05अक्टूबर 2022/ अश्विन शुक्ल एकादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
पाषाण कभी जुड़ता नहीं है , टुकड़े टुकड़े हो जाता है । पर जब पाषाण भगवान बन जाता है , तो चमत्कार दिख ही जाता है । ऐसा पहले भी कुछ बार हुआ और एक बार फिर काचनेर की, जैसे इंदौर में याद ताजा हो गई ।
इस घटना ने जैन समाज में श्रावकों को एक चेतावनी दे दी है कि जब भी प्रतिमा का मार्जन करें तो बहुत ध्यान रखें । जैसे एक छोटे बच्चे की देखभाल करते हैं। उसी तरीके से प्रतिमा को उठाएं , मार्जन करें हमेशा। और यह गलती हुई इंदौर के संयोगितागंज दिगंबर जैन मंदिर में, उस पंचायती मंदिर में , एक श्रावक द्वारा । अपनी असावधानी के कारण, हजार वर्ष प्राचीन तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी की पद्मासन प्रतिमा का सिर अलग हो गया। ध्यान रखें कभी भी गर्दन से प्रतिमा को ना पकडे, हमेशा हाथ नीचे रखें और पीछे सहारा देना चाहिए । जब प्रतिमा खंडित हो गई , अब समाज आवाक रह गया।
इतनी बड़ी गलती, कौनसी आने वाले भविष्य की दुर्घटना का संदेश दे रही है । वहां कुछ अनुभवी लोग भी थे। उन्होंने समझाया कि इसे जोड़ने का एक विकल्प अनुभवी मुनिराजों ने बताया है कि घी और भूरे का मिश्रण, प्रतिमा में लगाकर 21 दिन छोड़ दें , तो प्रतिमा जुड़ जाती है। सबने सोचा ठीक है और वही प्रयास किया। पर 21 दिन बाद देखा, तो प्रतिमा अपने मूल रूप में नहीं आई। वह जैसे खंडित हुई थी, वैसे ही खंडित रही।
तब अपनी इस शंका का समाधान करने के लिए, वहां के पदाधिकारी इंदौर में ही चतुर्मास कर रहे , आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के तीन शिष्य, मुनि श्री आदित्य सागर जी, मुनि श्री समकित सागर जी और मुनि श्री सहज सागर जी के पास पहुंचे और पूरा घटनाक्रम बताया। मुनि श्री आदित्य सागर जी को एक प्रकार से, प्रतिमा के खंडित होने से बहुत तेज झटका सा लगा। उन्होंने तुरंत कहा, हम उसको देखने चलेंगे ।
ऐसा क्या कर दिया , तुरंत चल दिए मार्गदर्शन के लिए और स्थिति को देखने के लिए, वहां पहुंचे और तब उन्होंने समाज से कहा , वही घी और भूरे के मिश्रण के लिए। तब समाज वाले लोग सोच तो रहे थे कि इस विकल्प को हम आजमा चुके हैं, अब दोबारा क्या होगा। तब त्याग, तपस्या, श्रद्धा और भक्ति जो मुनिराज करते हैं , वह हम कहां कर सकते हैं और कहीं ना कहीं , उसका बहुत अंतर होता है, सचमुच वही देखा गया।
उन्होंने वह मिश्रण लगाकर उसे अलग कमरे में रख दिया और कमरे को बाहर से बंद कर दिया । समाज से कहा ,अब आप अनुष्ठान करें, जाप करें और और तीनों मुनिराज भी उस प्रतिमा का ध्यान रखते हुए, तपस्या, त्याग , ध्यान और सामायिक में रहे । फिर 4 अक्टूबर को समाज का अनुष्ठान समाप्त हुआ और 5 अक्टूबर को फिर, मुनि श्री आदित्य सागर जी के सानिध्य में उस बंद कमरे को खोला गया ।
मुनि श्री ने चंद मिनट उस प्रतिमा को निहारते रहे और फिर उसे उठाया, तो अब वही आश्चर्य दिखा, जो कचनेर की प्रतिमा में दिखा था , यानी प्रतिमा जो खंडित थी , अब अपने मूल रूप में आ गई । सारा समाज गदगद हो गया। कोई नृत्य करने लगा। कोई भजन गाने लगा। कोई झूम उठा। यानी सब के पैर अब थिरक रहे थे। खुशी में झूम रहे थे । सचमुच यह ऐसा चमत्कार था, जो हर किसी ने अपनी आंखों से देखा था ।
चैनल महालक्ष्मी इस पर अपना एक विशेष एपिसोड शनिवार रात्रि 8:00 बजे लेकर आएगा। फिर से एक बार फिर पारसनाथ प्रतिमा में अतिशय हुआ, और मुनिराजों ने अब इस मंदिर को, पंचायती जैन मंदिर को, अतिशयकारी जैन मंदिर घोषित कर दिया। देखिएगा जरूर शनिवार 8 अक्टूबर को रात्रि 9:00 बजे विशेष एपिसोड।
कचनेर दोहरा गया इंदौर में । कैसे जुड़ गई खंडित प्रतिमा। पाषाण जब भगवान बनता है, तो सचमुच चमत्कार करता है।