जैनत्व का बहुत ही समृद्ध शाली नगर रहा है अतिशय क्षेत्र कामां

0
2764

ब्रज चौरासी परिक्रमा क्षेत्र में अरावली पर्वत मालाओं से आच्छादित सुरम्य धार्मिक नगर कामवन जिसे हम आज कामां के नाम से जानते हैं ।यह क्षेत्र कालांतर में जैन धर्म का बहुत ही समृद्ध शाली नगर रहा है इस धर्म नगरी में समय-समय पर जैन प्रतिमाएं व प्रतिबिंब निकलते रहे हैं 14 जनवरी 1993 में यहां शांतिनाथ दिगंबर जैन दिवान मंदिर जी के तलघर की एक खुदाई के दौरान आदिनाथ भगवान की अतिशय कारी मनोहारी 1400 वर्ष प्राचीन प्रतिमा यहां प्रगट हुई जो कि आज भी जन-जन की आस्था का केंद्र बनी हुई है। इसी तरह आज भी समय-समय पर खुदाई के दौरान प्रतिमा यहां मिलती रहती हैं इसी क्रम में आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व चौरासी खंबा क्षेत्र में सरकारी खुदाई के दौरान भी एक जैन प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसे सूचना मिलने पर संजय जैन सर्राफ द्वारा इस प्रतिमा को वहां से प्राप्त कर आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के प्रांगण में रखवाया गया।

और भी कई जैन प्रतिमाएं इस धर्मनगरी में मिलती रही है। कामां में अभिक्ष्ण ज्ञानो पयोगी आचार्य श्री 108 वसुनंदी जी महाराज जब एलाचार्य निर्णय सागर जी महाराज के रूप में यहां आगमन हुआ तब आचार्य श्री ने इन प्रतिमाओं को देखकर व यहां के प्राचीन मंदिरों को देखकर बहुत चमत्कृत हुए तब जैन शोधकर्ताओं को बुलाकर व काफी मनन अध्ययन करने के बाद आचार्य श्री ने बताया कि कामां जैनत्व का बहुत ही गौरवशाली क्षेत्र रहा है । पूर्व में जिसे आज हम चौरासी खम्भा भवन कहते हैं, (यह एक जैन मंदिर हुआ करता था इसको आचार्य कुन्थु सागर जी महाराज के शिष्य वैज्ञानिकाचार्य कनकनन्दी महाराज ने भी अवलोकन उपरांत कहा था) जो कि जम्बू स्वामी भगवान का बहुत ही विशाल मंदिर था।

हमें इस क्षेत्र को अतिशय क्षेत्र जम्बूस्वामी मथुरा चौरासी से जोड़कर देखना चाहिए क्योंकि मथुरा चौरासी से अंतिम केेवली भगवान जम्बू स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया तो केवलादेव घना पक्षी विहार से केवल ज्ञान प्राप्त वहीं जम्बू स्वामी तपोस्थली बौल खेड़ा से 500 मुनियों के साथ घोर तपश्चरण किया था।
हमारे पूर्वज भी बताते हैं कि कामा में पूर्व में करीब सात सौ जैन समाज के घर हुआ करते थे। उन्हीं लोगों द्वारा कामां में चार विशाल मंदिरों का निर्माण कराया था। यह नगरी हमेशा से संतो को जन्म देने वाली नगरी भी रही है यहां पर प्रथम गणिनी आर्यिका श्री विजय मति माताजी, आर्यिका आदिमति माताजी व मुनि श्री 108 गुण भूषण जी महाराज सहित कई माताजी व विद्वानों ने यहां जन्म लेकर इस क्षेत्र का मान बढ़ाया है। यहां के शास्त्र भंडारों में अनेक पांडुलिपियों , हस्त लिखित, स्वर्ण से उकेरे गए शास्त्रों का बड़ा संग्रह यहां उपलब्ध है। यहां चार प्राचीन मंदिरों के साथ-साथ जैन पार्क, जैन धर्मशाला,निशुल्क जैन औषधालय, त्यागी भवन,विजय मती स्वाध्याय भवन व जैन बगीची बनी हुई है। यह क्षेत्र बौलखेड़ा से 10 किलोमीटर व मथुरा चौरासी से महज 50 किलोमीटर दूर है एक बार दर्शन हेतु अवश्य पधारें धन्यवाद।
संजय जैन सर्राफ
अध्यक्ष धर्म जागृति संस्थान कामां