आप और हम जैन हैं , पर कभी चिंतन किया है कि हम जैन संगठित क्यों नहीं ? Why jains are not united ?

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१) सबसे छोटा समुदाय फिर भी सबसे ज्यादा “कर” देने वाला।

२) सबसे कम सरकारी मदद मांगने वाला और समय समय पर जनता की और सरकार की मदद करने वाला।

३)इस समुदाय का धर्म अहिंसा प्रधान जैन धर्म है।

४) भगवान महावीर ने अहिंसा, क्षमा, दया, सहिष्णुता, समन्वय,सत्य आदि की जो शिक्षा दी, क्या हम उसे भूल गए ?

५) मूल रूप से श्वेतांबर और दिगंबर दो मान्यताएं।

६) श्वेतांबर में मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथी।

७) सभी संप्रदायों में करीब ३५० आचार्य और करीब २०००० से २५००० साधु साध्वी।

८) सबसे अहम् विषय हमारे बीच विवाद- मतान्तर का क्या है ?
( अ) मूर्तिपूजक और दिगंबर मूर्ति पूजा करते है और स्थानकवासी और तेरापंथी मूर्ति पूजा नहीं करते हैं।
( ब) स्थानकवासी और तेरापंथी मुंहपत्ती बांधते हैं, जबकि मूर्तिपूजक हाथ में रखते और बोलते समय उसका उपयोग करते हैं।

९) सभी नवकार मंत्र गिनाते हैं,सामायिक, प्रतिक्रमण करते हैं, आगम को धर्म का आधार मानते हैं।

१०) आपस में विवाह संबंध‌ करते हैं।

विचार योग्य प्रश्न

अगर हम अपनी अपनी उपासना अपने अपने तरीके से करें तो बाधा कहां हैं ?

सबसे बड़ी बाधा के विषय ऊपर नंबर ४ में हैं, जिन्हें हम भगवान की आज्ञा अनुसार मानने को तैयार नहीं हैं । हम सब एक दूसरे को यह बताने में अपनी शक्ति खर्च कर रहे हैं कि मेरा संप्रदाय कैसे श्रेष्ठ है और हम सबको अपनी संप्रदाय से जोड़ना चाहते हैं।

अब हमारी पहचान जैन से नहीं, संप्रदाय और अब तो किस आचार्य को मानते हैं उससे हो गई है। हम भगवान महावीर स्वामी और जैन धर्म को ही भूल गए हैं।

क्या हम 5- -10% विवादित मुद्दों को छोड़कर एक नहीं हो सकते है ?

हम हमारे व्यवसाय और व्यवहार में कितने समझौते करते हैं ? आखिर हम एक समझौता धर्म के शुद्ध पालन के लिए क्यों नहीं करते, इसमें हम बाधक क्यों ?

रमेश मेहता जैन सांगली।
7888183289.