बसवन्ना जैन धर्म में जन्मे थे। कर्नाटक के कन्नड़ साहित्य का लेखन जैनों ने ही किया है। कर्नाटक के इतिहास के सभी बड़े राजा जैन धर्म के अनुयायी थे। पूरे भारतवर्ष के जैन राजाओं की सूची तो बहुत ही बड़ी है!
कर्नाटक में गंगा साम्राज्य (सारी शाखाएँ), कदंब साम्राज्य (सारी शाखाएँ), राष्ट्रकूट साम्राज्य, चालुक्य राजवंश (सारी शाखाएँ), अल्लूपा (सारी शाखाएँ), कलचुरी (सारी शाखाएँ), सेउना यादव, शिलाहार (सारी शाखाएँ), होयसला साम्राज्य, पुन्नाट्ट, सैंद्रक, नोलंबा, सिंदा राजवंश (सारी शाखाएँ) जैसे ताकतवर और प्रभावशाली जैन साम्राज्य कर्नाटक के इतिहास में हुए है।
कर्नाटक की पावन भूमि जैनों के इतिहास, योगदान और वैश्विक प्रभुत्व से भरी हुई है। भारतवर्ष के इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य ही थे जिन्होंने सबसे बड़े भूभाग पर शासन किया था। उनके पश्चात राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्षा ने अखंड भारत पर राज्य किया। ये दोनों साम्राट जैन थे। वैसे तों देश के सभी बड़े साम्राज्यों के राजा जैन थे।
पूरे विश्व में एक समय पर ४० करोड़ जैन श्रावक थे। 12वीं शताब्दी से पहले, भारत की ७०% जनसंख्या जैन धर्मावलंबीे थी। 24 तीर्थंकर के समय आज के विशाल रूपी धर्मों ने जन्म भी नहीं लिया था….
इस्लाम का जन्म 1400 वर्ष पहले हुआ, इसाई धर्म को जन्मे 2000 वर्ष हुए हैं, बौद्ध धर्म को जन्मे 2500 वर्ष तो सिख धर्म को जन्मे सिर्फ ५०० वर्ष हुए हैं।
किसी भी धर्म में जैन धर्म के सामने खड़े होने की शक्ति या सामर्थ्य नहीं थी।
अगर जैनों ने धर्म का प्रचार और प्रसार सही तरीके से किया होता तों आज पूरे विश्व में जैनों की संख्या 700 करोड़ होती।
जैन धर्म अगले 100 वर्ष भी नहीं टिक सकता, यदि यह वर्तमान स्थितिा बनी रही तो! लेकिन यदि हम धर्म का प्रचार-प्रसार और समाज के प्रगति के लिए एक होके काम करे तो किसी भी धर्म में जैन धर्म के सामने बढ़ने और टिकने की शक्ति आज भी नहीं है।
हमारे युवा जैन धर्म के इतिहास को नहीं जानते इसलिए उनका खुद के धर्म के प्रती स्वाभिमान बचा नहीं है। वह रोजाना अन्य धर्म को बढ़ावा देने वाले व्हाॅट्सएॅप फेसबुक पर पोस्ट कर रहे है। थोडा तों स्वाभिमान…? जो दूसरे धर्म का प्रचार कर रहे हैं, उनके अंदर जैन धर्म का खून है, यह नहीं भूलना चाहिए…..
इतिहास में 8 करोड़ से भी ज्यादा तीर्थंकर प्रतिमाओं को नष्ट किया गया है, 40 से 50 लाख जैन तीर्थों को तोड़ा गया है और अन्य धर्मों में परिवर्तित किया गया है। यह सभी जैनों ने अपने निष्क्रियता और कायरता के कारण खोया है।
अभी भी वक्त गया नहीं है। हमारे सभी भट्टारको और आचार्यों को इसके बारे में सोचना चाहिए और मजबूत फ़ैसलो के साथ, धर्म को बढ़ाने और उसके प्रचार एवं प्रसार के लिए काम करना चाहिए। अगर वर्तमान की परस्थिति आगे चलने लगी तों, अब जों बड़े बड़े तीर्थ क्षेत्र हैं वह अगले 100 वर्ष में ही परिवर्तित हो जाएँगे!
जैन कितना भी त्याग और तपस्या करें, अगर धर्म पे संकट की घड़ी पड़ने पर आप उसे बचाने का प्रयास नहीं करेंगे, तों कितना भी त्याग और तपस्या करें सब व्यर्थ ही है।
महेश जैन,श्री भारतावर्षीय दिगम्बर जैन ग्लोबल महासभा.