27 नवंबर : कार्तिक पूर्णिमा : दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी के दस लाख कोटि सागर समय बीत जाने के बाद इस दिन उस जीव का जन्म हुआ जो तीसरे तीर्थंकर बने

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25 नवंबर 2023 / कार्तिक शुक्ल त्रियोदशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी के दस लाख कोटि सागर समय बीत जाने के बाद अधोग्रैवेयक से इस धरा पर वो जीव आया, जो तीसरे तीर्थंकर बने। श्रावस्ती नगरी के महाराज जितारी जी की महारानी सुसेना के गर्भ में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को आये, जिसके 6 माह पहले से ही कुबेर ने सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से दिन के तीनों पहर साढ़े तीन करोड़ प्रत्येक रत्नों की वर्षा शुरू कर दी और वो जारी रही निर्बाध कार्तिक पूर्णिमा तक, जिस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में काश्यप गोत्र में जन्म लिया। 60 लाख वर्ष पूर्व की आयु, सोने से तपा रंग, 2400 फुट ऊंचा कद था। 15 लाख वर्ष पूर्व के कुमार काल के बाद 44 लाख वर्ष पूर्व 4 पूर्वांग तक राज्य करने के बाद एक दिन राजमहल की छत से आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों का विनाश देखकर वैराग्य की भावना बलवती हो गई।

फिर मंगसिर पूर्णिमा को राजपाट त्यागकर ज्येष्ठा नक्षत्र में सहेतुक वन में अपराह्न काल में श्रावस्ती नगर के उद्यान में पंचमुष्टि केशलोंच कर कठोर तप में लीन हो गये। आपको देख एक हजार और राजाओं ने राजपाट छोड़ आप ही के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। तीन दीक्षापोवास के बाद महाराज श्री सुरेन्द्र दत्तजी ने गाय के दूध से बनी खीर का पहला आहार दिया। आप ने दीक्षा के साथ ही मौन धारण कर लिया था और 14 वर्षों तक कठोर तपस्या की।

फिर वह पावन दिन आया कार्तिक कृष्ण चतुर्थी जब आपको केवलज्ञान की प्राप्ति ज्येष्ठा नक्षत्र में श्रावस्ती नगरी के सहेतुक वन में शालवृक्ष के नीचे संध्या के समय हुई। अवधिज्ञान से सौधर्मेन्द्र को जानकारी मिली, तुरंत कुबेर को आज्ञा दी और ग्यारह योजन विस्तार के समोशरण की रचना कर दी। आपका एक लाख पूर्व चार पूर्वांग चौदह वर्षों का केवलीकाल रहा। प्रमुख गणधर चारुदत्त के साथ 105 गणधर, दो लाख ऋषि, 1150 पूर्वधर मुनि, 1,29,300 शिक्षक मुनि, 9400 अवधिज्ञानी मुनि, 15 हजार केवली, 29,800 विक्रियाधारी मुनि, 12,150 विपुलमति ज्ञानधारी मुनि, 12 हजार वादी मुनि, राजा सत्यवीर्य सहित 3 लाख श्रावक, धर्मश्री प्रमुख आर्यिका सहित 3 लाख 3 हजार आर्यिकायें, 5 लाख श्राविकायें समोशरण में दिव्य ध्वनि का लाभ लेती थी।

एक माह के भोग निवृत्ति काल के बाद पावन श्री सम्मेदशिखरजी की धवल कूट से चैत्र शुक्ल षष्ठी को अपराह्न काल में एक हजार महामुनिराजों के साथ एक समय में सिद्धालय पहुंच गये। इस धवलकूट की निर्मल भाव से वंदना करने से 44 लाख उपवासों का फल मिलता है। आपका तीर्थ प्रवर्तन काल दस दस लाख करोड़ सागर तथा 4 पूर्वांग वर्ष का रहा।
तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी के जन्म कल्याणक की जय-जय-जय।