जिस दिन भारत का संविधान घोषित हुआ यानी 26 जनवरी 1950 ठीक उससे एक दिन पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जैन समाज को स्वतंत्र धर्म और अल्पसंख्यक के रूप में स्वीकार करने की घोषणा की थी। तब चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी ने डेढ़ वर्ष तक अन्न का त्याग किया और जिसका शुभ परिणाम यह मिला था ।
आचार्य श्री के आदेशानुसार दिल्ली में एक शिष्टमंडल जाकर पंडित जवाहरलाल नेहरु जी से मिला और सही दृष्टिकोण को समझाया , जिससे उन्होंने तत्काल स्पष्ट घोषणा की कि जैन धर्म, हिंदू धर्म की शाखा नहीं है । उसका स्वतंत्र अस्तित्व है ।उसकी स्वतंत्र संस्कृति है। वह हिंदुओं में कभी भी शामिल नहीं है, और ना कभी हो सकते हैं , और इस पर प्रधान निजी सचिव जो प्रधानमंत्री के थे , एबी पै, उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय से 31 जनवरी 1950 को एक पत्र जारी कर स्पष्ट कर दिया जो संविधान 5 दिन पहले लागू हुआ। उसमें धारा 25 में स्पष्ट कर दिया है जैन , बौद्ध और सिख अलग धर्म है और उन्हें हिंदुओं से नहीं जोड़ा जाए।
वीतराग शासन का अपूर्व विजय
महाराज की घोर तपश्रंर्या का सुंदर फल- ‘‘जैनधर्म हिंदुधर्म से सर्वथा स्वतंत्र तथा भिन्न धर्म है। जैन हिंदु नहीं है। वे हिंदुओं में कभी भी शामिल नहीं हैं, न कभी हो सकते हैं’’।
जैन बोधक 1 फरवरी 1950 के अंक में मुखपृष्ठ पर छपा
भारत के प्रधानमंत्री भारत मुकुट पं. जवाहरलाल नेहरू की न्यायपूर्ण घोषणा
आचार्य महाराज को पूर्ण समाधान -सर्व त्यागियों को, श्रावकों को अन्न ग्रहण करने के लिए आचार्य श्री का आदेश
अखिल जैन समाज में संतोष व समाधान का वातावरण
जैन समाज को यह जानकर परम हर्ष होगा कि हमारे परमपूज्य विश्ववंद्यविभूति चरित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर महाराज ने जिस कारण से करीब 1.5 वर्ष से अन्न का त्याग किया है एवं आत्मसंशोधन कर रहे हैं वह आज फलित हुआ। आचार्यश्री की पवित्र भावना सफल हुई। भारत के प्रधान अमात्य पं. जवाहर लाल जी नेहरू ने जैन धर्म को सर्वथा स्वतंत्र धर्म के रूप में एवं जैन समाज को अल्पसंख्यक के रूप में स्वीकार कर घोषणा की है। इस लिए जैन धर्म व समाज को हिंदू धर्म में घुसेड़कर जो उसका अस्तित्व मिटाने की योजना हो रही थी वह अब नहीं बन सकेगी।
आचार्य श्री के आदेशानुसार दिल्ली में जो शिष्टिमंडल जाकर इस विषय के सही दृष्टिकोण को समझाने का प्रयत्न कर रहा था, उसे सफलता मिली। ता. 25.01.1950 को जो डेप्युटेशन भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल जी नेहरू को मिला उसके उत्तर में पं. नेहरूजी ने स्पष्ट घोषणा की है कि जैन धर्म हिंदू धर्म की शाखा नहीं है, उसका स्वतंत्र अस्तित्व है। उसकी स्वतंत्र संस्कृति है।
‘‘जैन धर्म हिंदू धर्म से सर्वथा स्वतंत्र तथा भिन्न धर्म है। जैन हिंदू नही है। वे हिंदुओं में कभी भी शामिल नहीं हैं, न कभी हो सकते हैं’’।
उपर्युक्त घोषणा से जैन समाज व धर्म के स्वतंत्र अस्तित्व में खतरे की जो आशंका थी वह दूर हो गई है।