क्या व्याभिचार जैसी शर्मसार घटनाओं को छुपा कर, धर्म और संस्कृति को बचाया जा सकता है?क्या जैन समाज आज , आंख बंद वाला कबूतर बनकर रह गया है?

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17अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा एकम, /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
सबको लगता है , पर क्या कबूतर के आंख बंद करने से बिल्ली उस पर हमला नहीं करेगी या वह यह समझ लेता है कि मेरी आंख बंद करने से अब बिल्ली मुझे नहीं देख रही । शायद कुछ यही जैन समाज, आज घोर निंदनीय कुकृत्य को देखने के बाद भी , अपनी आंखें मूंद कर बैठने को तैयार हो जाता है।

क्या दूधवाला, अगर आपको दूध की जगह पानी दे, तो क्या उसे सहर्ष स्वीकार करते हो, उसे चुपचाप लेते हो और छिपा लेते हो ? क्या सुनार की दुकान पर, खरे सोने की बजाए, पीतल सहर्ष ले लेते हो , आवाज नहीं उठाते? पर हां, जैन धर्म पर कोई आंच आ जाए, तो जरूर चुप्पी साध लेना , हम अपना कर्तव्य समझते हैं। कोई गलत काम करें , तो नकाब हम पहन लेते हैं कि किसी को चेहरा नहीं दिखाई दे ।

क्या जैन समाज आज ,आंख बंद वाला कबूतर बनकर रह गया है? एक टोकरी में कई फल रखे हैं, अच्छा माली उसमें से सडे फल को तुरंत निकालता है। छोटी फुंसी का समय पर इलाज नहीं किया जाए , तो कैंसर जैसी नासूर बनती है और जब वह इतनी दर्दनाक होती है या तो वह अंग काटना पड़ता है या फिर जान पर बन आती है। कुछ ऐसी ही घटनाएं जैन समाज के सामने रुक-रुक कर आ रही है,

1700 दिगंबर संतों का वर्ग, आज उस तलवार की नोक पर खड़ा है जिसमें से कुछ अपने को उस तलवार पर चलने के लिए स्वयं ही अयोग्य घोषित हो रहे हैं। यह आज नहीं हो रहा , तीर्थंकर आदिनाथ के समय भी 4000 दीक्षार्थी भटक गए थे । शास्त्र गवाह है श्रेणिक ने जब एक संत को नदी के किनारे , एक महिला को गोदी में लेकर , मछली का शिकार करते देखा , तो उसने तलवार की मूठ पर हाथ रख कर कहा था कि हे साधु तुझे नमस्कार कर , चेतावनी देता हूं कि कल तू इस नगर से बाहर चला जा।

शास्त्र उपगुहन और स्थितिकरण का पाठ भी पढ़ाता है, पर उससे पहले खोटे गुरु की पहचान भी बताता है । हम तो दुराचार जैसे अपराध पर बोलने की बजाय , वक्त पर आंख कान बंद करना , ज्यादा सही लगता है । आज व्यभिचार जैसे कुकृत्य भी शिथिलाचार में जोड़कर , उन्हें भी सामान्य प्रायश्चित की सीमा में जोड़ दिया जाता है। ककृत्य एक बार नहीं , अनेक बार किया जाता है, कई बार तो पकड़ा भी जाता है। ऐसे में पूरा संत वर्ग ,चुप्पी धारण कर लेता है।

समाजिक संगठन बोलना नहीं चाहते ।जो बोलता है, उसे समाज का एक वर्ग नोचता है , खाने को दौड़ता है , उसे मुनि निंदक, धर्म द्रोही और कई अन्य निंदक , कलंकित शब्दों से देखा जाता है, पुकारा जाता है । क्या इस तरीके से 24 कैरेट सोने से भी खरा कहे जाने वाला , जैन धर्म, तपस्या की पराकाष्ठा में सर्वोपरि कहे जाने वाला जैन संत, अपनी उच्चता को बरकरार रख पाएगा या ऐसे दुराचारियों को संत के रूप में ही, पंच परमेष्ठी के रूप में ही आरोहित रख , पूजा और नवाजना क्या सही है?

एक तरफ 24 कैरेट सोना रखा है और दूसरी तरफ पीतल, तो क्या पीतल को उस सोने के समान तिजोरी में रख पाएंगे? तर्क देते हैं, कुतर्क के रूप में कि अगर तुम्हारे घर का बेटा, ऐसा कलंकित काम करता तो क्या ऐसा ही शोर मचाते? सवाल उनसे भी है कि अगर घर की बेटी से ऐसा कोई कलंकित काम करता तो यूं ही चुप रहते?
हां कुछ कह सकते हैं चुप ही रहते । बस उस बेटी से पूछिए कि उसके दिल पर क्या बीतेगी? उस भगवान की मूरत से पूछिए जिसने इस संस्कृति को , इस जैन धर्म को, उस जगह पहुंचाया , जिसके आसपास आज कोई नहीं दिखता।

उत्तम ब्रह्मचर्य, आज किसी धर्म में पराकाष्ठा के रूप में नहीं जाना जाता, जितना सिर्फ जैन धर्म में और उसी ब्रह्मचर्य को जब तार-तार किया जाता है, तो यह बदनामी नहीं , ।अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से भी ज्यादा घातक होता है।

कहा गया कि हमारे विद्वान और संगठन चुप रहते हैं । चैनल महालक्ष्मी इस पर लगातार बोलता रहा है और बोलता रहेगा,आप में से कुछ जितना मर्जी उसको निंदक शब्दों से पुकार लीजिए , पर कर्तव्य से पीछे नहीं हटेगा । घर के अंदर गंदगी इकट्ठी करते रहे तो एक दिन , स्वयं घर से बाहर निकलना पड़ जाएगा और गंदगी का ढेर घर में रह जाएगा। रोजाना घर में झाड़ू इसीलिए लगाते हैं, गंदगी को साफ करते हैं , अरे नहाते भी इसीलिए हैं हम कि हमारे शरीर पर लगी गंदगी साफ हो जाए। हां संत अंदर की सफाई करते हैं और हम केवल बाहर की सफाई करके ही अपने को धन्य मान लेते हैं । सफाई करनी होती है अंदर की भी , बाहर की भी , बुराई हटानी ही होती है।

अगर बुराई को दबाना हीं होता, कुकृत्य को छुपाना ही होता , तो समाज में पुलिस और सेना की आवश्यकता नहीं पड़ती। बलात्कार, दुराचार होने पर, उसे दर्ज नहीं करना होता, देश की विश्व में बदनामी होगी, सजा नहीं दिलानी होती । उसे वापस बलात्कारी को , सलाखों के पीछे डाल कर दिखाना पड़ता है कि तेरे कुकृत्य की यह सजा है और कोई करेगा तो इसी तरह भरेगा ।

पर हम उसे पंच परमेष्ठी में, यानी सिद्ध और अरिहंत के समान , पूजने से नहीं रुकना चाहते । क्या कारण है? चैनल महालक्ष्मी इस पर , परिचर्चा की, प्रमुख समितियों के माननीय कार्यकर्ताओं से, जिन्हें अध्यक्ष और महामंत्री कहते हैं , उन विद्वानों से जो आज शास्त्रों का मर्मज्ञ बताते हैं।

शास्त्र वही एक है ,घटना वही एक है, पर जब आप इस पर चर्चा करते हैं तो आपको लगता है कि कैसे एक ही शास्त्र को, कितने रूपों में बांट दिया गया है और एक ही घटना को कितना छोटा कर दिया गया है या सही रूप से नहीं दर्शाया गया। चैनल महालक्ष्मी ने इस बारे में अनेक विद्वानों से भी बात की , कई ने चुप्पी रख ली। पर कुछ ने यह भी कह दिया , बदनाम करते हो , तुम मुनि निंदक हो तुम ।

विद्वानों में और श्रेष्ठ जनों में जो बात की उनमें स्वस्ति श्री स्वामी रविंद्र कीर्ति जी, डॉक्टर श्रेयांश कुमार जैन, अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद, चक्रेश जैन अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन परिषद और दिल्ली समाज,डॉ सुरेंद्र भारती, महामंत्री अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद, डॉक्टर वीर सागर जैन, प्रोफेसर जैन दर्शन के लाल बहादुर संस्कृत विद्यापीठ, डॉक्टर फूलचंद प्रेमी, पूर्व प्रोफेसर संपूर्णानंद विश्वविद्यालय और मूलाचार में पीएचडी की , प्रोफेसर वृषभ प्रसाद जैन , जैन दर्शन के विद्वान, डॉक्टर चिरंजीलाल बगड़ा, वरिष्ठ समालोचक पत्रकार व दिशा बोध पत्रिका के संपादक , अशोक बड़जात्या, अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासमिति के अध्यक्ष, डॉ आकाश जैन , स्यादवाद विद्यालय वाराणसी के जैन दर्शन प्रवक्ता , डॉ महेंद्र मनुज, श्री अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के महामंत्री, डॉ अखिल बंसल विद्वान और वरिष्ठ पत्रकार, प्रतिष्ठाचार्य जय निशांत जैन, अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के महामंत्री आदि आदि अनेक से क्या कहना है

उनका समाज के दायित्व के प्रति यह बताएंगे आपको सोमवार , 17अप्रैल 2022, शाम 8:00 बजे चैनल महालक्ष्मी यूट्यूब पर कि समाज को कुकृत्य को दूर आचार्य को छुपा लेना चाहिए बताना नहीं चाहिए या फिर क्या करना चाहिए देखिएगा जरूर, भूलियेगा नहीं यह हमारे जैन समाज के हित में है