पौष शुक्ल : वर्ष का एकमात्र ज्ञानकल्याणक पखवाड़ा : 6 दिनों में तीर्थंकरों के 4 ज्ञान कल्याणक

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18 जनवरी 2024 / पौष शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
इस पखवाड़े के पहले नौ दिन बीतने के बाद, दशमी से पूर्णिमा तक के 6 दिनों में चार तीर्थंकरों के कल्याणक आते हैं, और वो सभी केवलज्ञान कल्याणक, पूरे वर्ष का एकमात्र ज्ञान कल्याणक पखवाड़ा जिसकी शुरूआत 16वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ, फिर अगले दिन अजितनाथ और चतुर्दशी को अभिनंदननाथजी तथा पूर्णिमा को धर्मनाथ जी के ज्ञान कल्याणक के साथ समापन होता है। आइये जानते हैं, कुछ ऐसे चार दिनों के बारे में :-

(1) 16वें तीर्थंकर को 16 वर्ष के तप के बाद केवलज्ञान – 20 जनवरी
हस्तिनापुर में गर्भ-जन्म-तप के बाद पौष शुक्ल दशमी (इस बार 20 जनवरी)को 16 वर्ष के कठोर तप के बाद एक लाख वर्ष की आयु वाले 16वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जी को भरणी नक्षत्र में हस्तिानपुर के ही आम्रवन में नंदी वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति होती है।
सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर तत्काल साढ़े चार योजन विस्तृत समोशरण की रचना करता है। श्री चक्रायुध सहित 36 गणधर, 62 हजार ऋषि, 800 पूर्वधर मुनि, 41,800 शिक्षक मुनि, 3000 अवधिज्ञानी मुनि, 12 हजार केवली, 6000 विक्रियाधारी मुनि, 4000 विपुलमति मुनि, 2400 वादी मुनि के साथ 60,300 आर्यिकायें और दो लाख श्रावक व 4 लाख श्राविकायें समोशरण में बैठते थीं। आपका केवलीकाल 84,984 वर्ष का रहा।

(2) तीर्थंकर अजितनाथजी ने किया 12 वर्ष तप – 21 जनवरी
72 लाख वर्ष पूर्व की आयु वाले दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी को आकाश में बिजली गिरते देख वैराग्य की भावना बलवती हुई और फिर 12 वर्ष के कठोर तप के बाद एकादशी (21 जनवरी) को अयोध्या के सहेतुक वन में सप्तवर्ण वृक्ष के नीचे सायंकाल में केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। कुबेर तत्काल साढ़े ग्यारह योजन विस्तार वाले समोशरण की रचना करता है। श्री सिंहसेन सहित 90 गणधरों के साथ एक लाख मुनि, 3 लाख 20 हजार आर्यिकायें, 3 लाख श्राविकायें व 5 लाख श्रावकों को समोशरण में बैठने का सौभाग्य मिलता है। आपका केवलीकाल एक लाख वर्ष, पूर्व एक पूर्वांग और 12 वर्ष का रहा।

(3) चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथजी को चतुर्दशी को 18 वर्ष के बाद केवलज्ञान – 24 जनवरी
350 धनुष ऊंचा कद, 50 हजार वर्ष पूर्व आयु वाले चौथे तीर्थंकर श्री अभिनंदननाथ जी के 18 वर्ष के कठोर तप के बाद अयोध्या के उग्रवन में पुनर्वसु नक्षत्र में सरल वृक्ष के नीचे चतुर्दशी को (इस वर्ष 24 जनवरी को) केवलज्ञान के अपराह्न काल में होता है। तत्काल कुबरे साढ़े दस योजन विस्तृत समोशरण की रचना करता है। श्री वजुनाभि सहित 103 गणधर, 5 लाख से ज्यादा मुनिराज, 3,30,600 आर्यिकायें, 5 लाख श्राविकायें और तीन लाख श्रावक, एक लाख पूर्व, 8 पूर्वांग, 18 वर्ष तक के केवलीकाल में दिव्य ध्वनि का धर्मलाभ लेते हैं, जो 18 प्रमुख व 700 लघु भाषाओं में सब तक पहुंचती हैं।

(4) तीर्थंकर धर्मनाथजी को एक वर्ष के तप के बाद केवलज्ञान : 25 जनवरी
इस पखवाड़े के अंतिम दिन पूर्णिमा को 15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी को एक वर्ष के कठोर तप के बाद रत्नपुरी नगरी के सेहतुक वन में दधिपयी वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। एक वर्ष कम 25 हजार वर्ष के केवलीकाल में कुबेर पांच योजन विस्तार के समोशरण को रचता है। अरिष्ट सेन जी सहित 43 गणधर 64 हजार ऋषि, 900 पूर्वधर मुनि, 40,700 शिक्षक मुनि, 3600 अवधिज्ञानी, 4500 केवली, 7000 विक्रियाधारी मुनि, 4500 विपुलमति मुनि, 2800 वादी मुनि, 62400 आर्यिकायें, 2 लाख श्रावक, 4 लाख श्राविकायें धर्मलाभ लेते हैं।

सान्ध्य महालक्ष्मी के साथ बोलिये चारों तीर्थंकरों के चारों ज्ञान कल्याणकों की जय-जय-जय और लगातार दो केवलज्ञान कल्याणकों के बाद अयोध्या श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा आनंद के साथ हो व विश्व के लिये मंगलकारी हो, यही भावना भायें।