञात नही था कि बीपी हाई होगा व उसी दौरान अपने ही कक्ष में आते वक्त अचानक मुह के बल पूज्य गुरुदेव गिर पड़े जिससे द्वार की निचली चौखट से गुरुदेव के आँख के ऊपर व नीचे नाक के पास अत्यंत गहरी व पैर पर हल्की चोट आ गयी,गुरुदेव के मुख पर घाव व बहते हुए रूधिर की धार देखकर गुरुभक्त युवा बालक वर्ण को तो चक्कर तक आ गए। श्रावको में हलबली सी मच गयी, सभी अत्यंत चिंतित हो उठे,लेकिन गुरुदेव अत्यंत समता भाव से इस भारी पीड़ा में भी सहज मौन ही थे।
आयुर्वेद चिकित्सक ने जब टाके लगाने के लिए उस हिस्से को सुन्न करने की ओषधि लगाने की आज्ञा मांगी तो गुरुदेव ने मौन पूर्वक इशारों से मना करते हुए कहा,की बिना सुन्न किये ही लगाओ,तब वह चिकित्सक बोला-स्वामी लगभग 6 टाके लगाने है,सूजन भी अत्यंत भारी है तो वेदना को सहन करना असंभव है तो गुरुदेव ने मौन खोलकर सिर्फ इतना कहा-यही तो आत्म व शरीर का भेद विज्ञान है आप बिना सुन्न किये जो टाके लेना है ले लो।
चिकित्सक ने कांपते हुए हाथों से गम्भीर घाव पर कुल 6 टाके लिए।
टाको के बाद चेहरा ओर ज्यादा सूझ गया,उसके बाद भी लगभग 5 घण्टो तक हल्का हल्का रूधिर निकलता रहा,ब्लड प्रेशर हाई व यूरिन में भी रुकावट रही लेकिन गुरुदेव पूर्ण समता भाव से मौन।
ऐसी भयानक विषम स्थिति में भी आचार्य श्री ने रातभर उनके समीप रुकने वाले श्रावको को इशारों से क्रमशः शास्त्र बोलते हुए पढ़ने की आज्ञा दी।
क्योकि सब जानते है आ कनकनन्दी जी सब के बिना रह सकते है पर अध्ययन के बिना नही।
इसलिए गुरुदेव हमेशा कहते है कि मैं जिनवाणी माँ का दुग्धपान करता हूँ।
शास्त्रों में मुनियों पर उपसर्ग के समय समता परिणामो की हजारो कथाएं पढ़ी है लेकिन हम तो पूज्य गुरुदेव में ऐसे परिणामो की विशुद्धि अभी प्रत्यक्ष देख रहे है।
साथ ही धन्य है पुनर्वास कॉलोनी के श्रावक जन,धन्य है ड़ॉ निमेष,डॉ सुश्री आशी जैन,वर्ण,मासूम,अभय,पराग व खुशी जैसे समस्त युवा जो ऐसे महागुरु की चिकित्सा सेवा वैयावृत्ति द्वारा अनन्तानन्त पुण्य का संचय कर रहे है।क्योंकि मेरे जैसे हजारो भक्त सुशिष्य पूज्यवर आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज की सेवा-वैयावृत्ति से होने वाले स्वाभाविक अतिशय पुण्य को सहजता से अनुभव कर चुके है।
पूज्यवर आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज का स्वस्थ व दीर्घायु होना विश्व व्यापी जैन दर्शन के लिए अत्यंत आवश्यक है।क्योंकि सम्पूर्ण पृथ्वी में उनके द्वारा सम्पादित हो रहे मौन कार्य वर्तमान में अन्य किसी के भी द्वारा सम्भव नही है।
हम सबके आराध्य,श्रद्धा के सुमेरु,जगत गुरु पूज्यवर आचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज के श्री चरणों मे अविनाशी नमोस्तु
-शाह मधोक जैन चितरी