धन्य है वो युग,वो स्थान, वो भव्यात्मा जिसने ऐसे महामनीषी के चरणरज को पाया- आचार्य श्री सन्मति सागर जी का समाधिदिवस 24 दिसम्बर

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युगश्रेष्ठ आचार्यशिरोमणि श्री सन्मति सागर जी महायतिराज का 11वा समाधिदिवस 24 दिसम्बर 2020
भगवान महावीर स्वामी,आचार्य श्री कुंदकुंदस्वामी,मुनि धर्म साम्राज्य नायक द्वय महाऋषि आचार्य श्री आदिसागर जी अंकलिकर व चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी जैसे महामुनियों के आदर्शो को विश्व के सर्वोच्च पटल पर सूर्य के समान प्रकाशमान करने वाले अंकलिकर परम्परा के तृतीय पट्टचार्य श्री सन्मति सागर जी महाऋषिराज आप सदैव जयवन्त है
संक्षिप्त परिचय महातपोमार्तण्ड आचार्य श्री सन्मति सागर जी भगवन्त➡⬇
जन्म-ग्राम फफोतु,जिला एटा उत्तरप्रदेश सन1938 माघ शुक्ल सप्तमी
राजकीय सर्विस मलेरिया रोकथाम विभाग उत्तरप्रदेश
आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत प्रदाता गुरु-तीर्थभक्त शिरोमणि आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महागुरुराज द्वारा सन 1956 में

क्षुल्लक व मुनि दीक्षा प्रदाता गुरु-वात्सल्यरत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी महागुरुराज द्वारा क्षुल्लक दीक्षा सन 1961 में- मुनि दीक्षा1962 में तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की पावन धरा पर
आचार्य पद प्रदाता-दादागुरु तीर्थभक्त शिरोमणि आचार्य श्री महाविर्तकीर्ति जी भगवन्त द्वारा सन 1972 में अंकलिकर परम्परा के तृतीय पट्टचार्य पद पर सुशोभित हुए

13 वर्ष (1959-1972) तक अपने गरुओ से त्याग-तपस्या-शिक्षा, साधना,अनुशासन के सर्वोच्च संस्कारों को ग्रहण करके आप आगे 38 वर्षो तक सन 2010 तक अंकलिकर परम्परा व सँग प्रमुख आचार्य के रूप में उनके पदचिन्हों पर चल कर अहिंसामयी विश्व धर्म का शंखनाद किया
आचार्य श्री सन्मति सागर जी ऋषिराज इस पंचम काल मे न भूतों न भविष्यति
अपनी सम्पूर्ण साधनाकाल में 10000 के लगभग उपवास
सिहनिष्क्रीडिय अतिकठोर महाव्रत सहित अनेकानेक दुर्लभ महाव्रतों को पूर्ण किया
साधनाकाल के अनेक वर्षों से अन्न सहित अनेक वस्तुओ का त्याग,सिर्फ मट्ठा का आहार एक साथ दो दिन का आहार तो कभी कभार ही ग्रहण करते थे
तपस्या विश्व को अचंभित करने वाली किन्तु दिखावे,प्रदर्शन,आडम्बर को तनिक भी स्थान नही-यश,कीर्ति की बिल्कुल चाह नही
दिगम्बर से लेकर श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनेको सन्त भी आपके दर्शन को पाकर धन्य मानते थे।श्वेताम्बर सम्प्रदाय के सन्त भी आपको साक्षात भगवान महावीर की प्रतिकृति मानते थे।
आपके चरणों की शुद्धि जल से श्रद्धावान लोगो के चर्म कुष्ठ रोग शांत हो गए
आपकी तेजस्वी वीतरागी मुद्रा को देखकर खूंखार डाकू भी नत मस्तक होकर दान अर्पण करके चला गया
आहार चर्या के दौरान अनेक आहारस्थलों पर स्वतः केसरी चरण चिन्ह अंकित हुए जो आज भी यथावत है
आगम की हजारो गाथाएं कंठस्थ तो थी ही साथ मे किसी जिज्ञासु की शंका पर उसका समाधान बिना देखे ‘अमुक शास्त्र के अमुख पन्ने पर’ उपलब्ध है ऐसी सटीक स्मृति ज्ञान विद्यमान था।
70 वर्ष की उम्र में तपोसाधना से शरीर कृष हो चुका था वही गड्ढे में फिसलन से शरीर पर घाव उभर आये लेकिन फिर भी आपने एक स्थान की अधीनता स्वीकार नही की ओर अंत समय तक पद विहार यथावत रखा
आपके आशीष,मार्गदर्शन व स्मरण मात्र से हजारो हजार लोगों के दुःख संकट दूर हुए
जैन दर्शन के ऐसे बड़े महान आचार्य जिनके लाखो अनुयायी किन्तु गिरी,मठ,आयतन,स्तम्भ जैसे सभी स्वख्याति व चंदे-चिट्ठे प्रपंचो से जीवनपर्यंत दूर रहे
पूज्य महाऋषिवर के वरदानदायी हस्तो से 150 के लगभग जिनेश्वरी दीक्षाएं सम्पन्न हुई तो हजारो भव्यात्माओ ने त्याग,व्रत अंगीकार किये वही 50 से अधिक वीर जीवो ने समाधि को प्राप्त किया
आपके द्वारा तराशे गए रत्नों में गणाचार्य श्री विरागसागर जी,आचार्य श्री हेमसागर जी,बालाचार्य श्री योगेन्द्रसागर जी,आचार्य श्री चंद्रसागर जी,आचार्य श्री सिद्धान्त सागर जी,आचार्य श्री सुविधिसागर जी ,चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी,आचार्य श्री सुन्दरसागर जी,आचार्य श्री सौभाग्य सागर जी,आचार्य श्री सूरसागर जी जगविख्यात है
सन 1997 में आपके पवित्र हस्तो से दीक्षित व शिक्षित आचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरुदेव की विलक्षण क्षमता ,श्रेष्ठ साधना व नेतृत्व दक्षता को भांपते हुए आपने सन 2010 में समाधि से पूर्व लिखित सन्देश में अपना व अंकलिकर परम्परा का उत्तराधिकारी घोषित किया
24 दिसम्बर 2010 को 72 वर्ष की आयु में व 49 वर्ष के साधनकाल के पश्चात प्रातः ब्रह्म मुर्हत में पदमासन की पवित्र मुद्रा में बैठे बैठे अत्यंत मजबूत मनोबल ,शान्त समता भाव व पूर्ण चेतना के साथ वीर समाधि मरण किया।
जैन दर्शन के ऐसे विश्व गौरव तृतीय पट्टचार्य श्री सन्मति सागर जी महायतिराज का 11 वा समाधिदिवस 24 दिसम्बर को सम्पूर्ण भारत मे व उनके श्रेष्ठ नन्दन चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज के सुसानिध्य में मनाया जा रहा है
श्री आदि-कीर्ति-विमल-सन्मति-सुनील गुरुभ्यो नमः