जितना दोष एक जीव को मारने में हैं उतना ही दोष एक अजीव को मारने मे हैं -मुनिपुंगव  श्री सुधासागर जी महाराज

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देशनोदय चवलेश्वर- निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव  अहिंसा दिवस प्रेरक108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जीव को सताने पर जितना बंध होता है मिट्टी को छीलने मिलने पर भी उतना ही दोष है

1.शुगन कैसे-जो प्राप्त नहीं कर सकते उनको नहीं सोचो सुबह उठकर उतनी इच्छा कर लो जितनी शाम तक पूरी हो सके,सूर्य उदय के समय उतनी इच्छा जितनी सूर्यास्त के पहले पूरी हो सके घर लोटो शुगन हो जायेगा,संकल्प के ऊपर हो जाए शुगन हो जाता है संकल्प से कम होने पर अशुभ होता है इच्छा सीमित कर लो।

2.अजीव को सताने मे दोषी-जितना दोष एक जीव को मारने में हैं उतना ही दोष एक अजीव को मारने मे हैं अचेतन के प्रति उतने दयालु जितना जीव के लिए,जीव को सताने पर जितना बंध होता है मिट्टी को छीलने मिलने पर भी उतना ही दोष है किसी को सताना सभी धर्म कहते हैं पाप के भागी हैं लेकिन जैन धर्म अजीव को सताने पर पाप जितना जीव को सताने में पाप का भागी बताते है

3.आंनद पर्याय से-द्रव्य दृष्टि से परमागम को देख सकते हैं लेकिन परमानंद को भोग नहीं सकते द्रव्य का आनंद नहीं दे सकता संपत्ति का भोग नहीं कर सकता,परमानंद पर्याय दृष्टि से आएगा द्रव्य दृष्टि से तो तिजोरी में रखा हुआ धन डब्बे में रखा हुआ पूरी जैसा है जो भूख को शान्त नहीं सकता है मालिकपने का आनंद जरूर दे रहा है

लेकिन परमानंद का भोग नहीं करा रहा है एक कदम भी द्रव्य दृष्टि से नहीं चल सकते लेकिन द्रव्य दृष्टि का सिद्धों को अनंत सुख द्रव्यदृष्टि से नहीं है पर्याय दृष्टि का हैं। द्रव्य दृष्टि से निगोदिया,त्रियचों तेरी आंखों में भी सामान है लेकिन आनंद  नहीं आ रहा हैं।

4.द्रव्य का स्वभाव-उत्पाद व्यय द्रव्य का स्वभाव जैसा है  स्वभाव व्यय उत्पाद द्रव्य का लक्षण है जो अविनाभावी संबंध होता है वो ही स्वभाव है उत्पाद व्यय द्रव्य तो सभी में है व्यय कर रहे हैं लेकिन वह जगतके लिए कल्याणकारी नहीं होती मंगलकारी नहीं होती है स्वयं के लिए भी मंगलकारी नहीं होता।

5.पवित्र भुमि-भगवान जिस पहाड़ को छू लेते हैं जहां जन्म लेते हैं जहां वाणी खिरे वहां मांगलिक हो जाता हैं।
प्रवचन से शिक्षा-अपना शुगण चाहते हो इच्छाएं सीमित करो वह आपके लिए मंगल होगा।

 सकंलन ब्र महावीर