त्याग, तपस्या, साधना रुपी रत्नत्रयमयी इन रास्तों को स्वीकार करते हूए अपने जीवन के परमलक्ष्य मोक्ष को पाना -आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीश्वर जी

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पर्युषण महापर्व में धोरीमना नगरी में होगा तपस्या का ठाठ

धोरीमन्ना 02 सितम्बर। धर्म नगरी धोरीमन्ना में श्री कुशल कान्ति प्रताप नगर में वसीमालाणी रत्नशिरोमणि आचार्य प्रवर श्री जिन मनोज्ञसूरीश्वरजी म.सा. व नयज्ञसागरजी म.सा. व साध्वी जयरत्ना श्रीजी म.सा. की पावन निश्रा में चल रहे चातुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन माला में बुधवार को आचार्य प्रवर श्रीजिनमनोज्ञसूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में आराधकों सम्बोधित करते हुए कहा कि चातुर्मास का पावन पवित्र समयकाल अपने लक्ष्य की ओर गतिमान है।

आचार्य श्री ने जिनवाणी ज्ञानमोती का प्रकाश करते हूए कहा कि जल के प्रवाह का नदियों के माध्यम से समताधारी समुंद्र मे समावेश हो जाता है। संसार मे विभिन्न रूपो मे प्रवाहित हो रहे जल अपना रास्ता स्वयं बनाकर, विभिन्न कठिन मार्गों से प्रवाहित होकर स्वयं स्वेच्छा से बनाए रास्ते पर समतामय धारा बनाती है…जो विशाल समुंद्र मे समावेश होते है। समुंद्र विशाल है वैसे ही मोक्ष भी विशाल है। समुंद्र मे हजारो नदियो के समावेश होने पर भी समुंद्र उफनता नहीं है,मर्यादाए तोडता नहीं है..उमंग के साथ सब नदियों को अपने मे समावेश करता है।

उसी प्रकार उत्साह, उमंग, ह्रदय प्रसन्नभावो से पर्वाधिराज पर्युषण का स्वागत करना है, अपने मे अर्हम को समावित करना है..अहंकार,क्रोध कषाय आदि का त्याग करना है। पूज्य गुरुदेवश्रीजी ने फरमाया कि त्याग, तपस्या, साधना रुपी रत्नत्रयमयी इन रास्तों को स्वीकार करते हूए अपने जीवन के परमलक्ष्य मोक्ष को पाना है। त्याग वो नहीं जिसमे बाहरी सांसारिक वस्तुओं का त्याग है,त्याग तो आंतरिक भावो से किया जाता है जो केवल ओर केवल तपस्या द्वारा संभव है।तपस्या करके खुद को इतना तपाना है कि भीतर रहे रहे क्रोध मान माया कषाय सब नष्ट हो जाए ।

तपस्या से ही मोक्ष मंजिल की प्राप्ति संभव है। श्री शांतिनाथ जैन श्री संघ के अध्यक्ष बाबूलाल लालण व ओमसा गांधी ने संयुक्त रूप से बताया कि बुधवार को गुरुदेव धर्म बिंदू, राजा चंद की कहानी (जिसमे नारी सम्मान की बात आज कही गई) का श्रवण करते हूए, विभिन्न तपस्याओ के आराधक आराधिकाए जो 50 दिवसीय श्रेणी तप, मासक्षमण, सांकलिया तप, अक्षयनिधि तप,21, 16, 11, 8 उपवास करते हुए अपने जीवन मे पुण्यानुबंधी पुण्य मे अभिवृद्धि करने का पुरुषार्थ कर रहे है।

अक्षयनिधि तप के एकासना करवाने का लाभ केशरीमल सुरजमल बोहरा कोठाला वालो ने लिया। बुधवार को छत्तीसगढ़, मुंबई, अहमदाबाद, बाडमेर, सांचौर, सूरत से गुरुभक्त पधारे। जिनका संघ द्वारा अभिनंदन किया गया।
– विमल बोथरा धोरीमन्ना